Loksabha Election 2019 : दिल्ली दरबार की जंग में उत्तर प्रदेश एक बार फिर होगा अहम
प्रियंका गांधी वाड्रा के अब राजनीति में सक्रिय होने के बाद उत्तर प्रदेश में फोकस करने के बाद कांग्रेस नये हौसले के साथ चुनावी रथ पर सवार है जो तीसरा कोण खड़ा करेगी।
लखनऊ [अजय जायसवाल]। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीट दिल्ली दरबार का गेट-वे कही जाती हैं। यहां की सभी सीट ही केंद्र में सरकार बनाने का आधार खड़ा करती हैं। इसी कारण सभी राजनीतिक दलों ने हमेशा से ही उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक ताकत झोंकी है।
देश के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी अपना वजूद बरकरार रखने को 26 वर्ष पर तक जानी दुश्मन रहे सपा-बसपा ने गठबंधन कर इस चुनाव को रोमांचक बनाया है तो भाजपा अपने नेटवर्क के सहारे पिछला प्रदर्शन दोहराने की ताब रखती है। प्रियंका गांधी वाड्रा के अब राजनीति में सक्रिय होने के बाद उत्तर प्रदेश में फोकस करने के बाद कांग्रेस नये हौसले के साथ चुनावी रथ पर सवार है जो तीसरा कोण खड़ा करेगी।
भाजपा की सहयोगी दलों अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से तल्खी जरूर बढ़ी है लेकिन उसके पास गठबंधन के विकल्प भी खुले हैं। इसके इतर भाजपा की ताकत उसका मजबूत संगठन है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 1.60 लाख बूथों पर चुनाव प्रबंधन के साथ ही क्षेत्रवार व्यूह रचना की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को लोकसभा चुनाव का प्रदेश प्रभारी बनाने के साथ ही चार सह प्रभारी बनाए गए हैं। भाजपा बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काटने या फिर उनके क्षेत्र बदलने की दिशा में भी गंभीरता से मंथन कर रही है।
सियासी अस्तित्व पर खतरे की आशंका के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने एक-दूसरे का हाथ थामा है। बसपा जहां 38 वहीं सपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। गठबंधन में न होने के बावजूद अमेठी व रायबरेली सीट को दोनों पार्टियों ने कांग्रेस के लिए छोड़ रखा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाली रालोद भी गठबंधन में शामिल होकर तीन सीटों पर किस्मत आजमाएगी। भाजपा से मुकाबले के लिए सपा ने तो नौ प्रत्याशियों की भी घोषणा कर दी है। बसपा ने अधिकृत तौर पर तो नहीं लेकिन अपने हिस्से वाली ज्यादातर सीटों के लिए प्रत्याशी तय कर दिए हैैं। सपा-बसपा गठबंधन की पूरी उम्मीद वोटों के ट्रांसफर पर टिकी हैैं और इसमें वह किसी भी तरह की चूक नहीं करना चाहते। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में बसपा का जहां खाता तक नहीं खुला था वहीं सपा के मात्र पांच प्रत्याशी जीते थे। हालांकि बाद में हुए दो उपचुनावों में भी जीत हासिल करने से सपा के वर्तमान में सात सांसद हैं।
लोकसभा चुनाव 2014 के बाद उप चुनाव में जीती सीटें सपा अपने खाते में मानकर चल रही है। यही वजह है कि एक बार फिर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी सांसद पत्नी डिम्पल यादव को कन्नौज और सरंक्षक तथा पिता मुलायम सिंह यादव अपनी पुरानी सीट मैनपुरी से चुनाव लड़ाने जा रहे हैं। दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती खुद चुनाव न लडऩे का इरादा बना चुकी हैैं लेकिन उनकी ओर से जोनल कोआर्डिनेटर से लेकर बूथ स्तर तक का कैडर पूरी तरह से चुनाव को लेकर सक्रिय है।
दलित-मुस्लिम और यादव गठजोड़ होने के कारण दोनों दलों के इस समन्वय को चुनावी लिहाज से मजबूत माने जाने से भाजपा की पेशानी पर बल भी पडऩा स्वाभाविक है। इस बीच कांग्रेस की महासचिव के रूप में प्रियंका गांधी की इंट्री से सूबे में चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। प्रियंका को जहां मोदी-योगी के क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश की 41 सीटों का वहीं 39 सीटों का प्रभार कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपा गया है। पिछले माह लगातार चार दिन लखनऊ प्रवास में देर रात तक संसदीय क्षेत्रों की समीक्षा कर प्रियंका गांधी ने अहसास करा दिया कि कांग्रेस नेतृत्व मिशन यूपी को लेकर काफी गंभीर है।
पूरी तरह से सक्रिय प्रियंका गांधी अब तक सांसद सावित्री बाई फूले, विधायक अवतार सिंह भड़ाना सहित कई पूर्व सांसदों, विधायकों को कांगे्रस में शामिल कर चुकी हैैं। भाजपा से टिकट कटने व सपा-बसपा गठबंधन में गुंजाइश न बनती देख कई और सांसद व वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार बैठे हैं जो इस पार्टी को मजबूती देंगे।
लोकसभा चुनाव 2014 की दलगत स्थिति
पार्टी सांसद वोट(प्रति.में)
भाजपा 71 42.63
अपना दल 02 0.02
सपा 05 22.35
बसपा -- 19.77
कांग्रेस 02 07.53
रालोद -- 0.86।