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Loksabha election 2019: कांग्रेस की दुर्दशा से रणनीतिकारों में मचा हाहाकार, जमीनी आकलन करने में रहे नाकाम

सियासी संग्राम में कांग्रेस की सारी उम्मीदें और दावे धराशायी होने के बाद पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों में हाहाकर मच गया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 04:49 AM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 04:49 AM (IST)
Loksabha election 2019: कांग्रेस की दुर्दशा से रणनीतिकारों में मचा हाहाकार, जमीनी आकलन करने में रहे नाकाम
Loksabha election 2019: कांग्रेस की दुर्दशा से रणनीतिकारों में मचा हाहाकार, जमीनी आकलन करने में रहे नाकाम

 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सियासी संग्राम में कांग्रेस की सारी उम्मीदें और दावे धराशायी होने के बाद पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों में हाहाकर मच गया है। कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन की धुरी बनाने की कसरत में जुटे रणनीतिकार एक बार फिर पार्टी को लोकसभा में विपक्ष का आधिकारिक दर्जा दिलाने की हैसियत तक नहीं ले जा पाए हैं। पार्टी की इस दुर्दशा को लेकर जाहिर तौर पर आने वाले कुछ दिनों में कांग्रेस के अंदर भूचाल की आशंका को नकारा नहीं जा रहा और इसीलिए नाकामी के लिए जिम्मेदार रणनीतिकारों में बेचैनी शुरू हो गई है।

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चुनाव में कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन के सहारे सत्ता की दौड़ में शामिल दिखा रहे रणनीतिकारों के लिए अब अपने ख्याली दावों के आधार को सही ठहराना बेहद मुश्किल होगा। नाकामी के लिए अभी से सवालों के कठघरे में खड़ा किए जा रहे रणनीतिकारों के लिए कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं को अपनी नाकामी के बारे में समझाना कठिन होगा। नाकामी के लिए जिम्मेदारी से नहीं बचने की राहुल गांधी की पहली प्रतिक्रिया के बाद कांग्रेस में हार के लिए जिम्मेदारी लेने की मांग जोर पकड़ेगी इसमें संदेह की गुंजाइश कम ही है।

कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों में शामिल पी चिदंबरम, आनंद शर्मा, जयराम रमेश, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, सैम पित्रोदा से लेकर राजीव गौड़ा जैसे लोगों ने पूरे चुनाव की रणनीति और एजेंडा को सिरे चढ़ाया। सरकार की नाकामी को चुनाव अभियान में प्रहार का केंद्र बिंदु बनाया गया मगर कांग्रेस का अधिकांश अभियान नरेंद्र मोदी के खिलाफ केंद्रित दिखा। राफेल मसला हो या 'चौकीदार चोर है' का नारा जमीन पर नहीं चल रहा था और कार्यकर्ता इसकी फीडबैक भी दे रहे थे। मगर रणनीतिकारों ने इसमें कोई बदलाव की जरूरत नहीं समझी।

रणनीतिकारों की बड़ी चूक केवल रणनीति में ही नहीं चुनावी प्रबंधन में भी साफ दिखी। बिहार में गठबंधन की खटपट हो या महाराष्ट्र में कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा रणनीतिकारों ने वैसी गंभीरता नहीं दिखाई जैसी वक्त की मांग थी। इसी तरह कांग्रेस के सबसे बड़े चुनावी वादे 'न्याय' का जनता से कनेक्ट नहीं होने की निरंतर रिपोर्ट आती रही पर रणनीतिकार नीरो की तरह उम्मीद की बंसी बजाते रहे। चुनाव में पार्टी की लुटिया डुबोने वाले इन प्रबंधकों को अब जाहिर तौर पर कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं का कोपभाजन बनना पड़ेगा।

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