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Loksabha Election 2019 : गोरखपुर की गंवाई सीट वापस पाने के लिए योगी का हठयोग

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा प्रत्याशी सिने स्टार रवि किशन के साथ असली योद्धा के रूप में अब तो योगी आदित्यनाथ खुद मैदान में उतर गए हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 03:13 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 03:27 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : गोरखपुर की गंवाई सीट वापस पाने के लिए योगी का हठयोग
Loksabha Election 2019 : गोरखपुर की गंवाई सीट वापस पाने के लिए योगी का हठयोग

गोरखपुर [आनंद राय]। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी कर्मभूमि गोरखपुर के संसदीय महासंग्राम में अपराजेय योद्धा माने जाते हैं लेकिन, पांच बार से लगातार उनके प्रतिनिधित्व वाली यह सीट उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा के हाथ से फिसल गई तो यह चुभने वाली हार भी उनके ही खाते में दर्ज हो गई। सीएम योगी आदित्यनाथ को इसकी कसक है।

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लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा प्रत्याशी सिने स्टार रवि किशन के साथ असली योद्धा के रूप में अब तो योगी आदित्यनाथ खुद मैदान में उतर गए हैं और भाजपा के खाते में वापस यह सीट लाने के लिए जनता के बीच हठयोग कर रहे हैं। गोरखपुर में जातीय समीकरण के बल पर गठबंधन के प्रत्याशी राम भुआल निषाद (सपा कोटे से) भी कड़े मुकाबले में हैैं। कांग्रेस के मुधसूदन त्रिपाठी ने इस खेल को और कठिन बना दिया है।

गोरखपुर में 2018 के उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र शुक्ल को चुनाव हराया तो कई सवाल उठे लेकिन, एक संकेत साफ था कि देश भर में भाजपा चाहे जितनी मजबूत हो पर गोरखपुर में इसकी लंबी पारी की असल वजह गोरक्षपीठ है। योगी आदित्यनाथ और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने 1989 से लगातार 29 वर्ष तक इस सीट पर प्रतिनिधित्व किया। उसके पहले योगी आदित्यनाथ के पितामह गुरु महंत दिग्विजय नाथ ने भी यहां की नुमाइंदगी की। गोरक्षपीठ के प्रति यहां पर आमजन की आस्था ने ही मंदिर के महंतों की सीट संसद में काफी सुरक्षित कर दी।

गोरखपुर में लोकसभा उप चुनाव में भाजपा के उपेंद्र शुक्ल हारे तो यह बात तेजी से चर्चा में आयी कि किसी उम्मीदवार के प्रति वह भावना नहीं हो सकती जो गोरखनाथ मंदिर से सीधे जुड़े उम्मीदवार के प्रति है। इस बार भाजपा ने भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन को मैदान में उतारा तो फिर यही सवाल उठने लगा। इसका योगी आदित्यनाथ सभा और सम्मेलनों में खुद जवाब दे रहे हैं। वह दो टूक कह रहे हैं चुनाव रवि किशन नहीं, मैं लड़ रहा हूं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि गोरखपुर विकास की दौड़ में आगे बढ़ा है। मसलन, फर्टिलाइजर कारखाना और रामगढ़ ताल का सौंदर्यीकरण पहले चुनावी मुद्दे होते थे लेकिन, अब इन पर विराम लग गया है।

भाजपा की ताकत

भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में योगी आदित्यनाथ की युद्ध स्तर पर की जा रही पहल से यहां का माहौल बदल रहा है। इस संसदीय क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीट भाजपा के कब्जे में है। कैम्पियरगंज से पूर्व मंत्री फतेह बहादुर सिंह, नगर से डाक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल, ग्रामीण से विपिन सिंह, सहजनवां से शीतल पांडेय और पिपराइच से महेंद पाल सिंह विधायक हैं। जातीय समीकरण दुरुस्त करने के साथ ही भाजपा के परंपरागत मतों को सहेजने में भी इनकी सक्रियता बढ़ गई है।

केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री शिवप्रताप शुक्ल भी गृह जिले में सक्रिय हो गए हैं। संघ और संगठन के बड़े नेताओं के अलावा नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना, सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह और ग्राम्य विकास मंत्री डाक्टर महेंद्र सिंह ने भी गोरखपुर में डेरा जमा दिया है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 16 मई को यहां रोड शो करने जा रहे हैैं। इसके लिए गोरखपुर क्षेत्र के प्रभारी पंकज सिंह डटे हुए हैैं। इन सबके बावजूद उम्मीदवार रवि किशन को लेकर कार्यकर्ताओं में जोश नहीं है, क्योंकि उनका जनता से सीधा संपर्क नहीं रहा है। भाजपा पंचायत प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक रमेश सिंह दावा करते हैं कि विकास के चलते सभी जातीय समीकरण टूटे हुए हैं।उल्लेखनीय है कि पिछली बार उप चुनाव जीतने वाले सपा सांसद प्रवीण निषाद अब भाजपा में हैं और उनके पिता की निषाद पार्टी भी मजबूती दे रही है।

गठबंधन को बल

गठबंधन उम्मीदवार रामभुआल निषाद के पक्ष में यादव, निषाद, मुस्लिम और दलितों के अलावा सैंथवार, कुर्मी, समेत कई पिछड़ी जातियों को सहेजने की कवायद चल रही है। हाल ही में भाजपा के पाले में चली गईं 2014 में योगी आदित्यनाथ की सबसे प्रबलतम प्रतिस्पर्धी राजमती निषाद और उनके पुत्र अमरेंद्र निषाद वापस सपा में लौट आए हैं।

योगी आदित्यनाथ के बहुत करीबी रहे हिंदू युवा वाहिनी के सुनील सिंह अपना नामांकन निरस्त होने के बाद गठबंधन उम्मीदवार का परचम फहरा रहे हैं।

कांग्रेस ने प्रतिष्ठा से जोड़ा

कांग्रेस उम्मीदवार मधुसूदन त्रिपाठी यहां के स्थापित अधिवक्ता हैं। ब्राह्मण बिरादरी में उनकी बड़ी गोलबंदी है। हालांकि पिछले कई चुनावों से यहां कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है, लेकिन इस बार त्रिपाठी चुनाव को प्रतिष्ठा से जोड़कर सक्रिय हैं। मधूसदन के पक्ष में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा युवा अधिवक्ताओं की भी टीम सक्रिय हो गई है। कांग्रेसी उम्मीदवार का जोर बड़ी जनसभाओं की वजाय नुक्कड़ जनसंपर्क पर है।

मुस्लिम मत भी होंगे निर्णायक

इस बार किसी बड़े दल ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। मुसलमान बहुत मुखर भी नहीं हैं। मैकेनिक सहमत अली का कहना है कि 'सब लोग एक ही जैसे हैं। गरीबों की कोई नहीं सुनता।' घोषीपुरवा के इम्तियाज और छोटे काजीपुर के अफजल भी कुछ ऐसी ही भाषा बोलते हैं। पर गोरखनाथ क्षेत्र के आलमगीर कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ जी मंच पर चाहे जो भाषण दें लेकिन, उन्होंने तो मंदिर में मुसलमानों को भी दुकाने दी हैं।Ó मुसलमानों को लेकर चाहे जितना असमंजस हो लेकिन, सच यही है कि गोरखपुर के चुनाव में इनकी भूमिका निर्णायक होगी।

2018 के उप चुनाव में उम्मीदवारों को मिले मत

 दल -              उम्मीदवार           मत

सपा               प्रवीण निषाद        456513

भाजपा           उपेंद्र शुक्ल            434632

कांग्रेस           सुरहीता करीम        18858

2014 के चुनाव में मिले मत

 दल            उम्मीदवार                  मत

भाजपा       योगी आदित्यनाथ        539127

सपा           राजमती निषाद            226344

बसपा        राम भुआल निषाद         176412

कांग्रेस,    अष्टभुजा शुक्ला                45719। 

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