छत्तीसगढ़ में जंगल से खेत तक उगे हैं कई अहम मुद्दे, पार पाना होगा मुश्किल!
Loksabha Election 2019 में लोगों की नक्सलवाद से लेकर बेरोजगारी के मु्द्दे पर सरकारों को घेरने की तैयारी। कांग्रेस सरकार ने टाटा स्टील के लिए अधिग्रहित जमीन आदिवासियों की लौटा दी।
आलोक मिश्रा, (रायपुर)। प्रकृति ने तो छत्तीसगढ़ पर खूब नियामतें दी हैं। धरती के नीचे भी और धरती के ऊपर भी। नीचे अगर कोयला, लोहा, बाक्साइट, डोलोमाइट से लेकर हीरा और सोना तक भर दिया है तो ऊपर हरे-भरे जंगल, पहाड़ और झरने उसकी खूबसूरती बढ़ाते हैं। गिनाने के लिए कई उपलब्धियां हैं सूबे के पास, जिसे देख-सुनकर तो यही लगेगा कि यहां कोई कमी नहीं हो सकती। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर जंगल इसकी खूबसूरती हैं तो यहां पनपे नक्सकलवाद ने इस पर बदनुमा दाग लगा दिया है।
आज छत्तीसगढ़ के सबसे खूबसूरत बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर जैसे जिलों का नाम लेते ही दूसरे राज्यों से आने वाले बिदक जाते हैं। आए दिन सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच होती झड़पें, गिरते शव देशभर के अखबारों की सुर्खियां बनते हैं। नक्सलवाद यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है। राज्य के 27 में से ज्यादातर जिले पूर्ण या आंशिक नक्सलप्रभावित हैं। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर के बाद यदि किसी राज्य में सबसे ज्यादा केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती है तो वह छत्तीसगढ़ है।
राज्य की वास्तविक तरक्की की राह में नक्सलवाद सबसे बड़ा रोड़ा है। इसका दायरा राज्य बनने के बाद और बढ़ा है। कांग्रेस अब तक इसे भाजपा सरकार की गलत नीतियों का परिणाम बताती रही है, लेकिन अब वह सत्ता में आई है तो उसके लिए यही बड़ी चुनौती साबित हो रही है। कांग्रेस सरकार नक्सलवाद को लेकर अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाई है।
छत्तीसगढ़ युवा है, लेकिन यहां का युवा ही सबसे बदहाल है। सरकारी आंकड़ों में ही लगभग 12 फीसद बेरोजगार पंजीकृत हैं। जिनकी संख्या हर साल लगभग एक लाख तक बढ़ रही है। स्थिति सरकारी दस्तावेजों से इतर भी हो सकती है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने 2500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया तो उसकी सरकार आने पर महीने भर में ही डेढ़ लाख नए बेरोजगार पैदा हो गए।
यह स्थिति केवल पढ़े-लिखे युवाओं के सामने ही नहीं, बल्कि गरीब तबके के सामने भी है। रोजगार न होने के कारण उनका अन्य राज्यों के लिए पलायन एक बड़ी समस्या है। हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य में जाते हैं। मनरेगा समेत अन्य माध्यमों से रोजगार उपलब्ध कराने के दावों के बाद भी गांव के गांव खाली हो जाते हैं। यहां के किसानों की स्थिति भी ठीक नहीं कही जा सकती।
वर्तमान कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही किसानों का करीब 10 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है, लेकिन अब तक ज्यादातर किसानों को एनओसी नहीं मिल पाया है, इसी वजह से बैंक उन्हें नया लोन नहीं दे रहे।
धान व मक्का के समर्थन मूल्य बढ़ाने का लाभ केवल सरकारी मंडी में धान बेचने वाले किसानों को हुआ है। सब्जी या मौसमी खेती से जुड़े सर्वाधिक नुकसान झेलने वाले किसानों के लिए सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की है। अब किसान कर्जमाफी के बजाए स्वाममीनाथन आयोग की मांग करने लगे हैं जो कि बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है।
खदानों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन के कारण हजारों की संख्या में लोगों का विस्थापन भी एक बड़ी समस्या है। अधिग्रहित जमीन के बदले में मुआवजा तो मिला है, लेकिन लोगों के सामने रोजीरोटी की समस्या खड़ी हो गई। कांग्रेस सरकार ने इस पर मरहम लगाने के लिए बस्तर के लोहांडीगुड़ा में टाटा स्टील के लिए अधिग्रहित जमीन आदिवासियों की लौटा दी है।
ये हैं 5 बड़े मुद्दे
- नक्सलवाद
- बेरोजगारी
- किसान
- विस्थापन
- आबादी के अनुपात में आरक्षण