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Lok Sabha Election Result 2019: प बंगाल में लाल सलाम वाले अस्तित्व के लिए कर रहे संघर्ष

34 साल (1977 से 2011 तक) बंगाल पर राज करने वाली माकपा और उसके सहयोगी दलों का इस बार सूबे से सूपड़ा साफ हो चुका है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 10:59 AM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 01:05 PM (IST)
Lok Sabha Election Result 2019: प बंगाल में लाल सलाम वाले अस्तित्व के लिए कर रहे संघर्ष
Lok Sabha Election Result 2019: प बंगाल में लाल सलाम वाले अस्तित्व के लिए कर रहे संघर्ष

कोलकाता, मिलन कुमार शुक्ला। 34 साल (1977 से 2011 तक) बंगाल पर राज करने वाली माकपा और उसके सहयोगी दलों का इस बार सूबे से सूपड़ा साफ हो चुका है। माकपा ने 2014 के चुनाव में राज्य की 42 में से जो दो सीटें जीती थीं इस बार उसे भी बचा नहीं पाई। 2011 में तृणमूल से मात खाने के बाद ममता के विरोध में माकपा को इसका आभास ही नहीं रहा कि उसने भाजपा के लिए खुला मैदान दे दिया है। आज नौबत यह हो गई है कि लाल सलाम बोलने वाले अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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इस चुनाव में वामो राजनीतिक इतिहास में अपने सबसे खराब प्रदर्शन का गवाह बना है। विश्लेषकों के मुताबिक, इसकी बड़ी वजह यह है कि वाममोर्चा इन दिनों गंभीर नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। दूसरा पार्टी के कार्यकर्ता दूसरे दलों (तृणमूल- भाजपा) में शिफ्ट हो रहे हैं। तीसरा पार्टी को नौजवानों को ना कहना और करिश्माई नेता की कमी भी अखर रही है।

प्रचार में रह गई कसर : राज्य में तृणमूल प्रमुख और सीएम ममता बनर्जी ने करीब 150 और पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 चुनावी सभा की उसके मुकाबले माकपा का प्रचार अभियान बेहद कमजोर रहा। हालांकि सीताराम येचुरी ने कुछ जनसभाएं कीं, लेकिन माकपा राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा व वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस की उम्र प्रचार में धार देने में विफल रही। यही वजह है कि 2014 में माकपा ने जिन दो सीटों (मुर्शिदाबाद से बदरुद्दोजा खान और राजगंज से मोहम्मद सलीम) पर जीत हासिल की उसे भी बचा न सकी। 

कांग्रेस होती साथ तो बन जाती बात : 2016 विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े थे जिसका असर नतीजों पर भी पड़ा था। इस बार कुछ सीटों को लेकर पेंच ऐसा फंसा कि दोनों की राहें जुदा

हो गई। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को 2014 में मिली 4 सीटों के बजाय 2019 में एक पर सब्र करना पड़ा, जबकि वामो का तो खाता तक नहीं खुला। 

खल रही करिश्माई नेताओं की कमी : बंगाल में बीते दस वर्षों से वामदलों के पैरों तले जमीन खिसक रही है। पंचायत से लेकर 2016 में विधानसभा तथा कुछ उप चुनावों में पार्टी तीसरे-चौथे नंबर पर खिसकती रही है।माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और पूर्व महासचिव प्रकाश कारत के बीच लगातार बढ़ती खाई ने वाममोर्चा को राजनीतिक हाशिए पर पहुंचा दिया। वामो के पास ज्योति बसु या बुद्धदेव भट्टाचार्य जैसा नेता भी तो नहीं है।

पकड़ न सके मतदाताओं का मिजाज : वामो के नेता वोटरों का मिजाज समझने में नाकाम रहे हैं। 2011 में तृणमूल को सत्ता मिलने के बाद 2014 में लोकसभा और 2016 में विधानसभा चुनाव हुआ। 2014 व 2016 की तुलना करें तो तृणमूल को क्रमश: 39 और 45 फीसद मत मिले। वहीं वाममोर्चा का मतदान फीसद क्रमश: 30 फीसद और 26 फीसद रहा। 2019 में वामो का प्राप्त मत फीसद दहाई में भी नहीं पहुंच पाया।  

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