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Lok Sabha Election 2024: तेलंगाना में बदली राजनीति, तो ओवैसी ने भी बदल लिया दोस्त, अब विपक्ष नहीं कहेगा भाजपा की बी-टीम

Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव 2024 में तेलंगाना का राजनीतिक परिदृश्य बदलते ही असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपना दोस्त बदल लिया है। कांग्रेस के साथ नई नई दोस्ती की है। वहीं उत्तर प्रदेश-बिहार में चुनाव लड़ने की दिशा में ओवैसी आगे बढ़कर फिर पीछे हट गए। जानिए तेलंगाना में ओवैसी के सुर कांग्रेस को लेकर क्यों बदले- बदले से हैं?

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Published: Fri, 19 Apr 2024 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2024 06:00 AM (IST)
तेलंगाना का राजनीतिक परिदृश्य बदलते ही असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपना दोस्त बदल लिया है। (फाइल फोटो)

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। असदुद्दीन ओवैसी पर विपक्षी दलों का आरोप होता है कि वह पर्दे के पीछे से भाजपा की जीत के लिए काम करते हैं, लेकिन इस बार के हालात बता रहे हैं कि विपक्ष के ऐसे इल्जाम से वह मुक्त होने वाले हैं। आरोप का चक्र उल्टा हो सकता है। ओवैसी की संसदीय सीट हैदराबाद में भाजपा प्रत्याशी माधवी लता के विरुद्ध कांग्रेस उन्हें सहयोग करती नजर आ रही है और इस अहसान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ओवैसी भी कांग्रेस के प्रति कृतज्ञ दिख रहे हैं। तेलंगाना के साथ-साथ बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं झारखंड से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं, जहां के मैदान को दोस्ती के नाम पर उन्होंने पहले ही छोड़ दिया है। संपूर्ण तेलंगाना में एक ही साथ चौथे चरण में मतदान होना है, जिसके लिए नामांकन 18 अप्रैल से शुरू हो चुका है।

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किशनगंज सीट पर लड़ रही एआईएमआईएम

बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार पांच सीटें जीतकर महागठबंधन खेमे में सनसनी मचा देने वाले ओवैसी ने लोकसभा चुनाव में भी बिहार में 16 सीटों पर दमदारी से लड़ने का ऐलान किया था, किंतु समय के साथ हौसला पस्त होता गया या रणनीति के तहत पीछे हटना मंजूर कर लिया। सांकेतिक मौजूदगी सिर्फ किशनगंज तक सिमट गई है, जहां से आल इंडिया मजलिसे-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह दो वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 95 सीटों पर प्रत्याशी उतारने वाले ओवैसी ने लोकसभा के लिए अभी तक एक भी सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारा है।

अपना दल से किया ओवैसी की पार्टी ने किया गठबंधन

चुनाव की घोषणा से पहले 20 सीटों पर लड़ने का दावा किया था। संभावनाएं तलाश ली गई थीं। फिर अचानक चुप्पी साध ली गई। हालांकि अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल के साथ एआईएमआईएम ने गठबंधन जरूर किया है, लेकिन उसे लेकर ओवैसी में बहुत ज्यादा उत्साह नहीं दिख रहा है। पल्लवी की ओर से ही कुछ सीटों पर प्रत्याशी देने की कवायद चल रही है। ओवैसी ने झारखंड में भी छह सीटों पर लड़ने का एलान किया था, लेकिन जब वक्त आया तो परिदृश्य से गायब हो गए हैं।

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ओवैसी ने लिया अचानक यू-टर्न?

सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ? महज पांच महीने पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव तक राहुल गांधी पर तीखा हमला करने और हाल तक रेवंत रेड्डी को आरएसएस का एजेंट बताने वाले ओवैसी ने लोकसभा चुनाव में अचानक यू-टर्न लेते क्यों दिख रहे हैं? दरअसल ओवैसी हैदराबाद से लगातार चार जीत के बाद पांचवीं बार मैदान में हैं, किंतु इस बार उन्हें भाजपा ने कड़ी चुनौती दे रखी है। चार वर्ष पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में अपेक्षित सफलता मिलने से उत्साहित भाजपा ने माधवी लता के रूप में लड़ाकू प्रत्याशी उतारा है, जो ओवैसी की जीत में रोड़ा बनकर खड़ी हैं।

अभी तक उनका भारत राष्ट्र समिति के साथ आपसी तालमेल रहता था। किंतु प्रदेश का परिदृश्य बदला तो ओवैसी को अब कांग्रेस की जरूरत है। इसी तरह कांग्रेस को भी ओवैसी की जरूरत है, क्योंकि 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत से मात्र चार ही ज्यादा विधायक हैं। जाहिर है, नाजुक मोड़ पर खड़ी सरकार की किलेबंदी के लिए रेवंत रेड्डी को ओवैसी का साथ चाहिए और हैदराबाद में पांचवी जीत के लिए ओवैसी को भी कांग्रेस की कृपा चाहिए।

अच्छे प्रत्याशी की तलाश में कांग्रेस

ओवैसी के गृह क्षेत्र हैदराबाद में नामांकन की प्रक्रिया जारी है। मगर ताज्जुब की बात है कि जिस प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, वहां की राजधानी स्थित संसदीय क्षेत्र के लिए अभी तक प्रत्याशी नहीं मिला है, जबकि पूर्व सांसद अजहरुद्दीन के रूप में अनुभवी नेता उसी शहर का है। सानिया मिर्जा का भी नाम चर्चा में है। भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के शीर्ष नेता केशव राव एवं उनकी पुत्री हैदराबाद की मेयर विजयलक्ष्मी को भी मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने हाल में कांग्रेस की सदस्यता दिलाई है। फिर भी कहा जा रहा है कि अच्छे प्रत्याशी की तलाश है।

कांग्रेस और ओवैसी की नई नई दोस्ती

कुछ दिन पहले मो. फिरोज खान का नाम चलाकर अचानक विराम लगा दिया गया। क्योंकि कांग्रेस अगर अजहर, सानिया या फिरोज में से किसी एक को प्रत्याशी बना देगी तो ओवैसी का वोट बैंक बिखर सकता है और इसका सीधा फायदा भाजपा उठा सकती है। इसीलिए कांग्रेस को प्रत्याशी उतारने में माथापच्ची करनी पड़ रही है। दोनों की दोस्ती नई है--दरार नहीं आने देना है। वक्त बताएगा कि कांग्रेस ने ओवैसी के खिलाफ किसे टिकट थमाया। उससे किसका फायदा होगा और किसका नुकसान।

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