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Lok sabha Election 2024: सीक्रेट है अंगुली पर लगने वाली अमिट स्याही बनाने का फॉर्मूला, जानिए कब हुई थी शुरुआत?

Lok sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव के दो चरण का मतदान हो चुका है। 7 चरणों में मतदान होना है। मतदान के बाद अमिट स्याही लगाई जाती है जो अंगुली से आसानी से नहीं निकलती। क्या आप जानते हैं कि अमिट स्याही बनने की शुरुआत कैसे हुई पहली बार किन्होंने इस ​स्याही का उपयोग चुनाव के लिए किया। जानिए अमिट स्याही का क्या है रहस्य?

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Published: Sat, 27 Apr 2024 07:08 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 06:24 AM (IST)
Lok sabha Election 2024: अमिट स्याही का भी है रहस्य। अंगुलियों से आसानी से नहीं निकल पाती।

Lok sabha Election 2024: आम चुनाव 2024 में मतदान की चरणबद्ध प्रक्रिया जारी है। इसका प्रभाव नजर आ रहा है इंटरनेट मीडिया पर, जहां पहली बार मतदान करने वाले युवाओं से लेकर पुराने मतदाता तक कैमरे के आगे अपनी अंगुली में लगी स्याही को दिखाकर मताधिकार के प्रयोग का प्रदर्शन कर रहे हैं। मतदान करने की इस पहचान का अपना ही एक किस्सा है, अपना एक रहस्य है। इस अमिट स्याही के रंग दिखा रहा है आरती तिवारी का आलेख...।

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18वीं लोकसभा के गठन की निर्वाचन प्रक्रिया जारी है। चरण-दर-चरण इस प्रक्रिया में सबसे आवश्यक है अंगुली में लगाया जाने वाला नीली स्याही का निशान। मतदान के दोहराव, झूठे-फर्जी मतदान को रोकने में काम आने वाली यह स्याही दशकों से भारत के नागरिकों के सुरक्षित मतदान अधिकार की प्रतीक है। मतदान केंद्र पर मौजूद चुनाव कर्मी मतदाता की अंगुली पर यह निशान लगाकर तय कर देते हैं कि न सिर्फ उस नागरिक ने मतदान किया है, बल्कि उसका मतदान का अधिकार सुरक्षित है। यह चुनावी स्याही इतनी जिद्दी होती है कि किसी चीज से साफ नहीं होती और त्वचा की मृत कोशिकाओं के साथ ही निकलती है।

महाराजा की विरासत

इस स्याही को देश में एकमात्र कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड तैयार करती है। लोकतंत्र की अमिट निशानी बन चुकी इस स्याही का इतिहास दशकों पुराना और मैसूर राजवंश से जुड़ा है। जो कभी स्वयं शासक थे, आज उन्हीं की विरासत के निशान हर मतदाता की अंगुली पर मिलते हैं। भारत की स्वाधीनता से पहले कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश का शासन चलता था। आज भी मैसूर का हाथियों वाला विश्वप्रसिद्ध दशहरा, इसी राजवंश का उत्सव है। स्वाधीनता से पहले महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ यहां के शासक थे।

किन्हें जाता है चुनाव में स्याही को शामिल करने का श्रेय?

दुनिया के अमीर राजघरानों में गिने जाने वाले वाडियार राजवंश के कृष्णराज ने 1937 में पेंट और वार्निश की एक फैक्ट्री खोली, जिसका नाम मैसूर लाख एंड पेंट्स रखा। स्वाधीनता के कुछ समय बाद यह

फैक्ट्री कर्नाटक सरकार ने अधिग्रहीत कर ली और यहां अमिट चुनावी स्याही का उत्पादन शुरू हुआ। 1989 में इस फैक्ट्री का नाम मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) किया गया। एमपीवीएल के जरिए चुनाव आयोग या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है। यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है, लेकिन इसकी मुख्य पहचान अमिट चुनावी स्याही बनाने के लिए ही है। इस नीले रंग की स्याही को आम चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है।

विज्ञान का चमत्कार

ऐसा नहीं है कि यह आपके कलर बॉक्स से लेकर तैयार की गई स्याही है या मम्मी की नेल पालिश है। असल में इसका फॉर्मूला तो विज्ञान की प्रयोगशाला से निकलकर आया है। यही वजह है कि यह स्याही कई-कई दिन तक अंगुली पर मौजूद रहती है। इसके पीछे मेहनत थी काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के विज्ञानियों की। वर्ष 1952 में नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में इस अमिट स्याही का आविष्कार किया गया था। चुनाव के दौरान लगने वाली इस स्याही को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट नामक रसायन का उपयोग किया जाता है।

क्यों नहीं निकलती है अमिट स्याही

जब यह स्याही मतदाता की अंगुली पर लगाई जाती है तो पलक झपकने के अंतराल में ही सिल्वर नाइट्रेट शरीर में मौजूद सोडियम के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाने लगता है, जिससे यह नीली

स्याही काले रंग की हो जाती है। आपको बता दें कि सिल्वर नाइट्रेट ऐसा रसायन है जो पानी के संपर्क में आकर गहरा होता जाता है और छूटता भी नहीं है। साबुन भी इस पर बेअसर रहता है। जब धीरे-धीरे हमारी त्वचा की कोशिकाएं उतरती हैं, तब यह स्याही हल्की होने लगती है।

आज तक सीक्रेट है फॉर्मूला

इस अमिट स्याही का सटीक फार्मूला आज तक गुप्त है। ना तो नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी आफ इंडिया ने और ना ही मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने इस स्याही के फार्मूले को सार्वजनिक किया है। इसके अलावा अन्य किसी कंपनी को यह स्याही बनाने का अधिकार नहीं है। इस वर्ष लोकसभा चुनावों के लिए एमपीवीएल अब तक का सबसे बड़ा आर्डर मिला है। इस बार आम चुनाव में इस स्याही की 26.6 लाख शीशियों की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी खेप उत्तर प्रदेश और सबसे छोटी लक्षद्वीप भेजी गई है।

  • अंगुली पर स्याही लगाने की शुरुआत 1962 के लोकसभा चुनाव में फर्जी वोटिंग रोकने के लिए हुई थी।
  • 10 मिलीग्राम की एक शीशी का उपयोग 700 मतदाताओं के लिए किया जा सकता है।
  • अमिट स्याही का उपयोग 30 देशों में निर्वाचन प्रक्रिया में होता है।

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