Move to Jagran APP

Lok Sabha Election 2024: तेलंगाना की राजनीति में ‘मिनी पूर्वांचल’ अहम फैक्टर; सरकार बनाने में रखते हैं दखल, दलों के सामने इन्हें साधने की चुनौती

Telangana Lok Sabha Election 2024 तेलंगाना में एक मिनी पूर्वांचल भी बसता है जोकि वहां की राजनीति में अच्छी खासी दखल रखता है। साथ ही सरकार चुनने में भी बड़ी भागीदारी निभाता है। इसी वजह से चुनाव में हर दल इन्हें साधने का प्रयास करते हैं। जानिए किसे कहते हैं मिनी पूर्वांचल और क्या हैं यहां के लोगों के मुद्दे।

By Sachin Pandey Edited By: Sachin Pandey Published: Tue, 07 May 2024 07:29 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2024 07:29 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: तेलंगाना में करीब 15 लाख पूर्वांचली मतदाता हैं।

अरविंद शर्मा, हैदराबाद। पूर्वांचल (उत्तर प्रदेश-बिहार-झारखंड) के लोगों के बारे में आम धारणा है कि जहां होते हैं, मजदूरी करते हैं, लेकिन हैदराबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में सरकार चुनने में भी उनकी बड़ी भागीदारी होती है। ग्रेटर हैदराबाद में भी ‘मिनी पूर्वांचल’ बसता है, जो दक्षिण भारत के राजनीतिक चालों और नारों से दूर अपने श्रम की ताकत से उस राज्य की हैसियत को आगे बढ़ाता है।

loksabha election banner

सैकड़ों फैक्ट्रियों के मजदूर से लेकर उद्योगपति और सुरक्षा गार्ड से लेकर शीर्ष पदाधिकारी तक करीब 15 लाख पूर्वांचली मतदाता तेलंगाना के सैकड़ों बूथों पर जाते हैं और चुपचाप प्रत्याशियों की किस्मत तय करते हैं। हैदराबाद समेत आसपास के क्षेत्रों में बिखरे ये मतदाता अपने गृह राज्यों की तरह जात-पात में बंटे नहीं होते। किसी पार्टी विशेष या प्रत्याशी के प्रति आग्रह-दुराग्रह भी नहीं रखते हैं।

विकास है मुद्दा

तरक्की की तलाश में अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर पलायन करके आए हैं, इसलिए विकास इनके एजेंडे में है। हाथ की जगह विकास ने ले ली है। तेलंगाना की राजनीति भी इनकी अहमियत को अच्छी तरह से समझने लगी है। बाहरी लोगों के श्रम के साथ ही वोटों की कीमत भी पहचानने लगी है।

यही कारण है कि समर्थन पाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाए जाने लगे हैं। उत्तर भारतीय नेताओं और भोजपुरी कलाकारों से रोड-शो कराए जाते हैं। पांच महीने पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान भोजपुरी गायक पवन सिंह एवं अक्षरा सिंह जैसे कलाकारों को हैदराबाद की सड़कों पर घुमाया जा चुका है। इस बार प्रत्याशी उत्तर भारतीय विभिन्न संगठनों के साथ बैठकें करने में जुटे हैं। भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल यादव आठ मई को बीआरएस के समर्थन में प्रचार करेंगे।

अर्थव्यवस्था को भी दे रहे गति

दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा पूर्वांचल के लोग तेलंगाना में ही हैं। मुंबई-सूरत के बाद हैदराबाद उत्तर भारतीयों का बड़ा ठिकाना है। गृह राज्यों से सैकड़ों किलोमीटर दूर इस हाईटेक सिटी में आकर पूर्वांचल के लोग सिर्फ मजदूरी ही नहीं करते हैं, बल्कि तेलंगाना की अर्थव्यवस्था को भी गति दे रहे हैं। केसीआर की सरकार में राज्य के मुख्य सचिव से लेकर डीजीपी जैसे शीर्ष पद भी पूर्वांचलियों के हाथ में थे।

वरिष्ठ पत्रकार देव कुमार पुखराज पूर्वांचलियों को हैदराबाद की लाइफ-लाइन बताते हैं। कहते हैं-बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कामगार अगर काम करना बंद कर दें तो हैदराबाद संकट में आ जाएगा। इसीलिए कोरोना के समय केसीआर की सरकार ने बिहारी कामगारों का भरपूर ख्याल रखा था।

पूर्वांचलियों के कई संगठन

हैदराबाद में पूर्वांचलियों ने अलग-अलग कई संगठन बना रखे हैं। बिहार एसोसिएशन मुख्य और मातृ संगठन है, जिससे सारे अन्य संगठन जुड़े हैं। उत्तर भारतीयों के तेलंगाना में रच-बस जाने की झलक पांच मई को मलकाजगिरी संसदीय क्षेत्र के सफीलगुडा रेलवे गेट के पास देखा गया। हैदराबाद में केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह की जनसभा से तीन-चार घंटे पहले दोपहर की 49 डिग्री तापमान में झुलसते आम यात्रियों को राहत पहुंचाने के लिए बिहार सहयोग समिति और नार्थ पीपुल्स एसोसिएशन के लोग बटर मिल्क लेकर खड़े थे।

पटना के पास दानापुर के मूलनिवासी विनय कुमार यादव बिहार सहयोग समिति के अध्यक्ष हैं। उनके कर्मों में तेलंगाना है, लेकिन रगों में खाटी बिहारीपन है। तेलंगाना (तब अविभाजित आंध्रप्रदेश) में करीब सात दशक पहले उनके दादा के कदम पड़े थे। तीन पीढ़ियों के बाद भी विनय खुद को असली बिहारी बताते हैं और राजनीति में उसी तरह सक्रिय रहते हैं, जैसे बिहार-उत्तर प्रदेश के आम लोग।

ये भी पढ़ें- Rahul Gandhi: इन 25 कंपनियों में लगा है राहुल गांधी का पैसा, म्यूचुअल फंड और पीपीएफ में करोड़ों का निवेश; देखें पूरा ब्योरा

दर्जनों फैक्ट्रियों के मालिक हैं पूर्वांचली

सीतामढ़ी से 1991 में खाली हाथ आए राम गोपाल चौधरी की हैदराबाद में तीन फैक्ट्रियां हैं। सैकड़ों लोगों को नौकरी और हजारों को रोजगार दे रखा है। लगभग छह दशक पहले सीतामढ़ी से रामदेव मिश्रा आए थे। श्रम किया, संसाधन जुटाए, फैक्ट्री खोली और देखते-देखते कामगार से नियोक्ता बन गए।

आज हैदराबाद में सिर्फ सीतामढ़ी के श्रम-साधकों की दर्जनभर कंपनियां हैं, जिनसे हजारों पूर्वांचलियों को आर्थिक ताकत मिल रही है। रामदेव मिश्र नहीं रहे, पर उनके बेटे मानवेंद्र मिश्र खनन कारोबार में अच्छा दखल रखते हैं। उनकी मां डॉ. अहिल्या मिश्रा दक्षिण की प्रख्यात हिंदी सेवी के तौर पर राष्ट्रपति तक से सम्मानित हो चुकी हैं।

ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: दिल्ली में मनोज तिवारी सबसे अमीर प्रत्याशी, दूसरे नंबर पर इनका नाम, जानिए कितनी है संपत्ति

इसी तरह रामजी मिश्रा के बेटे संजीव मिश्रा भी पिता की औद्योगिक विरासत को विस्तार दे रहे हैं। गया जिले के परमानंद शर्मा नौकरी करने आए थे। आज पाइप फैक्ट्री के मालिक हैं। औरंगाबाद जिले के एसएन शर्मा की सुरक्षा एजेंसी में पूर्वांचलियों के साथ स्थानीय लोग भी काम कर रहे हैं।

पिछले चुनाव में किसे मिले कितने मत

  • 41.7% टीआरएस
  • 19.7% भाजपा
  • 29.8% कांग्रेस
  • 2.8% एआइएमआइएम
  • 0.5% जेएनपी

ये भी पढ़ें- अगर आप हैं जिम्‍मेदार मतदाता तो भूल कर न करें ये काम; वोट डालने से पहले इन जरूरी बातों का रखें ध्‍यान


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.