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Election 2024: जहरीली हवाओं में सांस और दूषित पानी पीने के बाद भी नहीं उठती आवाज; चुनावों में सिर्फ सड़क, बिजली और राशन पर जोर

मानवता के सामने खड़ी वायु और जल प्रदूषण सहित पर्यावरण से जुड़ी इन चुनौतियों को हल्के में इसलिए भी नहीं लिया जा सकता है क्योंकि इससे देश में हर वर्ष लाखों लोगों की असमय मौत हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल करीब बीस लाख लोगों की मौत वायु व जल प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के चलते होती है।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Published: Sun, 24 Mar 2024 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2024 06:00 AM (IST)
देश के करीब दौ सौ शहर मौजूदा समय में वायु प्रदूषण के गंभीर संकट से घिरे हैं।

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। कहावत है जान है तो जहान है। मगर यहां जान की किसी को परवाह ही नहीं है। तभी तो जहरीली हवाओं में सांस लेने और दूषित पानी पीने के बाद भी देश की बड़ी आबादी की ओर से इससे निजात की कोई मांग नहीं उठती है। चुनाव के दौरान भी नहीं।

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ये वही लोग होते हैं जो चुनाव में सड़क, बिजली, राशन और पक्के घर जैसे वादों के चलते एक दल को छोड़कर दूसरे के साथ खड़े हो जाते हैं। राजनीतिक दल इनकी प्रवृति को समझते हैं। ऐसे में वह चुनाव में लोगों को साफ हवा और पानी देने का वादा छोड़ बाकी वह सारी गारंटी देने में जुटे हैं, जिससे कुछ दिनों तक उनकी दुनिया भले खुशनुमा दिखाई देगी, लेकिन जान सांसत में ही रहेगी।

असमय मौतों का आंकड़ा बढ़ा

दरअसल मानवता के सामने खड़ी वायु और जल प्रदूषण सहित पर्यावरण से जुड़ी इन चुनौतियों को हल्के में इसलिए भी नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि इससे देश में हर वर्ष लाखों लोगों की असमय मौत हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल करीब बीस लाख लोगों की मौत वायु व जल प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के चलते होती है। खास बात यह है कि इन मौतों और तबाही को फिलहाल सभी देख रहे है फिर भी मुखर नहीं है।

जनता ने भी कभी मांग नहीं की

पर्यावरण विशेषज्ञ डा. फैय्याज खुदसर कहते है कि चुनाव में वायु प्रदूषण सहित दूसरे पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा न होने के पीछे सरकार या फिर राजनीतिक दलों की कोई गलती नहीं है, बल्कि हमने ही कभी उनसे साफ हवा, साफ पानी, स्वच्छ नदियों की मांग नहीं की। हमने सड़क, रेल, अस्पताल, हवाई अड्डे मांगे, वह हमें मिले। विकास जरूरी है, सड़कें जरूरी हैं, लेकिन कितनी। इसका कोई पैमाना है क्या? लोगों को तय करना होगा कि खुशहाल जीवन के लिए कितना विकास जरूरी है। कहीं ऐसी स्थितियां न हो जाए कि हमारे पास चकाचक सड़कें तो हों, लेकिन साफ हवा न हो।

गंभीर वायु प्रदूषण झेल रहे 200 से ज्यादा शहर

देश के करीब दौ सौ शहर मौजूदा समय में वायु प्रदूषण के गंभीर संकट से घिरे हैं। लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति देश के उन सभी छोटे और मझोले शहरों की भी है, जो विकास की दौड़ में तेजी से रफ्तार तो भर रहे हैं, लेकिन वहां की आबोहवा बेहद खराब स्थिति में पहुंच चुकी है।

सियासी समीकरणों के लिहाज से देखें तो लोकसभा की करीब ढाई सौ सीटें वायु प्रदूषण की गंभीर मार झेल रहे इन शहरों से निकलती हैं। जो किसी भी दल को सत्ता तक पहुंचाने या हटाने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। इनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, कानपुर, लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद और पटना जैसे बड़े शहर शामिल हैं। छोटे शहरों में फरीदाबाद, मुजफ्फरपुर, बहादुरगढ़ और छपरा जैसे शहर भी है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इनमें से करीब 114 शहरों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्वच्छ वायु गुणवत्ता कार्यक्रम शुरू कर रखा है। ग्रीन एनर्जी, सोलर एनर्जी जैसे क्लीन एनर्जी वाले क्षेत्रों में तेजी दिख रही है। सरकार ने यह काम किसी मांग पर नहीं, बल्कि स्थितियों को देखते हुए खुद से शुरू किए हैं।

भूमिगत जल तक हो रहा दूषित

वायु प्रदूषण के साथ स्वच्छ पानी भी बड़ा मुद्दा है, जो देश की बड़ी आबादी को आजादी के 75 वर्षों के बाद भी नसीब नहीं है। खुले में फेंके जाने वाले कचरे और रासायनिक पदार्थों से नदियां, जलाशयों से लेकर भूमिगत जल तक दूषित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी भारी बारिश और बाढ़ के रूप में दिखने लगा है।

2023 में हिमाचल प्रदेश, सिक्किम व तमिलनाडु में भारी बारिश के चलते आई तबाही को विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देख रहे है। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट की प्रमुख सुनीता नारायण का मानना है कि पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को सिर्फ घोषणा पत्र में शामिल करने से फायदा नहीं होने वाला है, बल्कि सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है।


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