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Shahdol Lok Sabha seat: यहां से हारे अजीत जोगी तो फिर MP में कभी नहीं लड़े चुनाव, सिर्फ राजपरिवार का चलता है सिक्‍का

Shahdol Lok Sabha Chunav 2024 updates देश में लोकसभा चुनाव हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपके लिए भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं शहडोल लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Published: Fri, 01 Mar 2024 05:07 PM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2024 05:07 PM (IST)
Lok Sabha Chunav 2024 : शहडोल लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी।

विनोद कुमार शुक्ला, शहडोल। Shahdol Lok Sabha Election 2024 latest news: आधे से अधिक आदिवासी मतदाताओं वाली सुरक्षित शहडोल लोकसभा सीट ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। शहडोल कभी रीवा रियासत के अधीन था। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भी शहडोल, उमरिया और अनूपपुर क्षेत्र में राज परिवारों ने वर्चस्व बनाए रखा। वर्ष 1977 के बाद शहडोल लोकसभा क्षेत्र की राजनीति तीन नेताओं-परिवारों से संचालित होती रही है।

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सत्ता की चाबी सीमित जनप्रतिनिधियों और परिवार तक सिमटी

46 वर्षों में 13 बार लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें सबसे ज्यादा पांच बार दलपत सिंह परस्ते अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह तीन बार सांसद बने, जबकि उनकी पत्नी राजेश नंदिनी सिंह ने एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता।

वर्तमान में दलबीर सिंह और राजेश नंदिनी की पुत्री हिमाद्री सिंह भाजपा से यहां की सांसद हैं। भाजपा के ज्ञान सिंह भी यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके में स्वतंत्रता के बाद से सत्ता की चाबी सीमित जनप्रतिनिधियों और परिवार तक सिमट कर ही रही।

आर्थिक गति बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा शहडोल

कोयला खदानों, बिजली प्लांट और अन्य वनोपज के माध्यम से राज्य की आर्थिक गति बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे शहडोल ने सदैव उन जनप्रतिनिधियों का चयन किया, जिनमें मतदाताओं को संभावना नजर आई। समाजवादी विचारधारा रखने वाले नेताओं ने भी इस सीट से जीत हासिल की, तो कांग्रेस ने भी लंबे समय तक शहडोल में अपना दबदबा रखा।

अजीत जोगी को करना पड़ा था छत्तीसगढ़ का रुख

यहां के मतदाता नेताओं को सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रहे। दलबीर सिंह और अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेताओं को भी यहां हार का मुंह देखना पड़ा। यहीं से केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे दलबीर सिंह को इसी सीट ने राजनीति के हाशिये पर पहुंचा दिया, तो अजीत जोगी को आखिरकार छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा। बाद में अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी बने।

कांग्रेस ने बीच में कई प्रयोग किए, लेकिन हर बार शहडोल के मतदाताओं ने नकार दिया। कांग्रेस से वर्ष 1977 में धनशाह, वर्ष 1980 में कुंदन शाह, वर्ष 1991 में हेमवंत पोर्ते, वर्ष 1999 में अजीत जोगी और वर्ष 2019 में प्रमिला सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली।

जिसके सामने चुनाव लड़ा, बाद में उनके दामाद बने

शहडोल की राजनीति में परिवारों के वर्चस्व की लड़ाई में कई अनूठे संयोग भी बने। भाजपा ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में नए चेहरे नरेंद्र सिंह मरावी को अवसर दिया। उन चेहरों से परहेज किया जो समय-समय पर सांसद या प्रत्याशी बनते रहे हैं। नरेंद्र सिंह मरावी वर्तमान सांसद हिमाद्री सिंह के पति हैं।

वर्ष 2009 के चुनाव में नरेंद्र सिंह मरावी के सामने हिमाद्री की मां राजेश नंदिनी सिंह कांग्रेस की उम्मीदवार थीं। उन्होंने नरेंद्र सिंह मरावी को हरा दिया। बाद में संयोग कुछ ऐसा बना कि नरेंद्र का विवाह हिमाद्री से हो गया और वे राजेश नंदिनी के दामाद बन गए।

शर्त- पति को पार्टी में शामिल कराओ

साल 2019 में हिमाद्री सिंह को शहडोल से टिकट देने का मन बना चुकी कांग्रेस ने उनके सामने शर्त रखी कि वह पति नरेंद्र सिंह मरावी को पार्टी में शामिल कराएं, लेकिन हिमाद्री सिंह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुईं। अंतत: उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने हिमाद्री सिंह को टिकट दिया।

हिमाद्री को भाजपा ने इसलिए पार्टी में शामिल किया था कि वे अपने गृह क्षेत्र पुष्पराजगढ़ में कांग्रेस का गढ़ खत्म कर देंगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। विधानसभा चुनाव में अनूपपुर जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में से दो में भाजपा की बड़ी जीत हुई है। पुष्पराजगढ़ विधानसभा से कांग्रेस के ही फुंदेलाल सिंह मार्को तीसरी बार लगातार विधायक चुने गए हैं।

पिछले चुनाव में प्रमुख दलों के प्रत्याशियों में अदला-बदली

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दलबीर सिंह की बेटी हिमाद्री सिंह को मैदान में उतारा, वहीं कांग्रेस ने भाजपा की बागी नेत्री प्रमिला सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया।

रीवा महाराज के समर्थन से निर्दलीय ने जीत लिया चुनाव

वर्ष 1971 का लोकसभा चुनाव भी बड़ा उलटफेर वाला रहा। रीवा राजघराने के पूर्व महाराजा मार्तंड सिंह के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार धनशाह प्रधान ने चुनाव में मैदान मार लिया। बड़े राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ा झटका था।

1996 में भाजपा ने ध्वस्त किया कांग्रेस का किला

शहडोल में वर्ष 1962 तक समाजवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। सात में से पांच विधानसभा सीटें लंबे समय तक इसी विचारधारा वाले जनप्रतिनिधियों के पास रहीं। वर्ष 1962 के बाद कांग्रेस ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की।लंबे समय से जीत से वंचित रही भाजपा ने वर्ष 1996 में कांग्रेस का किला ढहाया।

हालांकि, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने भाजपा उम्मीदवार को हरा दिया और एक बार फिर सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई।

शहडोल की ताकत

  • कुल मतदाता-17,12,640
  • पुरुष मतदाता-8,72,872
  • महिला मतदाता-8,39,738
  • थर्ड जेंडर-30

शहडोल लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा?

शहडोल लोकसभा सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र - जयसिंहनगर, जैतपुर, मानपुर, बांधवगढ़, अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बड़वारा शामिल हैं।

1952 में इन्होंने किया प्रतिनिधित्व

साल सांसद पार्टी 
1952 रणदमन सिंह किसान मजदूर पार्टी
1957 कमल नारायण सिंह कांग्रेस
1962 बुद्धु सिंह उटिया सोशलिस्ट पार्टी
1967 गिरजा कुमारी कांग्रेस
1971 धन शाह प्रधान निर्दलीय
1977 दलपत सिंह परस्ते जनता पार्टी
1980 दलबीर सिंह कांग्रेस
1984 दलबीर सिंह कांग्रेस
1989 दलपत सिंह परस्ते जनता पार्टी
1991 दलबीर सिंह कांग्रेस
1996 ज्ञान सिंह भाजपा
1998 ज्ञान सिंह भाजपा
1999 दलपत सिंह परस्ते भाजपा
2004 दलपत सिंह परस्ते भाजपा
2009 राजेश नंदिनी सिंह कांग्रेस
2014 दलपत सिंह परस्ते भाजपा
2019 हिमाद्री सिंह भाजपा

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