Move to Jagran APP

Lok Sabha Election: जिसको बहुमत से चुना अगले चुनाव में उसी की कराई थी जमानत जब्‍त, आखिर क्‍या थी जनता के जज्‍बात बदलने की वजह

1967 में बस्तर लोकसभा क्षेत्र में एक रोचक किस्सा घटा। यहां 1962 लोकसभा चुनाव में जनता ने एक शख्स पर खूब प्यार लुटाया। हुआ ये कि वह शख्स संसद पहुंच गया। मगर पांच साल में लोगों के जज्बात बदल गएं और 1967 चुनाव में मौजूदा सांसद की जमानत तक जब्त कर दी। वह आठवें पायदान पर खिसक गए। हालांकि बाद में उन्होंने राजनीति से भी किनारा कर लिया।

By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkPublished: Thu, 21 Mar 2024 06:53 PM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2024 06:53 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2024: बस्तर लोकसभा से 1962 में निर्दलीय सांसद चुने गए थे लखमू भवानी।

विनोद सिंह, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट पर एक बार जनता ने सांसद की जमानत जब्त कर दी। यह वाकया 1967 लोकसभा चुनाव का है। 1962 में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी लखमू भवानी ने संसदीय चुनाव जीता था। उन्हें कुल 46.66 प्रतिशत मत मिले थे। इस चुनाव में जनता ने उन्हें खूब प्रेम दिया था। इसकी वजह यह थी कि यहां के तत्कालीन महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव का उन्हें समर्थन प्राप्त था।

loksabha election banner

पांच साल में ही जनता के बदले जज्बात

मगर पांच साल बाद ही जनता का मूड लखमू भवानी के खिलाफ हो गया। 1967 लोकसभा चुनाव में वे जब मैदान में उतरे तो करारी हार का सामना करना पड़ा। न केवल हार बल्कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई। हालांकि लखमू भवानी को इसका अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था।

1967 में बस्तर लोकसभा सीट से आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। जब चुनाव परिणामों की घोषणा हुई तो लखमू भवानी सबसे अंतिम आठवें पायदान पर थे। उन्हें महज 2.69 फीसदी यानी कुल 5204 मत मिले थे। चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी झाडू सुंदरलाल ने बाजी मारी थी। बस्तर के इतिहास में सांसद रहते जमानत जब्त होने का यह इकलौता मामला है।

हारने के बाद राजनीति से कर लिया था किनारा

लखमू भवानी जगदलपुर से पांच किलोमीटर दूर बाबूसेमरा के रहने वाले थे। यह गांव नगरनार मार्ग पर स्थित है। लखमू भवानी की गिनती बस्तर राजपरिवार के नजदीकियों में होती थी। उनके पुत्र धनसाय भवानी बताते हैं कि राजमहल गोलीकांड में 1966 में महाराजा प्रवीरचंद का निधन हो गया था। अगले साल 1967 में लोकसभा चुनाव था। इसमें जनता ने लखमू भवानी को नकार दिया। इससे वह अंदर से टूट गए और राजनीति से किनारा कर लिया था। 1988 में लखमू भवानी का निधन हो गया था।

एक बेटा दंतेवाड़ा से बना विधायक

लखमू भवानी की सोमारी और तिरमनी दो पत्नियां थीं। दोनों पत्नियों से पांच पुत्र और सात बेटियां थीं। धनसाय भवानी के बड़े भाई सुकुलधर भवानी दंतेवाड़ा सीट से 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर विधायक बने थे।

परिवार को पेंशन नहीं मिली

लखमू भवानी का परिवार आज भी गांव में रहता है। पूर्व सांसद की दोनों में से किसी भी पत्नी को पेंशन का लाभ नहीं मिला। इसकी वजह लखमू भवानी के निधन के बाद दोनों पत्नियों के परिवार पेंशन के लिए आपसी सहमति नहीं बन सके।

यह भी पढ़ें: वामदलों के साथ क्या गलेगी कांग्रेस की दाल? 12 सीटें छोड़ने को तैयार, अगर ऐसा हुआ तो त्रिकोणीय होगा मुकाबला

यह भी पढ़ें: पंजाब की इस सीट से पूर्व सीएम चन्नी हो सकते हैं उम्मीदवार, बस घोषणा का इंतजार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.