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Lok Sabha Election: प्रकाश आंबेडकर को नहीं मिल रहीं मुंह मांगी सीटें, गठबंधन में ही रंग जमा सके बाबा साहब के सियासी वारिसदार

महाराष्ट्र में वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर की अभी महाविकास आघाड़ी में सीटों पर सहमति नहीं बनी है। वह जितनी सीटें मांग रहे हैं महाविकास आघाड़ी उन्हें उतनी सीटें नहीं देना चाह रहा है। प्रकाश आंबेडकर बाबासाहब आंबेडकर के पौत्र हैं। अन्य दलों के साथ गठबंधन में ही उनकी पार्टी की ताकत दिखती है। इस लोकसभा चुनाव में उन पर सभी की निगाहें हैं।

By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkPublished: Thu, 21 Mar 2024 12:00 AM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2024 12:00 AM (IST)
लोकसभा चुनाव 2024: गठबंधन में ही रंग जमा पाए बाबा साहब के सियासी वारिसदार। फाइल फोटो।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष एवं बाबासाहब आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर इन दिनों भारी दुविधा में दिखाई दे रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (रांकापा) और कांग्रेस का गठबंधन महाविकास आघाड़ी उन्हें उतनी सीटें कतई देने को तैयार नहीं है, जितनी वह मांग रहे हैं। अब तक देखा यही गया है कि बाबासाहब के राजनीतिक वारिसदार अपनी भरपूर शक्ति होने के बावजूद बड़े राजनीतिक दलों के गठबंधन में ही अपना रंग जमा पाए हैं। अपना स्वतंत्र रसूख दिखाने में वह अक्षम साबित हुए हैं।

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गठन के बाद गुटों में बंट गई रिपब्लिकन पार्टी

बाबा साहब आंबेडकर ने 1952 का पहला लोकसभा चुनाव शेड्यूल कास्ट फेडरेशन नामक दल के बैनर पर लड़ा था। उनकी मृत्यु के बाद तीन अक्टूबर, 1956 को रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया गया लेकिन जल्दी ही इस पार्टी की अनेक शाखाएं-उपशाखाएं और गुट निकलते चले गए और इसके नेता बीसी कांबले, बैरिस्टर खोब्रागडे, दादा साहब रूपवते और आरडी भंडारे आदि अपनी-अपनी सुविधानुसार अपने मार्ग तलाशते गए।

चुनाव के समय इन शाखाओं-उपशाखाओं में कभी-कभी एकता का उबाल भी आता रहा लेकिन थोड़े समय बाद ही फिर से अपनी ढपली–अपना राग का किस्सा चरितार्थ होता रहा।

चार बार एकजुट हो चुके रिपब्लिकन विचारों के नेता

अब तक चार बार 1966, 1974, 1989 और 1996 में रिपब्लिकन विचारों के नेताओं में एकता हो चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा फलदायी एकता 1996 की रही, जो स्वयं बाबासाहब आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर के प्रयासों से संभव हुई। इस एकता के बाद 28 जनवरी, 1996 को पहली बार मुंबई का वही शिवाजी पार्क वंचित समाज की उस विशाल रैली का साक्षीदार बना था, जिसमें पिछले रविवार को राहुल गांधी के नेतृत्व में आइएनडीआइए की रैली हुई।

जब कांग्रेस से हुआ रिपब्लिकन पार्टी का समझौता

इस वंचित एकता का ही चमत्कार था कि तब की अविभाजित कांग्रेस (शरद पवार तब कांग्रेस से अलग नहीं हुए थे) से एकीकृत रिपब्लिकन पार्टी का चुनावी समझौता हुआ। समझौते में उसे चार सीटें मिलीं और वह चारों सीटें जीतने में सफल रही। रिपब्लिकन पार्टी के इतिहास में तब पहली बार एक साथ चार रिपब्लिकन नेता प्रकाश आंबेडकर, रामदास आठवले, आरएस गवई और जोगेंद्र कवाड़े एक साथ चुनकर लोकसभा में पहुंचे।

10 सीटों पर सिमट गया था भाजपा-शिवसेना गठबंधन

दूसरी ओर कांग्रेस को भी इस गठजोड़ का भरपूर लाभ मिला। उसके भी 33 सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंचे। और तब महाराष्ट्र की सत्ता में रहा शिवसेना-भाजपा गठबंधन सिर्फ 10 सीटों पर सिमटकर रह गया था। लेकिन एकता का मीठा स्वाद चखने के बावजूद रिपब्लिकन नेता इसे आगे नहीं बढ़ा सके।

प्रकाश आंबेडकर की भारी-भरकम मांग उन्हें किसी भी दल के नजदीक जाने से रोकती रही, तो रामदास आठवले लंबे समय तक कांग्रेस के पिछलग्गू ही बने रहे। उन्हें सत्ताधारी दल के करीब रहनेवाले नेता के रूप में ही जाना जाता है। 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद आठवले कुछ समय तक शिवसेना के साथ रहे। फिर वह भाजपा के साथी बनकर फिलहाल केंद्र में मंत्री बने हुए हैं।

ये है प्रकाश आंबेडकर की ताकत

प्रकाश आंबेडकर की अपनी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम से गठजोड़ करके चुनाव लड़े और करीब एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस और राकांपा को हरवाने में बड़ी भूमिका निभाई।

यह और बात है कि उस चुनाव में स्वयं दो स्थानों से लड़कर भी वह एक भी सीट से जीत नहीं पाए लेकिन एआइएमआइएम को तो औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजी महाराज नगर) की सीट जितवाने में सफल रहे ही। तब उनकी पार्टी को महाराष्ट्र में 14 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि राकांपा को 15.52 प्रतिशत और कांग्रेस को 16.27 प्रतिशत वोट मिले थे।

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