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Election 2024: कागजी शेर साबित हुआ NOTA, SC के निर्देश पर ईवीएम में जोड़ा गया था यह विकल्प

एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में राज्य विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में संयुक्त रूप से नोटा को 1.29 करोड़ से अधिक वोट मिले हैं फिर भी दोनों चुनावों में आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि नोटा का कोई खास असर नहीं पड़ रहा है।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Published: Thu, 14 Mar 2024 04:02 AM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2024 04:02 AM (IST)
नोटा के बावजूद दागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नोटा यानी इनमें से कोई नहीं। मतदाता यदि किसी भी प्रत्याशी को चयन योग्य नहीं मानता तो नोटा का बटन दवा सकता है। लोकतांत्रिक अधिकार सशक्त करने संग चुनावी परिदृश्य सुदृढ़ करना भी इसका एक उद्देश्य था । किंतु अभी तक नोटा कागजी शेर ही साबित हुआ है।

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ऐसे हुई नोटा की शुरुआत

सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2013 में चुनाव आयोग को बैलेट पेपर / ईवीएम में जरूरी प्रविधान करने के निर्देश दिए, जिससे मतदाता चुनाव में उतरे उम्मीदवारों में से किसी को भी वोट न देने का फैसला कर सकें। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम में नोटा बटन आखिरी विकल्प के तौर पर जोड़ा।

दागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी

एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में राज्य विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में संयुक्त रूप से नोटा को 1.29 करोड़ से अधिक वोट मिले हैं, फिर भी दोनों चुनावों में आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि नोटा का कोई खास असर नहीं पड़ रहा है।

तीसरे नंबर पर रहा नोटा

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक नोटा वोट (51,660 ) बिहार के गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र में डाले गए थे। तब यहां नोटा को कुल वोट के 5.03 प्रतिशत मिले और वह तीसरे स्थान पर रहा।

नोटा को ताकतवर बनाने की जरूरत

एक्सिस इंडिया के चेयरमैन प्रदीप गुप्ता का कहना है कि नोटा से कम वोट पाने वालों को दोबारा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलना चाहिए। अभी ऐसा कोई नियम नहीं है। ऐसे में बहुत से मतदाता सोचते हैं कि नोटा चुनने का क्या मतलब है? नोटा को ताकतवर बनाने की जरूरत है।

नोटा के पहले था यह विकल्प

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास फार्म 49- ओ भरने का विकल्प था। मतदाता को मतदान केंद्र पर 49- ओ फार्म भरना पड़ता था। हालांकि, इस प्रक्रिया में मतदाता की पहचान गोपनीय नहीं रहती थी।


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