Lok Sabha Election 2024: विकास के मुद्दे का जातीय दांव से संघर्ष, बेमानी हुआ नेताओं का कद और प्रभाव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मतदाता अब किसी एक पार्टी की मुट्ठी में नहीं है। पश्चिम की हवा बदली नजर आ रही है। मुजफ्फरनगर रामपुर मुरादाबाद या बदायूं जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी न तो सपा बसपा या कांग्रेस के लिए ग्रीन सिग्नल है और न ही ध्रुवीकरण का दांव भाजपा के लिए रेड कार्पेट बिछाने की स्थिति में है। पढ़िए विस्तृत समीकरण।
जितेंद्र शर्मा, मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर के टिकैत चौराहे पर भाजपा का एक बड़ा सा होर्डिंग लगा है- 'भयमुक्त मुजफ्फरनगर'। यह दो शब्द न होकर उस जनता को भाजपा का संदेश है, जिसने 2013 में दंगे का दंश झेला, क्योंकि जातीय दांव से मुकाबले का माद्दा सिर्फ विकास और खास तौर पर पश्चिम के लिए महत्वपूर्ण रहे कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे में ही है। पश्चिम की हवा बदली नजर आ रही है। मुजफ्फरनगर, रामपुर, मुरादाबाद या बदायूं जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी न तो सपा, बसपा या कांग्रेस के लिए 'ग्रीन सिग्नल' है और न ही ध्रुवीकरण का दांव भाजपा के लिए 'रेड कार्पेट' बिछाने की स्थिति में है।
बसपा ने प्रभावित किए समीकरण!
जिस तरह मेरठ में बसपा का वोटबैंक माने जाने वाले दलितों में उसी वर्ग की सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा चर्चा में हैं, तो मुजफ्फरनगर में ओबीसी के बीच दारा सिंह प्रजापति को उतारकर बसपा ने समीकरण प्रभावित कर दिए। रामपुर बेशक रामपुरी चाकू की तरह आजम खां के नाम से प्रसिद्धि पाता रहा हो, लेकिन मुस्लिम उनके लिए भी आन अड़ाता नहीं दिख रहा और मुरादाबाद में डॉ. एसटी हसन 'कोप भवन' में अकेले बैठे हैं। संकेत साफ हैं कि पश्चिम का मतदाता अब किसी की मुट्ठी में नहीं है।
मुजफ्फरनगर सीट पर 18 लाख मतदाता
जातीय समीकरणों का चुनौतीपूर्ण जाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट पर देखने को मिलता है। लगभग 18 लाख मतदाताओं में सबसे अधिक करीब छह लाख मुस्लिम यहां समाजवादी पार्टी का संबल हैं तो तीन लाख की संख्या के साथ दलित आबादी बसपा को आस बंधाती है। इसके बाद यहां सबसे अधिक प्रभाव लगभग दो लाख वोटों का दम रखने वाले जाटों का है। इन्हीं समीकरणों को देखते हुए राजनीतिक दल अपने दांव चलते हैं।
सपा और बसपा ने इन पर जताया भरोसा
भाजपा ने वर्तमान सांसद व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान पर ही फिर भरोसा जताया है, लेकिन सपा और बसपा ने इस बार यहां पूरी रणनीतिक समझदारी दिखाई है। सपा मुखिया अखिलेश यादव को विश्वास है कि मुस्लिम उनके लिए एकजुट रहेगा ही, इसलिए जाटों का भी वोट बटोरने के लिए हरेन्द्र मलिक को मैदान में उतार दिया। इसी तरह बसपा प्रमुख मायावती को भरोसा है दलित उनके पाले में आएगा, मुस्लिम भी साथ आ सकते हैं और 80 हजार वोटों की भागीदारी रखने वाले प्रजापति समाज से दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी बनाकर वह भाजपा के ओबीसी वोटबैंक में भी सेंध लगा सकती हैं।
जाट और ठाकुर वोटों का समीकरण
इस बीच यह हवा बनाई गई और चुनाव करीब आते-आते ठाकुरों के चौबीस गांवों की पंचायत मेरठ के खेड़ा गांव में आयोजित कर बालियान के विरोध और हरेन्द मलिक के समर्थन का एलान कर दिया गया। सपा बेशक इससे उत्सहित है, लेकिन भाजपा बहुत परेशान नहीं। बालियान के चुनाव के कार्यालय के पास ही भाजपा का पटका डाले खड़े सरनाम सिंह कहते हैं- 'वैसे तो ठाकुर भाजपा का एकजुट होकर विरोध कर नहीं सकते और यदि मान भी लें कि सारा 80 हजार उनका वोट सपा के पास चला जाए तो भाजपा के साथ जाट खड़ा हो गया है।'
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भाजपा की इन मतदाताओं पर पकड़
वह तर्क देते हैं-'जाट संजीव बालियान को अपना नेता मानते हैं। पिछली बार उनका मुकाबला चौ. अजित सिंह जैसे कद्दावर नेता से था। सपा-बसपा मिलकर लड़े तो मुस्लिम भी साथ था। इसके बावजूद संजीव बालियान जीत गए, क्षेत्र में सुधरी कानून एवं व्यवस्था के चलते वैश्य, ब्राह्मण और पंजाबी सहित ओबीसी पर भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। अब तो जयन्त चौधरी भी साथ हैं।' वहीं, भोपा रोड निवासी संजय प्रजापति दावा करते हैं कि बसपा पूरी तरह बेअसर नहीं है। हाल ही में मायावती की जनसभा हुई तो उसमें दलितों के अलावा प्रजापति और मुस्लिम भी पहुंचे थे। गांधी कालोनी के कारोबारी दिनेश सैनी सुधरी कानून एवं व्यवस्था का हवाला देते हैं।
मुरादाबाद में 48 फीसद मुस्लिम मतदाता
जाटों के प्रभाव की धरती छोड़कर उस मुरादाबाद को देखते हैं, जहां 48 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता होने के बावजूद सपा ने वर्तमान सांसद डॉ. एसटी हसन का वोट काटकर वैश्य वर्ग से ताल्लकु रखने वाली रुचि वीरा को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने कुंवर सर्वेश सिंह पर दांव चला है तो बसपा ने इरफान सैफी को इस उम्मीद से उतारा है कि मुस्लिम खिंचा चला आएगा। इस बीच सबकी दिलचस्पी इस बात में हैं कि टिकट कटने से नाराज एसटी हसन कितना असर डाल पाएंगे। कपूर कंपनी पर पान की दुकान चलाने वाले उमाकांत शर्मा जरूर कहते हैं कि एसटी हसन के समर्थक भले ही बोलें नहीं, लेकिन उनकी नाराजगी सपा के वोट को प्रभावित कर सकती है।
आजम के गढ़ में आया बदलाव!
वह राम मंदिर का प्रभाव मानते हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी कुंवर सर्वेश सिंह और बसपा प्रत्याशी इरफान सैफी जिस ठाकुरद्वारा के मूल निवासी हैं, वहां के निवासी हाफिज वारिस अली और शाकिर अली मानते हैं कि न बसपा असर डालेगी और न हसन की नाराजगी। रामपुर की चकाचक सड़कें बताती हैं कि सपा महासचिव आजम खां का क्या राजनीतिक रसूख रहा है, लेकिन इस चुनाव में मुस्लिम मतों की ठेकेदारी उनके हाथ में कितनी है, यह उन्हीं के मोहल्ले यानी घेर मीर बाज खां निवासी आरिफ रजा खां से जान लीजिए। वह आजम के पड़ोसी हैं, लेकिन घर पर भाजपा का झंडा लगा है। कहते हैं कि घनश्याम लोधी अच्छे प्रत्याशी हैं। सपा यहां दोफाड़ है और एक धड़ा अपने ही प्रत्याशी मौलाना मोहिबुल्लाह के विरोध में है।