Election 2024: कांग्रेस को सींचते-सींचते रूठी मराठवाड़ा की सूखी धरती, अब हाथ के साथ खड़े उद्धव के जनाधार का भी परीक्षा का समय
शिवसेना (शिंदे गुट) अब भाजपा के साथ है तो असली परीक्षा शिवसेना (उद्धव गुट) के जनाधार की है जो कमजोर हो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण के पाला बदलने से और कमजोर हो चुकी कांग्रेस का हाथ थामे खड़ी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हाल ही में मराठवाड़ा के गढ़ में एक बड़ी सभा को संबोधित करके आगामी लोकसभा का चुनावी बिगुल फूंक गए हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। समय बदला, सत्ता के सिंहासन पर चेहरे भी बदले, लेकिन नहीं बदली तो वह थी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में जल संकट की कहानी । आखिरकार, कांग्रेस को वर्षों तक सींचते -सींचते यह सूखी धरती जो रूठी तो कांग्रेस की जड़ें कमजोर होती चली गईं। जिस अंचल ने महाराष्ट्र को चार चार मुख्यमंत्री दिए हों, वहां कांग्रेस की मजबूती का सहज अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन आठ संसदीय सीट वाले मराठवाड़ा में 1995 में शिवसेना और भाजपा ने मिलकर पसीना बहाया तो उस धरती पर 'कमल' खिलना शुरू हुआ।
इतना ही नहीं शिवसेना का तीर सटीक निशाने पर लगा, लेकिन अब वहां राजनीतिक हालात बदले हुए हैं। शिवसेना (शिंदे गुट) अब भाजपा के साथ है तो असली परीक्षा शिवसेना (उद्धव गुट) के जनाधार की है, जो कमजोर हो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण के पाला बदलने से और कमजोर हो चुकी कांग्रेस का हाथ थामे खड़ी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हाल ही में मराठवाड़ा के गढ़ में एक बड़ी सभा को संबोधित करके आगामी लोकसभा का चुनावी बिगुल फूंक गए हैं।
कभी हैदराबाद निजाम की रियासत का हिस्सा रहे मराठवाड़ा से कांग्रेस के पुराने रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए अशोक चह्वाण स्वयं तीन साल (दो बार शपथ लेकर ) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे ही, उनके पिता शंकरराव चह्वाण भी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। एक ही परिवार के इन दो नेताओं के अलावा विलासराव देशमुख जैसे दिग्गज और लोकप्रिय नेता भी मराठवाड़ा से ही आते थे। वह राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे।
एक और मुख्यमंत्री शिवाजीराव निलंगेकर भी मराठवाड़ा के ही थे। नेताओं की इस श्रृंखला को देखकर समझा जा सकता है कि यहां कांग्रेस कितनी मजबूत रही होगी । इसमें सेंध लगना 1995 में तब शुरू हुआ, जब राज्य में शिवसेना-भाजपा ने साझा सरकार बनाई। उन दिनों मराठवाड़ा में भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे अपनी राजनीति के शिखर पर थे। वह राज्य के उपमुख्यमंत्री बने थे और शिवसेना भी वहां अपना विस्तार करने लगी थी।
2009 आते-आते भाजपा और शिवसेना ने संसदीय सीटों के मामले में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को पीछे छोड़ दिया। तब शिवसेना तीन और भाजपा दो सीटें जीती थी, लेकिन 2014 की नरेन्द्र मोदी लहर में भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चहाण नांदेड़ की सीट अपनी पत्नी अमिता के लिए तो अपने पड़ोस की हिंगोली सीट राहुल गांधी के करीबी नेता रहे राजीव सातव के लिए जितवाने में सफल रहे।
इसके अलावा महाराष्ट्र में कांग्रेस को कहीं और कोई सीट नहीं मिली, जबकि भाजपा और शिवसेना दोनों ने मराठवाड़ा में तीन-तीन सीटें जीतीं। 2019 में भाजपा की एक सीट और बढ़ गई, जबकि शिवसेना तीन पर ही रही। तब औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजी महाराज नगर) के नाम से जानी जाने वाली एक सीट असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम के हिस्से में गई और कांग्रेस शून्य पर जा पहुंची। बता दें कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट चंद्रपुर की हासिल हुई थी। अब वहां से सांसद चुने गए सुरेश धानोरकर का देहांत हो चुका है।
अशोक चह्वाण से भाजपा को मिल सकता है लाभ
लोकसभा सदस्य के मामले में शून्य पर पहुंच चुकी कांग्रेस को हाल ही में तगड़ा झटका तब लगा, जब दो बार मुख्यमंत्री एवं एक लंबे कार्यकाल तक प्रदेशाध्यक्ष रहे उसके वरिष्ठ नेता अशोक चह्वाण ने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी। अभी तो अशोक चह्वाण के साथ उनके समर्थक एक विधान परिषद सदस्य ही भाजपा में शामिल हुए हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि विधानसभा सदस्यों में भी अशोक चह्वाण करीब दो दर्जन विधायक चह्वाण के संपर्क में हैं।
मराठवाड़ा के राजनीतिक विश्लेषक जयप्रकाश नांगला कहते हैं कि अशोक चह्वाण का जनसंपर्क बहुत अच्छा है। इसका लाभ भाजपा को न सिर्फ मराठवाड़ा में, बल्कि उनके क्षेत्र नांदेड़ से सटे पड़ोसी राज्य तेलंगाना की कई लोकसभा सीटों पर मिल सकता है। देखना यह रोचक रहेगा कि अब तक भाजपा के साथ कदमताल करते हुए पिछले तीन चुनावों से तीन-तीन सीटें जीतती रही शिवसेना इस बार विभाजन के बाद कांग्रेस की संगत में वही से कितनी सीटें निकाल पाती है।