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Lok Sabha Election 2024: ब्रज में लापता ‘जातियों का गुरूर’ कहीं विकास के सुबूत से आस तो कहीं चेहरा पैरोकार

UP Lok Sabha Election 2024 उत्तर प्रदेश में सभी दलों ने जाति समीकरणों को ध्यान में रखकर ही प्रत्याशियों का चयन किया है। लेकिन अहम सवाल है कि जाति यहां पर कितना प्रभावित कर पाएगी और लोग किन मुद्दों पर वोट कर रहे हैं। पढ़ें ब्रज की आगरा मथुरा और फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीटों से ग्राउंड रिपोर्ट और जानिए क्या है लोगों के विचार।

By Sachin Pandey Edited By: Sachin Pandey Published: Wed, 24 Apr 2024 09:12 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2024 09:12 AM (IST)
Lok Sabha Election 2024: जनता की अदालत में दो टूक सवाल है कि पांच साल कहां थे?

जितेंद्र शर्मा, आगरा। जातिगत वोटों की अकड़न है तो उसे दफना आईए यमुना की खादर में। बिरादरी का बल न ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे को पार करा आसानी से दिल्ली पहुंचा सकता है और ना ही प्रेमनगरी आगरा ऐसे मोहपाश में फंसी दिख रही।

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तमाम संसदीय सीटों पर लोकतंत्र को दंश दे रही जातीय राजनीति के फन पर कम से कम इन सीटों का मतदाता वैसे ही नाच रहा है, जैसे कालिया के फन पर कृष्ण-कन्हैया। जातियों का गुरूर बृज रज में मिलाकर फिलहाल तो जनता की अदालत में दो टूक सवाल है कि पांच साल कहां थे? हर प्रत्याशी कठघरे में है, खास तौर पर दोबारा मैदान में उतरे सत्ताधारी दल के सांसद।

विकास के सुबूत से आस

आगरा और मथुरा में विकास के सुबूत पेश कर राहत की आस लगाई जा रही है तो फतेहपुर सीकरी में राष्ट्रवाद की दलीलों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे की पैरोकारी पर विश्वास। सुनवाई चल रही है... देखते हैं कि चार जून को जनता क्या निर्णय सुनाती है।

फतेहपुर सीकरी सीट के अंतर्गत जाट बहुल कई गांव होने की वजह से इसे जाटों से प्रभावित माना जाता है, लेकिन सबसे अधिक करीब साढ़े तीन लाख मतदाता क्षत्रिय तो दूसरे स्थान पर लगभग तीन लाख ब्राह्मण हैं। ठाकुरों और एक लाख मुस्लिमों के भरोसे कांग्रेस और सपा ने रामनाथ सिकरवार पर दांव लगाया है तो ब्राह्मणों के अलावा करीब ढाई लाख जाटवों से आस जोड़ रामनिवास शर्मा को टिकट दे दिया।

जातीय गोलबंदी नहीं

जातीय गोलबंदी आकार लेती तो चुनावी तस्वीर काफी साफ हो गई होती, लेकिन ऐसा है नहीं। रास्ता इनका साफ नहीं तो जाट, ब्राह्मण और वैश्यों के सहारे मैदान में उतरे भाजपा प्रत्याशी और मौजूदा सांसद राजकुमार चाहर के लिए भी इस बार दिल्ली इतनी पास नहीं है।

खेरागढ़ विधानसभा क्षेत्र का गांव है भिलावली। यहां सबसे अधिक आबादी क्षत्रिय और उसमें भी सिकरवारों की है, जिस बिरादरी से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। युवा अनुज प्रताप सिकरवार कहते हैं- ‘रामनाथ सबसे अच्छे प्रत्याशी हैं, क्योंकि जब बुलाओ, तब चले आते हैं। राजकुमार चाहर तो पांच साल में कभी आए ही नहीं।’

नीतियों का प्रभाव

वहीं, कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष रहे बुजुर्ग शेर सिंह सिकरवार कांग्रेस प्रत्याशी से व्यक्तिगत रिश्तों का दावा करते हैं, लेकिन विचार अलग हैं। अपने सांसद से खुश नहीं, लेकिन कहते हैं- ‘मोदी की कार्यशैली अद्वितीय है, हम तो राष्ट्रहित में ही वोट देंगे।’ दूधाधारी चौकी पर खड़े धनंजय सिंह, बनवारी लाल सिंह और प्रताप सिंह एकराय हैं कि सिर्फ मोदी-योगी का चेहरा दिख रहा है। बंशीधर शर्मा सजातीय बसपा प्रत्याशी की बात ही नहीं करते और कांग्रेस की नीतियों से प्रभावित हैं।

अब चलते हैं चाहरवाटी, जहां भाजपा प्रत्याशी का गांव है। गहरी की प्याऊ पर ताश खेल रहे नवल सिंह चाहर और राम प्रसाद चाहर को कोई फर्क नहीं पड़ता कि राजकुमार चाहर उनकी बिरादरी के हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भाजपा के बागी रामेश्वर चौधरी भी जाट हैं। कहते हैं- चाहर ने तो अपने क्षेत्र तक की सुधि नहीं ली, लेकिन इसमें मोदी का क्या दोष है?

आगरा में भी जाति फैक्टर नहीं

अब चलते हैं आगरा लोकसभा क्षेत्र। इसे दलितों की राजधानी कहते हैं, क्योंकि लगभग ढाई लाख मतदाता जाटव हैं। बसपा प्रमुख मायावती इसी बिरादरी से हैं। बसपा ने इसी प्रभावी जाटव जाति वर्ग से पूजा अमरोही को टिकट दिया तो सपा ने भी जाटव वर्ग से सुरेश कर्दम पर दांव लगा दिया।

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भाजपा ने वर्तमान सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल को दोबारा उम्मीदवार बनाया है। मगर प्रेम की नगरी में जातीय मुहब्बत नहीं दिखी। बिजली घर चौराहे पर फुटपाथ पर रखकर जूते बेच रहे अनिल पारस कहते हैं- ‘हमें कोई मतलब नहीं कि किस पार्टी से कौन प्रत्याशी है। पहले कच्चे घर में जूते गांठते थे और अब पक्का घर है, मुफ्त राशन है। हम सिर्फ मोदी को जानते हैं।’

फतेहाबाद रोड पर चाय की दुकान चलाने वाले भगवान दास उपाध्याय किसी का नाम नहीं लेते। हाल ही में बनकर तैयार हुए मेट्रो स्टेशन की ओर इशारा करते हैं और कहते हैं- ‘हमारा वोट विकास के साथ।’ वहीं, पास खड़े जमील आगरा के इस बदलाव और बयान को खारिज नहीं करते। कहते हैं- ‘दूसरा कोई अच्छे से लड़ ही नहीं रहा। बघेल के साथ मोदी का चेहरा है।’

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मथुरा

थोड़ा सा मथुरा भी झांक लेते हैं। यहां लगभग साढ़े चार लाख जाट और दो लाख जाटव वोटर हैं। इन्हें रिझाने के लिए बसपा ने जाट बिरादरी के सुरेश सिंह पर विश्वास जताया है तो सपा ने एक-एक लाख धनगर व मुस्लिमों के सहारे मुकेश धनगर से उम्मीद जोड़ी है, लेकिन भाजपा ने हेमा मालिनी को ही टिकट दिया है। अब कोई अभिनेता धर्मेंद्र से विवाह के चलते हेमा को जाट माने तो उसकी श्रद्धा, लेकिन मूलत: हेमा तमिलनाडु की अयंगर ब्राह्मण हैं। जाति के फन पर ब्रजवासी न नाचते तो इस बार बसपा के सुरेश सिंह का रास्ता साफ दिखता और रालोद 2014 व 2019 में न हारती।

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