Move to Jagran APP

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव, ताकि बरकरार रहे सुरक्षा

अगर कोई ऐसा मंत्र हो जिससे एक दिन में ही स्वतंत्र निष्पक्ष और सुरक्षित चुनाव कराना संभव हो तो उसे फूंका जा सकता है लेकिन जब तक वह मंत्र नहीं है तब तक लंबे चुनाव ही आदर्श रहेंगे

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 19 May 2019 04:27 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 04:27 PM (IST)
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव, ताकि बरकरार रहे सुरक्षा
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव, ताकि बरकरार रहे सुरक्षा

एसवाई कुरैशी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों को किसी उत्सव सरीखा मनाया जाता है। खासकर लोकसभा चुनावों के दौरान तो लोगों पर यह उत्सवधर्मिता सिर चढ़ कर बोलती है। लेकिन इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि उत्सव मनाने की भी अपनी समयसीमा होती है। उत्सव अगर उबाऊ, थकाऊ और जबरदस्ती का लंबा खिंचने वाला हो जाए तो उसका रंग फीका हो जाता है। 17वीं लोकसभा के चुनावों के पहले चरण का आगाज 11 अप्रैल को हुआ। 19वीं मई यानी आज के दिन समापन वाले सातवें चरण तक इस चुनावी प्रक्रिया के 39 दिन पूरे हो गए। यह देश और दुनिया का अब तक का सबसे लंबा चुनाव बन गया है। अगर नतीजों को भी जोड़ लिया जाए तो करीब डेढ़ महीने तक चले इस महासमर में भला कौन नहीं अधमरा हो जाएगा।

loksabha election banner

बहरहाल लोकतंत्र को मजूबत करने के नाम पर सब खुशी-खुशी तमाम परेशानियों को झेलते रहते हैं। चुनावी कार्यक्रमों की घोषणा के साथ आचार संहिता लागू हो जाती है। नई नीतियों-योजनाओं पर पहरा लग जाता है। भारत जैसे देश में जहां योजनाओं के क्रियान्वयन की फाइलें पहले से ही कच्छप चाल से चलती हैं और चल रही परियोजनाओं में लंबितों की बड़ी हिस्सेदारी होती है, वहां डेढ़ महीने का ठपाठप मायने रखता है। जब हम सुनते हैं कि इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे देश (भले ही हमसे वो एक तिहाई ही हैं) अपना राष्ट्रीय चुनाव एक दिन में करा लेते हैं तो आज के सूचना और तकनीक के इस युग में हम खुद को बहुत पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं। लंबी चुनावी प्रक्रिया के पीछे का तर्क है कि जिससे हर नागरिक निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से अपने मत का इस्तेमाल कर सके। विचार नीति-नियंताओं को करना है, जनता-जनार्दन तो सिर्फ बोल ही सकती है- लोकतंत्र अमर रहे।

जब से मार्च में 2019 के आम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की गई है, तब से लंबे और उबाऊ चुनावों का मसला लगातार उठाया जा रहा है। यह पहली बार नहीं है, पहले भी चुनाव आयोग के चुनाव कार्यक्रमों को लेकर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र, निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित कराते हुए आयोग को जो तमाम बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उसको भी हमें ध्यान रखना होगा। यह चुनाव विश्व इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा चुनाव है, जिसमें 90 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें से 1.5 करोड़ 18-19 आयु वर्ग के हैं।

यहां के कुल मतदाताओं की संख्या एशिया के अलावा किसी भी महाद्वीप की कुल आबादी से ज्यादा है। दस लाख मतदान केंद्र हैं, 2014 के चुनावों से 10.1 फीसद ज्यादा; 23 लाख से ज्यादा बैलट यूनिट, 16 लाख से ज्यादा कंट्रोल यूनिट और 17 लाख से ज्यादा वीवीपैट। लगभग 1.1 करोड़ मतदान कर्मचारियों (सुरक्षा बलों सहित) को निष्पक्ष चुनाव के लिए तैनात किया गया। हाथी, नौका, ऊंट से लेकर विमान और हेलीकॉप्टर जैसी परिवहन की एक बड़ी विविधता के अलावा 3 हजार कोचों के साथ 120 ट्रेनें, दो लाख बसें और कारों से कर्मचारियों और सामग्रियों को समय से पहले मतदान केंद्र पहुंचाया गया।

हजारों कर्मचारी सुदूर और दुर्गम रास्तों पर दो-तीन दिन लगातार चलकर मतदान केंद्रों तक पहुंच पाए। यह चुनाव 543 निर्वाचन क्षेत्रों को कवर करते हुए 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में आयोजित किया गया है। हालांकि इससे पिछले तीन चुनाव क्रमश: 20 अप्रैल से 10 मई (चार चरणों), 16 अप्रैल से 13 मई (पांच चरणों) और 7 अप्रैल से 12 मई (नौ चरणों) में हुए हैं। चूंकि भारत की आबादी किसी महाद्वीप सरीखी है और इसकी अप्रत्याशित विविधता (सांस्कृतिक और भौगोलिक) है। जिसकी वजह से देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना आवागमन के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सुरक्षा कारणों की वजह से भी बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि चुनाव आयोग लोकसभा के चुनावों को कराने में इतना लंबा समय लेता है। लंबे चुनावी कार्यक्रम का मकसद शांतिपूर्ण तरीके से चुनावों को संपन्न कराना होता है। चुनाव पूर्व और मतदान के दिन हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान चली जाती थी। इसके लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती की जरूरत होती है, जो अब हर राजनीतिक दल की मांग होती है।

मुझे याद है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन बलों की तैनाती की मांग की थी, भले ही वे चुनाव दस चरणों में कराए जा रहे थे। इसका सीधा सा मतलब निकाला जा सकता है कि उन्हें अपने राज्य की पुलिस पर भी भरोसा नहीं था। यही भारतीय राजनीति की दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है। माना जाता है कि राज्य की पुलिस स्थानीय दबाव में गड़बड़ कर सकती है।

हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के इस युग में इसके नकारात्मक प्रभाव भी हैं। सोशल मीडिया और वाट्सएप के दौर में एक उबाऊ कार्यक्रम के साथ आदर्श आचार संहिता को लागू करना कठिन हो जाता है। हालांकि ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन अफवाहें शांतिपूर्ण माहौल तेजी से बिगाड़ती हैं। फिर भी, शांतिपूर्ण और रक्तहीन चुनावों के लिए लंबे चुनाव अपरिहार्य हैं।

इन सबके बीच सुरक्षा का महत्व तब और भी बढ़ जाता है, जब हम चल रहे चुनावों में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की घटनाओं पर विचार करते हैं। आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आजम खान पर तीन दिनों के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी। साथ ही रैलियों में सांप्रदायिक भाषण और मतदाताओं को धमकी देने पर बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और भारतीय जनता पार्टी की नेता मेनका गांधी पर अगले 48 घंटे तक चुनाव प्रचार पर रोक लगा दिया।

क्या एक दिन में मतदान संभव है? क्या यह वांछनीय नहीं है? दोनों सवालों का जवाब हां है। बशर्ते हमारे पास शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त केंद्रीय सुरक्षा बल हों। मैंने बार-बार सुझाव दिया है कि सरकार को हमारी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए और लगातार बढ़ते खतरों को देखते हुए कई और बटालियन बनाने पर विचार करना चाहिए। यह एक और उद्देश्य की सेवा करेगा। जैसे रोजगार के बहुत से अवसरों का निर्माण। जब तक हमारे पास अधिक सुरक्षा बटालियन नहीं हो जाती है, तब तक देर से चलने वाले चुनाव आदर्श हैं, भले ही केवल एक ही कारण क्यों न हो- मतदाता सुरक्षा।

[पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त] 

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.