Lok Sabha Election 2019 : सातवें और अंतिम चरण में दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर
सत्रहवीं लोकसभा के लिए सातवें और अंतिम चरण में 13 सीटों पर 19 मई को मतदान होना है। 2014 में यह सभी 13 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दल के खाते में गई थीं।
लखनऊ [अवनीश त्यागी]। सत्रहवीं लोकसभा के लिए सातवें और अंतिम चरण में 13 सीटों पर 19 मई को मतदान होना है। 2014 में यह सभी 13 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दल के खाते में गई थीं। इस चरण में एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव वाराणसी के आस-पास की सीटों पर भी पडऩे की उम्मीद है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी गोरखपुर में दांव पर लगी है। इसी चरण में दो मंत्री भी हैैं।
सबसे पहले बात शुरू करते हैं वाराणसी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी के चलते भाजपा इस सीट पर किसी को मुकाबले में नहीं मान रही। यहां से पहले प्रियंका गांधी के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की बात चल रही थी, लेकिन बाद में अजय राय को ही फिर मैदान में उतारा गया। विपक्ष इस वीआइपी सीट पर मैनपुरी, कन्नौज, आजमगढ़ सरीखी एकजुटता नहीं दिखा सका। गठबंधन (सपा) ने बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उनका पर्चा खारिज होने के बाद शालिनी यादव को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा को वाराणसी में प्रधानमंत्री की मौजूदगी का लाभ आस-पास की सीटों पर भी मिलने की उम्मीद है।
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र को मंदिर से भी जोड़ कर देखा जाता है। यहां से पांच बार लगातार सांसद रहे वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ में उपचुनाव में सपा-बसपा के गठजोड़ ने सेंध मार दी थी। यह अलग बात है कि गठबंधन से चुनाव जीते प्रवीण निषाद ने अब पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया है। इस बार गठबंधन ने जहां रामभुआल निषाद को टिकट दिया है तो भाजपा ने उनके मुकाबले भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रविकिशन को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मधूसूदन त्रिपाठी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। योगी आदित्यनाथ यहां खुद तो मैदान में नहीं हैं लेकिन यह सीट उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ गई है।
गाजीपुर में संचार व रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा अपने क्षेत्र में व्यापक विकास कराने के बाद भी जातिवादी चक्रव्यूह में फंसे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से सटी इस सीट पर गठबंधन (बसपा) की ओर से बाहुबलि अफजाल अंसारी मैदान में है और कांग्रेस गठबंधन ने अजीत कुशवाहा को टिकट दिया है।
चंदौली में भाजपा अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय की राह भी 2014 जैसी आसान नहीं है। बनारस जिले की दो विधानसभाओं को शामिल कर बने इस संसदीय क्षेत्र से सपा ने संजय चौहान को उतारा है, वहीं कांग्रेस से पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा उम्मीदवार हैं। 2014 में सपा-बसपा को मिले वोटों से भाजपा के वोट कम रहना डॉ. पांडेय के लिए चुनौती है जबकि गठबंधन के भीतर मची अंतरकलह से उन्हें ताकत मिल रही हैं।
महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में लड़ाई दिलचस्प है। भाजपा ने मौजूदा सांसद राजेश पांडेय का टिकट काटकर विजय दुबे को उम्मीदवार बनाया है। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर जीत कर मनमोहन सरकार में मंत्री बने आरपीएन सिंह फिर से मैदान में है। 2014 में हार चुके आरपीएन सिंह की मुश्किलें सपा के नथुनी प्रसाद कुशवाहा बढ़ा रहे हैं।
बिहार की सीमा से सटी देवरिया सीट पर इस बार मुकाबला भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी और बसपा (गठबंधन) के विनोज जायसवाल के बीच है। कांग्र्रेस ने पिछला चुनाव बसपा से लड़े नियाज अहमद को टिकट देकर संघर्ष को त्रिकोणीय कर दिया है। यह सीट 2014 में कलराज मिश्र ने जीती थी लेकिन वह इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
कभी वाम दलों का गढ़ रहे घोसी में इस बार भाजपा के लिए कमल खिलाना आसान नहीं है। मोदी लहर में 2014 में यहां पहली बार कमल खिला था। भाजपा ने सांसद हरिनारायण राजभर पर विश्वास जताते हुए फिर मैदान में उतारा है। वहीं गठबंधन की ओर से बाहुबली मुख्तार अंसारी के करीबी माने जाने वाले अतुल राय बसपा उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को मुकाबले में है।
सलेमपुर सीट पर दिलचस्प लड़ाई दिख रही है। यहां 2014 में मोदी लहर में जीते रवींद्र कुशवाहा फिर भाजपा उम्मीदवार है। बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को गठबंधन प्रत्याशी बनाया हैं। कांग्रेस ने बनारस के पूर्व सांसद राजेश मिश्र को इस सीट पर उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय व रोचक बना दिया है।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर का गढ़ रही बलिया सीट पर पिछले चुनाव में मोदी लहर का असर दिखा था। यहां से चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर चुनाव हार गए थे। भाजपा ने पहली बार जीत दिलाने वाले सांसद भरत सिंह का टिकट काट कर भदोही के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त पर दांव लगाया है। सपा ने ब्राह्मण वोटों की आस में पूर्व विधायक सनातन पांडेय का उतारा है। इस बार यहां सीधी लड़ाई है।
मीरजापुर में केंद्रीय मंत्री और अपना दल (सोनेलाल) की उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल त्रिकोणीय लड़ाई में फंसीं है। इस बार गठबंधन ने सपा के टिकट पर भदोही से भाजपा सांसद रामचरित्र निषाद को उतारा है तो कांग्रेस फिर ललितेश त्रिपाठी पर दांव लगाए हुए है।
महाराजगंज में भाजपा ने सांसद पंकज चौधरी को मैदान में उतारा हैं तो कांग्रेस ने पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह की बेटी सुप्रिया श्रीनेत को टिकट दिया है। गठबंधन (सपा) के पूर्व सांसद अखिलेश सिंह को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री को शिवपाल यादव की प्रसपा ने उम्मीदवार बनाया परंतु उन्होंने पर्चा नहीं भरा। तनुश्री की उम्मीदवारी को लेकर सपा व कांग्रेस में उहापोह बनी थी।
गोरखपुर जिले की बांसगांव सुरक्षित सीट पर भाजपा सांसद कमलेश पासवान जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद से उतरे हैं। टिकट की अदलाबदली में उलझे गठबंधन की ओर से बसपा के सदल प्रसाद अंतत उम्मीदवार बने। कांग्रेस ने पूर्व आइपीएस कुश सौरव पासवान को उम्मीदवार बनाया था लेकिन, उनका पर्चा ही खारिज हो गया।
रॉबर्ट्सगंज से भाजपा ने बागी तेवर दिखाने वाले सांसद छोटेलाल खरवार का टिकट काट यह सीट सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के लिए छोड़ दी। अपना दल ने यहां से पकौड़ीलाल पर दांव लगाया हैं। 2009 में सपा से सांसद रहे पकौड़ी गत चुनाव में तीसरे नंबर पर थे। सपा ने भाईलाल कोल को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस से भगवती प्रसाद चौधरी मैदान में हैं।
कुल 167 प्रत्याशी, 2.32 करोड़ मतदाता
अंतिम चरण की 13 संसदीय सीटों पर कुल 167 उम्मीदवार मैदान में है। सबसे अधिक 26 प्रत्याशी वाराणसी क्षेत्र से और सबसे कम बांसगांव में चार प्रत्याशी हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी एल वेंकटेश्वर लू के अनुसार वाराणसी में 103 नामांकन हुए थे। इनमें से 72 के नामांकन निरस्त हो गए। इसी तरह महाराजगंज में 14, गोरखपुर में 10, कुशीनगर में 14, देवरिया में 11, घोसी में 15, सलेमपुर में 15, बलिया में 10, गाजीपुर में 14, चन्दौली में 13, वाराणसी में 26, मीरजापुर में नौ और राबर्ट्सगंज में 12 प्रत्याशी रह गए हैं।
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