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RSS का मुख्यालय, लेकिन कांग्रेस का गढ़ रहा है नागपुर लोकसभा क्षेत्र

महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट राष्ट्रीय स्वयंसेवक का गढ़ मानी जाती है। लेकिन यहां से भाजपा ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने सबसे ज्यादा जीत हासिल की है।

By Rizwan MohammadEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 06:50 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 10:57 AM (IST)
RSS का मुख्यालय, लेकिन कांग्रेस का गढ़ रहा है नागपुर लोकसभा क्षेत्र
RSS का मुख्यालय, लेकिन कांग्रेस का गढ़ रहा है नागपुर लोकसभा क्षेत्र

नई दिल्‍ली, जेएनएन। महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट राष्ट्रीय स्वयंसेवक का गढ़ मानी जाती है। लेकिन यहां से भाजपा ने नहीं, बल्कि कांग्रेस ने सबसे ज्यादा जीत हासिल की है। हालांकि 2014 में कांग्रेस के इस गढ़ में सेंधमारी कर भाजपा यहां से जीत हासिल करने में जरूर सफल रही। इस बार के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही दोनों पार्टियों के बीच एक बार फिर जोरदार जंग होने की संभावना है। 11 अप्रैल को यहां पहले चरण के मतदान होंगे। उससे पहले हम आपको बताते हैं इस सीट का इतिहास-

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2 बार जीती कांग्रेस फिर निर्दलीय से हारी

देश में पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था। कांग्रेस के टिकट पर खड़ी हुईं अनसूया बाई सबसे पहली सांसद बनीं। इसके बाद 1956 में भी वह दोबारा चुनी गईं। इस चुनाव में उन्होंने आल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवार हरीदास दामाजी को हराया। हालांकि 1962 में कांग्रेस हार गई और नागपुर सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचा। निर्दलीय उम्मीदवार माधव श्रीहरि अणे ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया।

CPI ने भी कांग्रेस को दी कड़ी चुनौती

1967 में एक बार फिर कांग्रेस यह सीट कब्जाने में सफल रही और नरेंद्र देवघरे सांसद बने उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उम्मीदवार को शिकस्त दी। हालांकि कांग्रेस को इसके बाद एक बार फिर झटका लगा, जब 1970 में यह सीट पार्टी के हाथ से फिसली। 1970 में हुए चुनाव में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी के जामबुवंत धोते ने कांग्रेस को जीत से दूर कर दिया। कांग्रेस को दूसरी बार यहां से हार का मुंह देखना पड़ा और जामबुवंत सांसद चुने गए।

लगातार कई साल कांग्रेस ने किया राज
1977 में कांग्रेस ने इस सीट से फिर वापसी की और उसके बाद लगातार कई साल तक जीत हासिल की। 1980 में पार्टी को यहां से धोते जम्बुवंत बापूराव ने जीत दिलाई। 1984 और 1989 में बनवारी लाल भगवानदास पुरोहित ने कांग्रेस की झोली में जीत डाली। लेकिन इसके बाद बनवारी लाल ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। 1991 के चुनाव में बनवारी लाल बीजेपी से लड़े और कांग्रेस ने नए उम्मीदवार मेघे दत्ताजी को खड़ा किया। मेघे दत्ता ने कांग्रेस की जीत का सिलसिला कायम रखा और फिर से जीत दिलाई।

 BJP ने चखा पहली जीत का स्वाद
1996 में पहली बार इस सीट से बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा और बनवारी लाल पुरोहित सांसद बने। इसके बाद एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विलास मुत्तेमवार लगातार चार बार 1998, 1999, 2004 और 2009 में सांसद बने। लेकिन 2014 में नागपुर में बीजेपी ने फिर से वापसी की और बड़ी जीत हासिल की। भाजपा ने 2014 में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को मैदान में उतारा। उन्होंने यहां से चार बार संसद पहुंचे विलास मुत्तेमवार को हराया। गडकरी की जीत का आंकड़ा भी काफी बड़ा था। उन्होंने मुत्तेमवार को करीब ढाई लाख से ज्यादा वोटों से मात दी था।


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