नगीना सीट पर BJP और BSP में है टक्कर, रोचक है इस सीट की चुनावी कहानी
नगीना संसदीय सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प है क्योंकि आठ उम्मीदवारों ने ताल ठोक रखा है। भाजपा ने वर्तमान सांसद यशवंत सिंह और बसपा ने गिरीश चंद्र को टिकट दिया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। नगीना संसदीय सीट पर इस बार विभिन्न दलों के आठ उम्मीदवारों ने ताल ठोक रखा है। भाजपा ने यहां से वर्तमान सांसद यशवंत सिंह पर दोबारा भरोसा जताते हुए चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने ओमवती देवी को टिकट दिया है। गठबंधन के तहत बसपा के खाते में आई इस सीट पर गिरीश चंद्र चुनाव मैदान में हैं। यहां पर 18 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान होना है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से सभी प्रत्याशियों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है। आइए जानते हैं इस सीट के राजनीतिक सफर का इतिहास-
1952 में अस्तित्व में नहीं था नगीना संसदीय क्षेत्र
1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के दौरान नगीना लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं थी। उस दौरान यह क्षेत्र देहरादून और बिजनौर से मिलकर बनी सीट का हिस्सा था। 1957 में स्वतंत्र बिजनौर लोकसभा सीट का गठन होने के बाद नगीना क्षेत्र इस संसदीय सीट का हिस्सा बना रहा। तब यहां से कांग्रेस प्रत्याशी अब्दुल लतीफ सांसद चुने गए। तीसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में इस क्षेत्र के लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाशवीर शास्त्री पर भरोसा जताया और उन्हें विजेता बनाया। 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर पलटी मारी और यहां से भारी अंतर से जीत हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी स्वामी रामानंद शास्त्री ने सर्वाधिक 144728 वोट पाए। भारतीय क्रांति दल, स्वतंत्र पार्टी समेत अन्य दलों को यहां से शिकस्त खानी पड़ी।
BLD के माहीलाल ने कांग्रेस को आईना दिखाया
1977 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए निराशाजनक साबित हुआ। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रामदयाल को हार का सामना करना पड़ा। भारतीय लोकदल के प्रत्याशी माही लाल 258663 वोटों के साथ इस सीट पर विजेता घोषित किए गए। 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी सेक्युलर ने पहली बार यहां से चुनाव जीतकर अपना खाता खोला। हालांकि 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया। 1989 के चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बसपा की मायावती ने चुनाव जीता। उन्हें बड़े अंतर से जीत हासिल हुई। 1991 के चुनाव में बिजनौर सीट पर मायावती दोबारा चुनाव जीतकर संसद पहुंची। बाद के लोकसभा चुनावों में भी विभिन्न दल इस सीट पर जीत हासिल करते रहे।
परिसीमन के बाद सपा के खाते में गई यह सीट
स्वतंत्र सीट बनने पर सपा के खाते में गई नगीना सीट परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद 2008 में बिजनौर लोकसभा सीट से नगीना क्षेत्र को हटा दिया गया और स्वतंत्र नगीना सीट का गठन किया गया। नगीना सीट पर 2009 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह 234815 वोटों के साथ चुनाव जीतकर सांसद बने। इस सीट पर बसपा के रामकिशन सिंह 175127 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार मुंशीराम को 163062 वोटों के साथ तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। कांग्रेस समेत अन्य प्रमुख दलों को भारी अंतर से शिकस्त झेलनी पड़ी।
भाजपा ने सपा से छीन लिया ताज
16वीं संसद के गठन की खातिर 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। यहां से तत्कालीन सांसद यशवीर सिंह सपा के टिकट पर दोबारा चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। चुनाव से पहले यहां भाजपा ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया। नतीजतन उसे भारी मतों से जीत मिली। भाजपा के यशवंत सिंह 367825 वोटों के साथ विजेता घोषित किए गए। वहीं तत्कालीन सांसद और सपा उम्मीदवार यशवीर सिंह 275435 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही बसपा इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी। इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा।
मजबूत है दलित और मुस्लिम गठजोड़
नगीना लोकसभा सीट पर करीब 21 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। यहां मुस्लिम वोटर भी बड़ी संख्या में हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी विधानसभा सीटों का हिसाब लगाएं तो करीब 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। जानकारों के मुताबिक जो दल इन दो समुदायों को साध लेगा, उसके प्रत्याशी की जीत लगभग तय होगी। नगीना लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। इनमें नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नहटौर और नूरपुर सीटें हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में तीन सीटें भारतीय जनता पार्टी और दो सीटें समाजवादी पार्टी के पास गई थीं। हालांकि, 2018 में नूरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को हराकर जीत दर्ज की थी। नूरपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव के साथ हुआ था।