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Clean chit to PM: नाराज चुनाव आयुक्‍त लवासा ने बैठक से किया किनारा, गहराया विवाद

चुनाव आयुक्‍त अशोक लवासा ने पीएम मोदी और शाह को कथित विवादित भाषणों पर दी गई क्लीन चिट पर असहमति जताते हुए आदर्श आचार संहिता से संबंधित बैठकों से दूर रहने का फैसला किया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 02:24 PM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 09:37 PM (IST)
Clean chit to PM: नाराज चुनाव आयुक्‍त लवासा ने बैठक से किया किनारा, गहराया विवाद
Clean chit to PM: नाराज चुनाव आयुक्‍त लवासा ने बैठक से किया किनारा, गहराया विवाद

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में क्लीन चिट देने के मामले में चुनाव आयोग में असहमति से शुरू हुआ विवाद और गहरा गया है। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अल्पमत के फैसले को रिकॉर्ड नहीं किए जाने के विरोध में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा को पत्र लिखकर आचार संहिता से संबंधित बैठकों में शामिल होने से साफ इन्कार कर दिया है। इस पत्र पर बवाल मचने के बाद शनिवार को सीईसी ने सामने आकर विवाद को गैरजरूरी बताया। उन्होंने कहा, ऐसे वक्त में विवाद से बेहतर खामोशी है।

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असल में यह विवाद तब शुरू हुआ जब चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के विवादित बयानों के 11 मामलों में क्लीन चिट दिए जाने पर उनके असहमति के फैसले को रिकॉर्ड नहीं किया गया। चुनाव आयोग ने इन मामलों में दोनों नेताओं को आचार संहिता उल्लंघन का दोषी नहीं माना था।

अशोक लवासा ने सीईसी सुनील अरोड़ा को चिट्ठी लिखकर कहा था, 'जब मेरे अल्पमत को रिकॉर्ड नहीं किया गया तो आयोग में हुए विचार-विमर्श में उनकी भागीदारी का कोई मतलब नहीं है। इसलिए वह दूसरे उपायों (कानूनी) पर विचार कर सकते हैं।' चार मई को लिखे पत्र में उन्होंने दावा किया कि आयोग की बैठकों से दूर रहने के लिए उन पर दबाव बनाया गया क्योंकि उनके नोट्स में असहमति रिकॉर्ड करने को पारदर्शिता के लिए जरूरी बताने पर कोई जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद उन्होंने 10 मई, 14 मई और 16 मई को भी पत्र लिखे।

इनमें उन्होंने कहा कि उनके अल्पमत के फैसले को दर्ज नहीं किया जाना इस बहुसदस्यीय वैधानिक निकाय के स्थापित तौर तरीकों से उलट है। सूत्र बताते हैं कि अशोक लवासा ने पत्र में यह भी कहा कि उनकी मांग के अनुरूप व्यवस्था नहीं बनने तक वह बैठक में ही शामिल नहीं होंगे। इन पत्रों को पाने के बाद सीईसी सुनील अरोड़ा ने अशोक लवासा के साथ बैठक भी बुलाई थी। लवासा की मांग है कि आयुक्तों के बीच मतभेद को भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर शामिल किया जाए। बता दें कि तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में सीईसी सुनील अरोड़ा के अलावा अशोक लवासा और सुशील चंद्रा चुनाव आयुक्त हैं।

असहमति दर्ज करना जरूरी नहीं
चुनाव आयोग की नियमावली केमुताबिक तीनों आयुक्तों के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां बराबर हैं। किसी भी मुद्दे पर मतभेद होने पर बहुमत का फैसला ही मान्य होता है। फिर चाहे सीईसी ही अल्पमत में क्यों न हों। आयोग के कानूनी विभाग की राय है कि फैसलों पर असहमति नहीं भी दर्ज की जा सकती है क्योंकि आचार संहिता उल्लंघन की सुनवाई अर्धन्यायिक सुनवाई का हिस्सा नहीं है जिस पर सीईसी और दोनों चुनाव आयुक्त हस्ताक्षर करते हैं। बहुमत का फैसला संबंधित पार्टियों को बता दिया जाता है। जबकि असहमति फाइलों में रिकॉर्ड की जाती है उसे सार्वजनिक नहीं किया जाता।

सीईसी बोले, क्लोन नहीं हो सकते तीनों आयुक्त
सीईसी सुनील अरोड़ा ने मामले को बढ़ता देख बयान जारी कर कहा कि आचार संहिता के मामलों में चुनाव आयोग की अंदरूनी गतिविधियों पर मीडिया में जो विवादित खबरें चल रही हैं उनको टाला जा सकता था। उन्होंने स्पष्ट किया कि आयोग के तीनों सदस्य एक दूसरे के क्लोन नहीं हो सकते। इससे पहले भी कई मामलों में आपस में एक-दूसरे के नजरिये अलग-अलग रहे हैं और जहां तक हो सके ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन इससे पहले सभी मतभेद आयोग कार्यालय के अंदर ही रहे हैं। ये मतभेद काफी समय बाद तभी बाहर आए जब संबंधित पूर्व चुनाव आयुक्त या पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने उस संबंध में कोई किताब लिखी। उन्होंने बताया कि आयोग की 14 मई की बैठक में लोकसभा चुनाव के दौरान उठे मसलों पर विचार के लिए विभिन्न समूहों के गठन का सर्वसम्मत फैसला लिया गया था। 13 मसलों में आदर्श आचार संहिता भी एक मुद्दा है।

मंगलवार को बैठक, लवासा का टिप्पणी से इन्कार
विवाद गहराने के बाद अब इस मामले पर आयोग ने मंगलवार को बैठक बुलाई है। इस बारे में पूछे जाने पर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि यह आयोग का अंदरूनी मामला है और वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।

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