Move to Jagran APP

मतदाताओं की चुप्पी बढ़ा रही सियासी दलों की धड़कन, अपनी पहचान के लिए वोट करेगा लद्दाख

लेह में सबसे बड़ा मसला अपनी पहचान का है जो कहीं खो गई है। इस बार केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) की मांग सबसे बड़ा मुद्दा है। लेह के लोगों को 370 और 35ए के नारे नहीं लुभाते हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 06 May 2019 09:21 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2019 09:28 AM (IST)
मतदाताओं की चुप्पी बढ़ा रही सियासी दलों की धड़कन, अपनी पहचान के लिए वोट करेगा लद्दाख
मतदाताओं की चुप्पी बढ़ा रही सियासी दलों की धड़कन, अपनी पहचान के लिए वोट करेगा लद्दाख

लेह, अनिल गक्खड़। दुनियाभर में खूबसूरत वादियों के लिए चर्चित लद्दाख में छह मई को मतदान है लेकिन कोई सियासी हंगामा नहीं है। लेह के बाजार में अन्य शहरों की तरह सियासत पर चर्चा करते महफिलें भी नहीं सजीं। केवल सियासी दलों के प्रचार दस्तों ने घरों तक संपर्क साधा। इसका यह अर्थ नहीं है कि यहां के लोग सियासत के प्रति सचेत नहीं हैं।

loksabha election banner

लद्दाख के वोटर राजनीतिक तौर पर सचेत भी हैं और जागरूक भी। सियासी शोरगुल से दूर अपने एजेंडे पर वोट डालने को तैयार हैं। उनकी यही चुप्पी सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा रही है। अनजान लोगों के समक्ष वे खुलकर नहीं बोलना चाहते। लेकिन बहुत कुरेदने पर ही वे बोलने को तैयार होते हैं। यहां सबसे बड़ा मसला अपनी पहचान का है जो दशकों में कुछ खो सी गई है।

लद्दाख अपनी परंपरा और पहचान को कायम रखना चाहता है। यहां की चाह है कि उनकी सांस्कृतिक विरासत कायम रहे। उन्हें यह लगता है कि यह केवल केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के दर्जे से मुमकिन है। लोगों का मानना है कि विकास के मामले में अनदेखी और अन्य तमाम समस्याओं का हल यूटी के दर्जे से संभव है। न 370 और न 35ए के नारे यहां के वोटर को लुभाते हैं। वे केवल केंद्र सरकार की सत्ता चाहते हैं न कि कश्मीरी नेताओं की।

यहां खास बात यह है कि लद्दाख लोकसभा सीट दो जिलों तक फैली है, लेह और कारगिल। लेह बौद्ध बहुल क्षेत्र है और कारगिल मुस्लिम बहुल। कारगिल के शिया भी सुन्नी बहुल कश्मीर से स्वयं को अलग पाते हैं। इसके अलावा लेह तिब्बत से सांस्कृतिक तौर पर जुड़ा है और उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में यहां के लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति अति संवेदनशील हैं। इन्हीं भावनाओं को सियासी दल चुनाव में मुद्दा बनाते रहे हैं। आजादी के तुरंत बाद से शुरू हुआ यह आंदोलन आज भी जारी है। लद्दाख आगे बढ़ा पर यूटी के मोर्चे पर जीत अभी नहीं मिल पाई है। सियासी दल अब फिर वादा कर रहे हैं।

सियासी दलों की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं लेकिन आमजन इस बार ठोस आश्वासन चाहता है। सियासी मसलों पर सक्रिय दोरजे नांगयाल कहते हैं कि सियासी दल केवल वादे करते हैं। उन्हें बताना चाहिए कि इन वादों को वह पूरा कैसे करेंगे। लेह के लोग जागरूक हैं। उन्होंने कहा कि काफी कुछ हो सकता था लेकिन कुछ नहीं हुआ। वहीं छात्रा पदमा कहती हैं कि सियासी दलों को स्थिति साफ करनी चाहिए।

2014 के चुनाव में भाजपा ने यूटी के मसले को घोषणापत्र में शामिल किया। इस बार भी भाजपा उसी वादे को दोहरा रही है। पर इसी पर उसे सबसे अधिक सवालों का जवाब देना पड़ रहा है। भाजपा नेता लोगों को बता रहे हैं कि लद्दाख की अलग पहचान के लिए भाजपा न केवल गंभीर है बल्कि निरंतर प्रयासरत भी है। लद्दाख को डिवीजन का दर्जा उसी का एक प्रयास है। अगला कदम यूटी का दर्जा ही होने वाला है। मोदी सरकार इसमें आ रही कानूनी अड़चनों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासरत रही। कांग्रेस इस मसले को सरकार का जुमला करार दे रही है। आरोप लगा रही है कि भाजपा ने जनता को अंधेरे में रखा और इसका खामियाजा उसे इस चुनाव में झेलना पड़ेगा।

क्या है अलग केंद्र शासित प्रदेश का मुद्दा

केंद्र शासित प्रदेश का मसला लद्दाख की सियासत में नया नहीं है। आजादी के समय से यह मसला लगातार उठ रहा है। 1949 में इस विषय पर पहली बार आंदोलन हुआ। लेह के बौद्ध नेता कुशाक बकुला ने इसे प्रमुखता से उठाया। मुख्य मांग लद्दाख को कश्मीरी सियासी दलों के नियंत्रण से मुक्त करने की है। 1974 में केंद्रीय शासन की मांग फिर तेजी से उठी पर शेख अब्दुल्ला ने 1979 में लद्दाख को सांप्रदायिक आधार पर लेह और कारगिल जिलों में बांट दिया।

इससे बौद्ध और भी नाराज हो गए। बाद में यह मसला लगातार बढ़ता रहा। इसी बीच नौवें दशक में लेह पर्वतीय स्वायत्त परिषद का बिल पास हो गया ताकि लेह के लोगों को कुछ अधिकार दिए जा सकें। इसके बाद सभी दलों ने मिलकर लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट का गठन किया। उसने इस मसले को जोरदार ढंग से उठाया। बाद में इसमें भी सियासत घुस गई। कुछ सदस्य कांग्रेस में चले गए। 2005 के लेह पर्वतीय क्षेत्र विकास परिषद के चुनाव में एलयूटीएफ छा गया। बाद में यूटी के मसले पर अधिक कुछ नहीं हुआ। यदा-कदा दावे किए जाते रहे। 2010 में एलयूटीएफ का भाजपा में विलय हो गया।

2014 के चुनाव में भाजपा ने यूटी का वादा किया और पहली बार लद्दाख में भाजपा का सांसद चुनकर आया। इसके बाद भाजपा सरकार ने लद्दाख को डिवीजन का दर्जा देकर और पर्वतीय विकास परिषद को अतिरिक्त वित्तीय अधिकार देकर लोगों को शांत करने का प्रयास किया पर अभी भी संघर्ष जारी है। नवंबर 2018 और मार्च 2019 में लेह के सभी संगठनों ने इस पर जोरदार प्रदर्शन किए। लेह बुद्धिस्ट एसोसिएशन फिलहाल इस मसले पर आंदोलन चला रही है। अभी भी यह मसला तकनीकी दिक्कतों में उलझा है। भाजपा ने इस बार इस वादे को पूरा करने का संकल्प दोहराया है।

कश्मीरी नेताओं के उत्पीड़न से चाहिए आजादी

लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) इस मामले को प्रमुखता से उठा रहा है। अब इस आंदोलन को एलबीए ही आगे बढ़ा रहा है। एलबीए इसे अपनी पहचान व संस्कृति बचाने की लड़ाई बता रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि लद्दाख ने 70 साल तक उपेक्षा झेली है और इस मसले पर अब वे निर्णायक फैसला चाहते हैं। इस उपेक्षा को वे और नहीं झेल सकते। उन्हें कश्मीरी नेताओं के उत्पीड़न से आजादी चाहिए। एलबीए इस मसले पर बौद्ध ही नहीं लद्दाख के अन्य सभी वर्गों को भी साथ लाने का प्रयास कर रहा है।

शिया व ईसाई समुदाय को साथ लाने का प्रयास

एलबीएने इस आंदोलन से लेह के शिया व ईसाई समुदाय को साथ लाने का प्रयास किया और काफी हद तक समर्थन भी मिला है। लेकिन असली मसला कारगिल के नेताओं को मनाने का है। फिलहाल कारगिल इस मसले पर बंटा दिखाई देता है। खासकर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की सक्रियता बढ़ने के बाद कारगिल में अलग विचारधारा बनती दिख रही है।

हम देश के संविधान के ढांचे के अनुरूप अपना हक मांग रहे हैं। हमें कश्मीरी नेताओं के उत्पीड़न से आजादी चाहिए। हम देश के साथ थे और हैं। हमारी राष्ट्रभक्ति पर किसी को शक नहीं है। हम केंद्र के और करीब जाना चाहते हैं, इसीलिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मांग रहे हैं।

पीटी कुंजांग, उपाध्यक्ष एलबीए 

यूटी के दर्जे से क्षेत्र के लोगों को अपनी पहचान कायम रखने का मौका मिलेगा। हम यही चाहते हैं कि कारगिल भी इस मांग पर लेह के साथ आए। कु छ मसले हैं जो मिल बैठकर सुलझाए जा सकते हैं। हम चाहते हैं कि इस मसले पर हमारी बात भी प्रमुखता से सुनी जाए। एलबीए को हमारा समर्थन है और आंदोलन में भी हम साथ आए थे। अशरफ अली, शिया नेता, लेह

भाजपा का इस मसले पर स्पष्ट रुख है कि लद्दाख को यूटी का दर्जा मिलना चाहिए। यह हमारे घोषणापत्र में भी है। हमने लद्दाख के विकास पर अपना दृष्टिकोण साफ कर दिया है। प्रधानमंत्री ने डिवीजन का दर्जा देकर लद्दाख को अधिकार देने की शुरुआत कर दी है। इसके अलावा लद्दाख के लोगों के विकास का एजेंडा रखा गया है। लोग समझते हैं कि कौन उन्हें यह दर्जा दे सकता है।

रविंद्र रैना, जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.