जानिए लोकसभा चुनाव पर क्या सोचते हैं स्पोर्ट्स सिटी के लोग?
किसी जमाने में खेल सामानों के उत्पादन में जालंधर मेरठ से काफी आगे था लेकिन आज हालात बदल गए हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। मेरठ, जहां महाभारत का हस्तिनापुर है, जो अंग्रेजों के समय एक प्रमुख सैन्य केंद्र था। संयोग देखिए कि 1857 के विद्रोह में भी ब्रिटिश राज से मुक्ति पाने की पहली चिंगारी यहीं भड़की थी। तकरीबन 40 लाख आबादी वाला यह जिला आज देश भर में स्पोर्ट्स सिटी के रूप में जाना जाता है। किसी जमाने में खेल सामानों के उत्पादन में जालंधर, मेरठ से काफी आगे था, लेकिन आज हालात बदल गए हैं।
क्रिकेट के अलावा यहां वेट लिफ्टिंग, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग जैसे खेलों के हजारों उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग की जाती है। यहां निर्मित खेल सामग्री का निर्यात देश-विदेश में हो रहा है। नोटबंदी और रॉ मैटेरियल पर लगने वाले जीएसटी का असर स्पोर्ट्स सिटी पर पड़ा है। जीएसटी के प्रभावों के बारे में नेल्को के इंडिया डायरेक्टर अंबर आनंद ने कहा कि नोटबंदी से हमें काफी मदद मिली है। सेल्स को संस्थागत बनाने में मदद मिली है।
विश्व के कई बड़े खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स इक्विपमेंट मुहैया कराने वाले अंबर ने कहा, 'सबकुछ नीलामी पर निर्भर करता है। सरकार की ओर से मिले निर्देशों के मुताबिक ही खरीददार खरीद-बिक्री कर रहे हैं। लेकिन, कुछ डीलिंग पर्दे के पीछे से भी होती है। हम ऐसी चीजों में हिस्सा नहीं लेते हैं। नोटबंदी के चलते अवैध रूप से होने वाली डीलिंग खत्म हो गई है। नोटबंदी के लागू होने के बाद हमें फायदा ही मिला है।
हालांकि अंबर ने ये भी कहा कि असंगठित क्षेत्र में नोटबंदी का असर सकारात्मक नहीं रहा है। मेरठ में तकरीबन 3 हजार छोटे-बड़े स्पोर्ट्स यूनिट हैं, जिनमें लगभग 25 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। इनमें से कई असंगठित हैं, घरों में फुटबॉल की कटाई-सिलाई होती है, और इस असंगठित क्षेत्र के लिए नोटबंदी आज भी एक बुरे स्वप्न की तरह है।