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Lok Sabha Election 2019 : जमशेदपुर में कसौटी पर झामुमो का प्रताप

Lok Sabha Election 2019. जमशेदपुर संसदीय सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रताप कसौटी पर है। 2007 के बाद हुए तीन चुनावों में पार्टी को लगातार पराजय झेलना पड़ा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 11:47 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 11:47 AM (IST)
Lok  Sabha Election 2019 :  जमशेदपुर में कसौटी पर झामुमो का प्रताप
Lok Sabha Election 2019 : जमशेदपुर में कसौटी पर झामुमो का प्रताप

जमशेदपुर, मुजतबा हैदर रिजवी। जमशेदपुर संसदीय सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रताप इस लोकसभा चुनाव में कसौटी पर है। 2007 के बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी को लगातार पराजय का मुंह देखना पड़ा है। माना जा रहा है कि मजबूत प्रत्याशी नहीं होने की वजह से पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा है। अब जनता की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या झारखंड आंदोलनकारी रह चुके चंपई सोरेन इस लोकसभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगा पाएंगे।

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जमशेदपुर संसदीय सीट से 1984 में आखिरी बार कांग्रेस उम्मीदवार गोपेश्वर जीते थे। इसके बाद 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो के उम्मीदवार शैलेंद्र महतो ने जीत दर्ज की। 1991 में हुए अगले चुनाव में उन्होंने फिर अपनी कामयाबी का इतिहास दोहराया। तब लग रहा था कि जमशेदपुर झामुमो का गढ़ बन गया है। हर तरफ झामुमो की फिजा थी। पार्टी का महतो मतों पर दबदबा था ही ग्रामीण इलाके के अन्य जाति के वोटर भी उसके पाले में आ गए थे। इसी के बाद 1996 का लोकसभा चुनाव आया और भाजपा ने जमशेदपुर में झामुमो के दबदबे को खत्म करने के लिए महाभारत के कृष्ण नीतिश भारद्वाज को उतारा। नीतिश के ग्लैमर ने भाजपा को जीत दिलाई। इसकेबाद, भाजपा ने 1998 के लोकसभा चुनाव में झामुमो को पटखनी देने के लिए महतो फैक्टर पर प्रहार किया। भाजपा ने पूर्व झामुमो सांसद शैलेंद्र महतो की पत्‍नी आभा महतो को उम्मीदवार बनाया। आभा महतो ने झामुमो के उम्मीदवार को हरा कर इस सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा। 1999 के चुनाव में भी आभा महतो की जीत हुई। 

सुनील महतो ने पलटी थी बाजी

झामुमो ने 2004 के चुनाव में झारखंड आंदोलनकारी सुनील महतो को उम्मीदवार बना कर बाजी पलट दी। झामुमो की जीत हुई। सुनील महतो की हत्या के बाद फिर हुए उपचुनाव में उनकी पत्‍नी सुमन महतो ने पार्टी का कब्जा बरकरार रखा। लेकिन, इसके बाद 2009, 2011 और 2014 के चुनावों में झामुमो को करारी शिकस्त मिली। 2009 में सुमन महतो भाजपा के अजरुन मुंडा से हार गईं। बाद में अजरुन मुंडा के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए 2011 के उपचुनाव में झाविमो उम्मीदवार डा. अजय कुमार के ग्लैमर के आगे सभी दलों की चमक फीकी पड़ गई तो 2014 के चुनाव में बहरागोड़ा से झामुमो के विधायक विद्युतवरण महतो को भाजपा में लाकर जीत की नैया पार कर ली।

कब कब पार्टी को मिली जीत

1989 - शैलेंद्र महतो

1991- शैलेंद्र महतो

2004- सुनील महतो

2007- सुमन महतो

कब-कब हारे

1996, 1998, 1999, 2009, 2011 और 2014

सियायी दमखम नहीं दिखा पा रही पार्टी

झामुमो लोकसभा के आखिरी तीन चुनावों में सियासी दमखम नहीं दिखा पा रही है। हारने के पीछे राजनीतिक विश्लेषक उम्मीदवार के चयन को कारण मानते हैं। माना जा रहा है कि जमशेदपुर संसदीय सीट पर झामुमो बढ़िया उम्मीदवार नहीं दे पाई थी। इस वजह से पार्टी के बूथ लेवल के नेता ढीले पड़ गए थे।


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