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Lok Sabha Election 2019: BIG ISSUE: अरे हुजूर, ये इश्क नहीं झरिया की आग है... इसमें कोई नहीं चाहता डूबना

चाहे राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय सभी यह सोचकर आग में बसे झरिया व यहां के लोगों की उपेक्षा करते रहते हैं कि कहीं यह मुद्दा न बन जाए। मुद्दा बना तो झुलसना पड़ सकता है।

By mritunjayEdited By: Published: Sat, 27 Apr 2019 10:31 AM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2019 10:31 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: BIG ISSUE:  अरे हुजूर, ये इश्क नहीं झरिया की आग है... इसमें कोई नहीं चाहता डूबना
Lok Sabha Election 2019: BIG ISSUE: अरे हुजूर, ये इश्क नहीं झरिया की आग है... इसमें कोई नहीं चाहता डूबना

झरिया, गोविन्द नाथ शर्मा। झरिया कोयलांचल में एक शताब्दी से भी अधिक समय से लगी जमीनी आग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। देश आजाद होने के बाद कई चुनाव हुए। लेकिन किसी भी पार्टी ने झरिया की जमीनी आग को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया।

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चाहे व राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय सभी इस आग में झुलस न जाये। यह सोचकर आग में बसे झरिया व यहां के लोगों की उपेक्षा करते रहते रहे। हर चुनाव में झरिया की आग का मुद्दा गायब रहता है। जबकि धनबाद लोकसभा क्षेत्र का झरिया एक प्रमुख विधानसभा क्षेत्र है। यह शहर कोयले के लिए देश ही नहीं विदेश में भी मशहूर है। हालांकि कोल कंपनी के प्रबंधन का दावा है कि आग को कई जगहों पर काबू में पाया गया है। आग वाले क्षेत्र का दायरा कम हुआ है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इस चुनाव में भी झरिया की आग मुद्दा नहीं है।

केस स्टडी : 1

24 मई 2017 को अग्नि व भू-धंसान प्रभावित क्षेत्र इंदिरा चौक झरिया के पास रहनेवाले गरीब परिवार के 40 वर्षीय बबलू खान व उनका 12 वर्षीय पुत्र रहीम खान सड़क के किनारे दुकान के बाहर अचानक जमीन में गोफ होने से सैकड़ों फीट अंदर समा गये थे। सरकारी व गैर सरकारी रूप में लाख कोशिश के बाद भी दोनों को जमीन के अंदर से नहीं निकाला जा सका।

केस स्टडी : 2

19 अगस्त 2017 को झरिया-बलियापुर मुख्य मार्ग के किनारे अग्नि व भू धंसान प्रभावित क्षेत्र घनुडीह मोहरीबांध के पास जोरदार आवाज के साथ भू -धंसान हुआ। घटना के बाद क्षेत्र की जमीन अलग हो गई। दर्जनों घर गिर गये। यहीं रहनेवाले कोलकर्मी रामप्रवेश प्रसाद सिन्हा की मां 60 वर्षीय भगवनिया देवी की जमीन में फंसने व ऊपर से मलवा गिरने से मौत हो गई।

केस स्टडी : 3

छह फरवरी 2016 को सुदामडीह चीफ हाउस कालोनी अग्नि व भू- धंसान प्रभावित क्षेत्र के पास रहनेवाले हरि प्रसाद की 50 वर्षीय पत्नी जीरा देवी जमींदोज हो गई। जीरा घर के पास ही सुबह में बकरी खोलने गई थी। अचानक वहां की जमीन फटने से वह उसके सैकड़ों फीट अंदर में समा गई। कई दिनों के काफी प्रयास के बाद भी जीरा देवी को नहीं निकाला जा सका।

केस स्टडी : 4

17 सितंबर 2015 को कोयरीबांध कुकुरतोपा में रहनेवाली 12 वर्षीय गरीब परिवार की मुस्कान कुमारी शौच के लिए पास के अग्नि व भू-धंसान क्षेत्र में गई थी। अचानक से वह अग्नि प्रभावित क्षेत्र के दरार में घुसकर झुलस गई। इलाज के लिए कई माह पीएमसीएच में भर्ती रही। हाथ व पैर के अधिक जख्मी होने के कारण चिकित्सक को उसका एक पैर व एक हाथ काटना पड़ा।  

जमीनी आग बढ़ती गई, सरकार नहीं हुई गंभीर : हम बात कर रहे हैं आग के ऊपर बसे झरिया कोयलांचल की। चारों ओर आग से घिरे क्षेत्र में लोग जान हथेली पर रखकर रहने को मजबूर हैं। एक सौ वर्षों से भी अधिक समय से झरिया की जमीन में आग लगी है। अरबो-खरबों सरकारी खर्च के बाद भी अभी तक इस आग को नहीं बुझाया जा सका है। भौंरा क्षेत्र में एक सौ वर्ष पहले आग लगी थी। आक्सीजन मिलने के कारण जमीनी आग धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में फैलती गई। देश व विदेश के कई वैज्ञानिक इस शहर में लगी आग को बुझाने की काफी कोशिश की। लेकिन सफलता नहीं मिली। झरिया में लगी आग देश-विदेश के खनन वैज्ञानिकों के लिए आज भी चुनौती बनी हुई है। वहीं आग को बुझाने को लेकर देश व राज्य में अब तक बनी सरकारों की इच्छा शक्ति भी कमी सामने आई है। यहीं कारण है कि आज भी झरिया क्षेत्र के अग्नि व भू धंसान प्रभावित क्षेत्र में लोग जमींदोज हो रहे हैं। जानमाल की हानि हो रही है।

क्या कहते हैं अग्नि व भू धंसान क्षेत्र में रहनेवाले लोग : सरकारी एजेंसी की लापरवाही के आज भी हजारों लोग झरिया के अग्नि व भू धंसान प्रभावित क्षेत्रों में जान हथेली पर रखकर रहने को मजबूर है। झरिया पुनर्वास योजना के तहत आवास व रोजगार का लाभ इन्हें नहीं मिल पाया है। कोल प्रबंधन भी मामले में गंभीर नहीं है। इंदिरा चौक के पास रहनेवाले बड़कू मियां ने बताया कि खतरनाक क्षेत्र में आखिर कौन रहना चाहेगा। लेकिन पेट के कारण यहां रहने को मजबूर हैं। कुजामा क्षेत्र में रहनेवाले श्याम कुमार ने बताया कि आग व भू धंसान क्षेत्र में रहने को मजबूर हैं। हमलोगों का जेआरडीए की ओर से सर्वे भी हो चुका है। लेकिन अभी तक आवास नहीं मिला है। नार्थ तिसरा डीबी रोड के उमाशंकर महाराज व कुंदन निषाद का कहना है कि दशकों से यहां रहते आ रहे हैं। हाल के वर्षों में प्रबंधन की लापरवाही से आग और अधिक फैला है। सर्वे होने के बाद भी हमलोगों को आवास नहीं मिला। प्रबंधन जबरन भगाने में लगा है। साउथ गोलकडीह की सीमा देवी को भी यहीं दर्द है। सीमा कहती है कि आग वाले क्षेत्र में रहने से मुक्ति चाहते हैं। लेकिन सरकार व प्रबंधन कोई गंभीर नहीं है। दोबारी खाद बस्ती में रहनेवाले राजकुमार सिंह भी सरकार व प्रबंधन की लापरवाही से अग्नि व भू धंसान क्षेत्र में रहने को मजबूर है। 


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