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Lok Sabha Election: वोटरों की चुप्पी बढ़ा रही राजनीतिक दलों की धड़कनें, गर्म हवा के झोंकों में निर्णायक मतदाता 'शांत'

वोटरों की चुप्पी राजनैतिक दलों की धड़कने बढ़ा रही है। वर्ष 2014 के चुनाव में मतदान से पूर्व ही जहां प्रत्याशियों को जनता का रुझान मिलने के बाद पता भापने का मिल जाता था लेकिन यह चुनाव अभी तक पूरी तरह से बंद है। राजनैतिक दल बढ़ चढ़कर दावे कर रहे हैं लेकिन उनके दावों में सच्चाई कम चुनावी फंडा ज्यादा नजर आ रहा है।

By ashish trivedi Edited By: Jeet Kumar Published: Sun, 28 Apr 2024 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 06:00 AM (IST)
वोटरों की चुप्पी बढ़ा रही राजनैतिक दलों की धड़कनें

आशीष त्रिवेदी, हरदोई। शायद यह पहला चुनाव है जिसमें किसी एक पार्टी की बयार फिलहाल बहती नजर आ रही। कोई दोराय नहीं कि गर्म हवा के थपेड़ों के बीच गांव की चौपालों में पेड़ की छांव के नीचे पार्टियों का बखान बढ़ चढ़कर हो रहा है, लेकिन यह बखान पार्टियों के कार्यकर्ताओं तक ही सीमित हैं, जबकि प्रत्याशियों को जीत व हार का मुंह दिखाने वाले निर्णायक वोटर शांत हैं।

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सच्चाई कम चुनावी फंडा ज्यादा

वोटरों की चुप्पी राजनैतिक दलों की धड़कने बढ़ा रही है। वर्ष 2014 के चुनाव में मतदान से पूर्व ही जहां प्रत्याशियों को जनता का रुझान मिलने के बाद पता भापने का मिल जाता था, लेकिन यह चुनाव अभी तक पूरी तरह से बंद है। राजनैतिक दल बढ़ चढ़कर दावे कर रहे हैं, लेकिन उनके दावों में सच्चाई कम चुनावी फंडा ज्यादा नजर आ रहा है।

समाज का वोट किस तरफ जाएगा कोई अंदाजा नहीं

मतदाता चुनावी चर्चा में जमकर हिस्सा लेते हैं। सही- गलत सरकार व पूर्व सरकार की नीतियों को लेकर राय भी रखते हैं लेकिन इस बार किस समाज का वोट किस तरफ जाएगा, इसको लेकर मतदाता खामोश है। किसी की जुबां पर भी इस बार इस प्रत्याशी या पार्टी को वोट देंगे, कहीं भी खुलकर सामने नहीं आ रहा है।

मतदाताओं की यही चुप्पी पार्टी के जिम्मेदारों की उलझने बढ़ा रहीं हैं। हरदोई लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं शामिल हैं, जिसमें सवायजपुर, शाहाबाद, हरदोई, गोपामऊ व सांडी शामिल हैं। पांचों विधानसभाओं में कुल 19 लाख 13 हजार 730 मतदाता हैं। जो इस बार इस सीट पर दावा करने वाले प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।

कोई आकलन नहीं कर पा रहे है

एक आधा पार्टी को लेकर सामान्य वर्ग का वोटर जिनमें ब्राह्मण व ठाकुर शामिल है कहीं-कहीं किसी पार्टी की जीत का दावा कर रहा है लेकिन निर्णायक वोटरों में शामिल मुस्लिम, अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग का वोटर सिर्फ सुन रहा है बल्कि बोल कुछ नहीं रहा है। इसी चुप्पी से राजनैतिक खेमों के गणितज्ञ इस सीट पर चुनाव को लेकर कोई आकलन नहीं कर पा रहे है।

सामान्य वर्ग के वोटरों की संख्या जहां इस सीट पर 5,37,759 है, वहीं पिछड़ा वर्ग 3,86,574 व एससी-एसटी 5,97,083 व मुस्लिम वोटर की संख्या 3,92,314 है। कुल मिलाकर 13 लाख से कहीं अधिक वोटर मन ही मन मंथन कर रहा है। दलों को भारी पड़ सकती है मतदाताओं की उदासीनता यह मेरा वो तेरा की तर्ज पर राजनैतिक दलों के जिम्मेदार गणित लगा रहे हैं लेकिन काफी संख्या में मतदाता जहां शांत हैं वहीं इस बार चुनाव के प्रति उदासीनता भी कहीं न कहीं देखने को मिल रही है। यही माहौल मतदान के दिन 13 मई तक रहा तो वोट का प्रतिशत तो गिरेगा ही साथ ही कई दलों के समीकरण भी गड़बड़ा सकते हैं।

सांसदों से दूरी रहा प्रमुख कारण

प्रधान, विधायकों का क्षेत्र सांसदों की तुलना में काफी सीमित होता है। यही कारण है कि मतदाता कहीं न कहीं अपनी बात प्रधान से लेकर विधायकों तक आसानी से पहुंचा लेता है लेकिन सांसदों का क्षेत्र विस्तृत है। इसलिए कई जगह वह चुनाव के बाद पहुंच ही नहीं पाते। इस बार भी लोगों को यह खूब अखरा है। जिसके चलते उनमें कहीं न कहीं असंतोष है। हालांकि इस असंतोष को पार्टियों के प्रत्याशियों व प्रशासन के द्वारा दूर किया जा रहा है।


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