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Lok Sabha Election 2019: कश्मीर और कैराना विस्थापन एवं पलायन का मुद्दा सड़क से संसद तक

पहले चरण में आज जम्मू-कश्मीर की दो सीटों जम्मू व बारामुला और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना सीट पर भी मतदान है। दोनों जगहों पर अन्य मुद्दों के अलावा विस्थापन का बड़ा मुद्दा है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 09:19 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 09:19 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: कश्मीर और कैराना विस्थापन एवं पलायन का मुद्दा सड़क से संसद तक
Lok Sabha Election 2019: कश्मीर और कैराना विस्थापन एवं पलायन का मुद्दा सड़क से संसद तक

नई दिल्ली, अतुल पटैरिया। राजधानी दिल्ली से चंद किमी दूर पश्चिमी उप्र का कैराना। और कश्मीर। दोनों में आमजन के विस्थापन और पलायन का मुद्दा सड़क से संसद तक गूंजा। आज इन दोनों जगहों पर मतदान होगा। कश्मीर से लाखों कश्मीरी पंडितों को विस्थापित हुए आज तीन दशक बीत चुके हैं। ये लोग आज भी अपने हक की उम्मीद बांधे हुए हैं। इनके हित संरक्षण को लेकर राजनीति भी जमकर हुई, लेकिन कोई स्पष्ट नीति नहीं बन सकी। इधर, कैराना में हालात सुधर चले हैं, लेकिन इन्हें इसी तरह बरकरार रखने की दरकार है।

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कैराना और कश्मीर के हालात एक दूसरे से भले ही मेल न खाते हों, लेकिन पलायन के पीछे के कारणों में कहीं न कहीं जो एक समानता दिखाई दी, उस पर ही सारी राजनीति हुई। खासतौर पर कश्मीरी पंडितों के मामले में। सवाल यह कि अपने ही देश में किसी व्यक्ति को यदि किसी भयग्रस्त होकर अपनी जड़ें, अपना घरबार छोड़कर पलायन करना पड़ जाए, तो क्या यह राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं होना चाहिए? जो पीड़ित हैं, वे आस लगाए हैं। फैसला देश करेगा।

कैराना के सांसद ने 2014 से पलायन करने वाले 350 से अधिक परिवारों की सूची जारी कर देश को चौंका दिया था। राजनीति का तवा तब गरम हो उठा जब उन्होंने बताया कि इनके पलायन का मुख्य कारण हफ्ता वसूली, रंगदारी, हत्या और महिलाओं से छेड़खानी और बलात्कार की घटनाओं से उत्पन्न दहशत है। 2017 में उप्र विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने इसे मुद्दा बनाया। हालांकि अब कैराना में स्थिति सुधरते दिख रही है। लेकिन कश्मीरी पंडितों की स्थिति 30 साल से जस की तस है।

कैराना में सैकड़ों परिवारों के विस्थापन को कुछ लोग कश्मीरी पंडितों के विस्थापन से जोड़ कर देखते रहे। लेकिन दोनों में जो अंतर था, वह अपराध और आतंकवाद का था। कैराना में संगठित अपराधियों ने भय का माहौल बनाया तो कश्मीर में आतंकवादियों ने। कश्मीरी ब्राह्मण जिनका सदियों पुराना इतिहास रहा है, उन्हें नवें दशक में पाकिस्तान पोषित और कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों की धमकी के कारण घरबार छोड़कर भागना पड़ा। आज भी ये कश्मीरी पंडित शेष भारत में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं। यह बात साफ है कि कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा का कारण तत्कालीन सरकारों का उदासीनता पूर्ण रवैया ही था। जाहिर है, उनके लिए मुद्दा कुछ और था।

मोदी सरकार ने इस मसले पर संवेदनशील रुख दिखाया। घोषणा की कि घाटी के विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वहां फिर से बसाने के लिए एक टाउनशिप बनाई जाएगी, जहां वे सुरक्षित रह सकें। इसके लिए राज्य सरकार से भूमि आवंटित करने को कहा गया। राज्य की भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बात भी कही। 2015-16 के बजट में केंद्र सरकार ने इनके पुनर्वास के लिए एक बड़ा पैकेज घोषित किया, लेकिन अन्य राजनीतिक दलों का रुख सहयोगी नहीं रहा। अंत में राज्य सरकार ने कह दिया कि कश्मीरी पंडित अलग नहीं बसाए जा सकते हैं, उनको सबके साथ ही रहना होगा।

2018 में जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती ने दिल्ली में कश्मीरी पंडितों के एक संवाद कार्यक्रम में कहा- कश्मीरी पंडितों को घाटी में आना चाहिए, जिससे कि आज की पीढ़ी को यह पता चल सके कि उनकी जड़ें कहां से जुड़ी हुई हैं। कश्मीर में पिछले कुछ सालों में आपके साथ जो हुआ, वह सब बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अब मैं आपसे अपील करना चाहती हूं कि आप घाटी में आएं। लेकिन पीछे से यह भी कह दिया गया कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में खुले रहने देने की सोचना बिल्लियों के बीच में कबूतर को फेंक देने जैसा होगा।

स्थिति यह है कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों का नाम तक वोटर लिस्ट से गायब होता गया। गत स्थानीय निकायों के चुनाव में कश्मीरी विस्थापितों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने उनके लिए पोस्टल बैलट की विशेष व्यस्वस्था की, लेकिन पोस्टल बैलट तो तभी बनेगा जबकि मतदाता सूची में उनका नाम हो। विस्थापित कश्मीरी पंडितों की बात करें तो आज इनका एक लाख पांच हजार वोट घाटी की राजनीति को बदल देने का माद्दा रखता है। लेकिन ये मतदान से वंचित रहते हैं। पलायन की पीड़ा झेल रहे ऐसे अनेक परिवारों को आस है कि एक दिन इन्हें अपने घर लौटने अवश्य मिलेगा।

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