मिशन 2019: राजद-कांग्रेस के बीच कहीं फंस तो नहीं रहा 'प्रियंका का पेच', जानिए
बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में सीटों के बंटवारे का पेंच अबतक सुलझा नहीं है। राजद और कांग्रेस के बीच प्रियंका गांधी को लेकर भी पेंच फंस सकता है। जानिए इस रिपोर्ट में...
पटना [अरविंद शर्मा]। राजनीति में प्रियंका की सक्रियता से बिहार भी अछूता नहीं रह पाएगा। इस राज्य की कई लोकसभा सीटें पूर्वी यूपी से सटी हुई हैं। जातियों में बंटे मतदाताओं का मिजाज भी मिलता-जुलता है। ऐसे में यूपी की लहर बिहार तक आ सकती है। अभी सिर्फ ऊर्जा आ रही है।
जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर द्वारा प्रियंका की तारीफ यह संकेत करती है कि यूपी में बदलाव की बयार को बिहार भी महसूस करने लगा है। राजद को डर लगने लगा है कि राज्य में अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो उसका क्या होगा? महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों को आशंका है कि कांग्रेस की टोकरी का आकार अगर बढ़ता गया तो उनके लिए कुछ खास नहीं बच पाएगा।
जीतनराम मांझी से लेकर मुकेश सहनी तक सहम गए हैं। यही कारण है कि मांझी ने कांग्रेस पर दबाव बनाने-बढ़ाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। सिर्फ एक विधायक वाला हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने 27 विधायकों वाली कांग्रेस के बराबर अगर हिस्सेदारी मांगी है तो इसे दूसरे नजरिए से समझा जा सकता है। ऐसा करके मांझी राजद की भाषा बोलते नजर आ रहे हैं।
बिहार में विरोधियों से ज्यादा महागठबंधन के साथी दल ही सशंकित
जाहिर है, यूपी में प्रियंका की सक्रियता से बिहार में विरोधियों से ज्यादा महागठबंधन के साथी दल ही सशंकित हैं। राजग में जिस तरह से दोनों बड़े दलों ने मिलकर आपस में सीटें बांट ली और तीसरे साथी लोजपा की मुराद भी पूरी कर दी, उस तरह से महागठबंधन के घटक दल एक साथ अभी तक नहीं बैठ पाए हैं। समन्वय समिति भी नहीं बनी है और कॉमन एजेंडा भी नहीं बन पाया है।
खरमास बीत गया। कांग्रेस की रैली भी खत्म हो गई। किंतु अभी तक महागठबंधन में सीट बंटवारे का मुहूर्त नहीं निकल सका है। यहां तक कि सहयोगी दलों की संख्या भी तय नहीं हो पाई है कि किस-किस को शामिल कराया जाएगा और किस हैसियत में रखा जाएगा। हर हफ्ते कोई न कोई नया झंझट खड़ा हो जाता है।
मांझी के ताजा पैतरे का संकेत साफ है कि सीट बंटवारे से पहले घटक दलों को अभी कई दौर से गुजरना पड़ सकता है। प्रियंका गांधी के सक्रिय सियासत में आने और यूपी के कार्यकर्ताओं में उत्साह देखकर बिहार कांग्रेस भी नई ऊर्जा महसूस करने लगी है।
राजद के साथ पहले से ही बराबरी के आधार पर सीट बंटवारे के लिए अड़ी कांग्र्रेस अब प्रियंका के आने के बाद किसी भी हाल में कम पर समझौता करने के पक्ष में नहीं है। भाजपा के निलंबित सांसद कीर्ति झा आजाद और पप्पू यादव के मामले में कांग्रेस ने अपने इरादे जाहिर भी कर दिए हैं।
महागठबंधन के तमाम झंझटों और सीटों पर रस्साकशी के पीछे कांग्रेस के रणनीतिकार प्रियंका का राजनीति में प्रवेश मानते हैं। बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी के मुताबिक अंदर से मांग चल रही है कि प्रियंका को यूपी के साथ बिहार, झारखंड और बंगाल का प्रभारी बना दिया जाए। चार राज्यों में लोकसभा की कुल 176 सीटें हैं, जो कुल संख्या की एक तिहाई है।
क्षेत्रीय दलों ने किया कांग्रेस को कमजोर
आकलन किया जा रहा है कि अगर ये चारों राज्य संभल गए तो सियासत में कांग्र्रेस का नया अवतार होगा। चारों राज्यों में प्रियंका की सक्रियता का सीधा मतलब क्षेत्रीय दलों के पास बंधक बने कांग्रेस के परंपरागत वोटरों को छुड़ाना है। उत्तर भारत के इन्हीं चार राज्यों की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है।
यूपी में सपा-बसपा, बिहार में राजद और जदयू, झारखंड में झामुमो-झाविमो तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्र्रेस के चलते कांग्र्रेस की राजनीति पिछले तीन दशकों से मार खाती रही है। 1990 से पहले पश्चिम बंगाल को छोड़कर बाकी राज्यों में कांग्र्रेस की मजबूत सरकारें रही हैं।
पश्चिम बंगाल से भी उसे अच्छी संख्या में सीटें मिलती रही थी। किंतु जबसे इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ तभी से कांग्र्रेस धीरे-धीरे नेपथ्य की ओर बढ़ती गई। अब तो स्थिति हो गई है कि क्षेत्रीय दलों की बैशाखी पर ही कांग्र्रेस की राजनीति पूरी तरह टिक गई है।
2009 के झटके को भूली नहीं है कांग्रेस
महागठबंधन में सीट बंटवारे में विलंब की वजह को समझने के पहले कांग्र्रेस की मंशा को समझना पड़ेगा। साथ ही राहुल गांधी के इस एलान पर भी गौर करने की जरूरत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह 2019 नहीं, बल्कि 2024 के लिए फील्ड सजा रहे हैं।
सपा-बसपा ने यूपी में गठबंधन से कांग्रेस को बाहर करके राहुल को बड़ी चोट दी है। ऐसा ही दर्द 2009 में बिहार में लालू प्रसाद ने भी कांग्र्रेस को दिया था, जब उसके लिए सिर्फ तीन सीटें छोड़कर बाकी 37 सीटें रामविलास पासवान के साथ बांट ली थी। जाहिर है, यूपी की तरह बिहार में भी कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
बकौल कौकब राजद के साथ जबतक गठबंधन है तबतक है। उसकी अलग नीतियां हैं और कांग्रेस की अलग। दोनों के कार्यक्रम भी अलग हैं। प्रियंका के लालू प्रसाद और तेजस्वी से भी अच्छे संबंध हैं। हम साथ-साथ रहने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। अगर सम्मानजनक समझौता नहीं हो पाता है तो कांग्रेस भी अपना रास्ता खुद तय करने के लिए तैयार होगी। ऐसे में प्रियंका की लोकप्रियता से बिहार में संगठन की स्वतंत्र पहचान मजबूत हो सकती है।