चुनावी चौपाल : पानी मिले तो लहलहाए फसल, खिल उठें बाग
जलस्तर अब शहर ही नहीं गांवों में भी तेजी से गिर रहा है। मोहनलालगंज संसदीय क्षेत्र की अर्थव्यव
लखनऊ, जेएनएन। जलस्तर अब शहर ही नहीं गांवों में भी तेजी से गिर रहा है। मोहनलालगंज संसदीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और ग्रामीणों का जीवन यापन कृषि पर ही निर्भर है। यहां खेतों की सिंचाई और बागों को बचाने के लिए कई दशक से सरकारी प्रयास नहीं किए गए। मोहनलालगंज, मलिहाबाद, माल, गोसाईगंज, सरोजनीनगर, चिनहट, काकोरी और बीकेटी जैसे बड़े क्षेत्र से केवल 962 किलोमीटर लंबी नहर है। राजकीय नलकूप की संख्या 339 है। जलस्तर गिरने से जहां मलिहाबाद, माल से लेकर बीकेटी तक फैले आम के बागों की मुस्कान कम हो रही है। बाग सूखने लगे हैं।
वहीं मोहनलालगंज और गोसाईगंज जैसे कई इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था न होने से फसल पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। सरकार की नई नहर खोदने की योजनाएं धरती पर आकार नहीं ले पा रही हैं। दुलारमऊ माइनर, तिकुनिया मऊ माइनर और हबुआपुर ग्राम सभा के तीन गांवों के लिए माइनर को बनाने का काम अधूरा पड़ा है। बिन पानी सब सून, कुछ यही विनती मोहनलालगंज के अन्नदाता बड़े-बड़े सियासतदानों से कर चुके हैं। दैनिक जागरण की चुनावी चौपाल में सिंचाई व्यवस्था के प्रति सरकार की उपेक्षा पर किसानों ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
तीन गांव की सैकड़ों बीघा जमीन बिना पानी के अब सूखने लगी है। कुछ सामर्थ्यवान लोगों ने इंजन सेट लगा रखा है, लेकिन अब तो जलस्तर गिर रहा है जिससे पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता है। श्यामलाल यादव
सिंचाई के लिए एक नहर आ रही थी। सरकार ने 25 साल पहले इसका सर्वे भी किया था। कुछ दूर तक नहर आ गई, लेकिन जमीनी विवाद में नहर बीच में फंस गई। अधिकारियों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इससे बेली गांव के पास नहर का काम रुक गया। शीतला प्रसाद
जहां तक नहर का काम हुआ है उसमें गोसाईगंज नहर से पानी आता है, लेकिन हमारे खेतों पर यह पानी कभी नहीं पहुंचता। बेमौसम वहां की नहर को एक नाले में मिलाने से वह उफनाता है तो हमारी फसल को भी बर्बाद कर देता है। राम खेलावन
जिस जगह नहर को बनाने का सीमांकन किया गया, उस पर बिजली के पोल लगा दिए गए। यदि नहर बन जाए तो उसकी पटरी से एक रास्ता भी गांव आने वाले लोगों को मिल सकता है। रामचंदर
मुख्य नहर तो इंदिरा नहर है। इसमें हर समय पानी रहता है। फैजाबाद रोड से कई किलोमीटर लंबी इस नहर से सहायक नहरें निकालने का काम किया जाना चाहिए, जिससे गोसाईगंज ही नहीं आउटर ¨रग रोड से जुड़े कई सौ गांवों के खेतों को पानी मिल सकता है। देवानंद
गोसाईगंज में कुछ बड़े बागबान भी हैं, जिनके पास देशी आम के बाग हैं। खेतों में फसलों की सिंचाई के समुचित इंतजाम न होने से छोटे किसान सबसे अधिक परेशान होते हैं। वहीं अमेठी से बाराबंकी की ओर जाने वाले रास्ते पर दोनो तरफ कई बाग सूखने लगे हैं। उनके पत्ते मुरझा गए और बौर इस बार आई ही नहीं। बैद्यनाथ
नहर न होने से सिंचाई के लिए जलस्तर गिरा है। इससे पीने के पानी का भी संकट हो गया है। गोसाईगंज से लेकर मोहनलालगंज तक लगभग अधिकांश तालाब सूख गए हैं। मवेशियों को नहलाने का संकट भी बनने लगा है। सियाराम
पूरी बेल्ट में कभी धान और गेहूं की फसल बहुत अच्छी होती थी। दाने भी मजबूत होते थे। अब पानी की कमी से दाने कमजोर हो रहे हैं। प्रति बीघा चार से पांच क्विंटल की फसल की पैदावार भी घट रही है। उमेश कुमार