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पश्चिम बंगाल: कांग्रेस के साथ जीती सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का माकपा ने दिया प्रस्ताव

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और माकपा द्वारा जीती गई छह लोकसभा सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का माकपा ने प्रस्ताव दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 05 Mar 2019 12:24 AM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 12:24 AM (IST)
पश्चिम बंगाल: कांग्रेस के साथ जीती सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का माकपा ने दिया प्रस्ताव
पश्चिम बंगाल: कांग्रेस के साथ जीती सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का माकपा ने दिया प्रस्ताव

नई दिल्ली, प्रेट्र। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और माकपा द्वारा जीती गई छह लोकसभा सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का माकपा ने प्रस्ताव दिया है। यह फैसला तीन और चार मार्च को हुई पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में लिया गया।

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इसे राज्य में दोनों राजनीतिक दलों के बीच भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव के खिलाफ एकजुटता के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि पश्चिम बंगाल में जहां दोनों पार्टियों का प्रदेश नेतृत्व रणनीतिक गठजोड़ के लिए तैयार है, वहीं वामदलों की केरल शाखा ने कांग्रेस के साथ किसी भी गठबंधन से इन्कार किया है।

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में केंद्रीय समिति ने पहले फैसला किया था कि माकपा, भाजपा व तृणमूल विरोधी वोटों के लिए उपयुक्त रणनीति अपनाएगी। इसी आधार पर माकपा ने कांग्रेस और माकपा द्वारा जीती गई छह लोकसभा सीटों पर दोस्ताना लड़ाई नहीं होने का प्रस्ताव दिया है। बंगाल में बाकी की सीटों के लिए वामदल आठ मार्च को फैसला लेंगे। 2016 के विधानसभा चुनावों में भी दोनों दलों ने समान रणनीति अपनाई थी।

येचुरी ने बताया कि बिहार में राजद से समस्तीपुर जिले की उजियारपुर सीट के लिए बात चल रही है। वहीं उड़ीसा में पार्टी भुवनेश्वर लोकसभा और कुछ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

माकपा द्वारा जीती गई सीटें रहीं हैं कांग्रेस का गढ़
अभी यह पता नहीं चला है कि इस प्रस्ताव पर कांग्रेस सहमत है या नहीं। दरअसल 2014 के आम चुनाव में वाम मोर्चा प्रदेश में दो लोकसभा सीटें रायगंज और मुर्शिदाबाद जीतने में कामयाब रहा था। ये दोनों सीटें पहले कांग्रेस के कब्जे में थीं। जबकि कांग्रेस ने चार सीटें उत्तर मालदा, मालदा दक्षिण, बहरामपुर और जंगीपुर जीतीं थीं।

माना जा रहा है कि पार्टी किसी भी कीमत पर रायगंज और मुर्शिदाबाद की सीट नहीं छोड़ना चाहती है। क्योंकि ये सीटें कांग्रेस के गढ़ के तौर पर जानी जाती थीं।


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