पश्चिम बंगाल में भाजपा ने खुद को स्थापित करने के लिए अपनाई बहुआयामी रणनीति
पश्चिम बंगाल में लोकसभा के पहले चरण के मतदान के बाद मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा को स्थापित माना जाने लगा है।
आशुतोष झा, पश्चिम बंगाल से लौटकर। पश्चिम बंगाल में पहले चरण के मतदान के बाद जहां मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा को स्थापित माना जाने लगा है, वहीं बड़ी चर्चा इस बात पर है कि आखिर पार्टी ने इस बंजर जमीन को मैदान बनाया कैसे। ऐसा राज्य जहां न तो पार्टी की विचारधारा का कोई इतिहास था, न तो चेहरा। वह पार्टी महज ढ़ाई तीन वर्षो में नंबर चार या पांच से मुख्य लड़ाई में आ गई तो इसकी जमीन कई स्तर पर तैयार की गई।
मुख्य भूमिका तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की थी जिन्होंने इस बंजर जमीन को उपजाऊ माना और जमीन पर तीन चार कुशल रणनीतिकार लगाए और फिर नीचे चेहरे भी तैयार किए गए और विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए सेना भी।
पश्चिम बंगाल में फिलहाल प्रभारी शाह के विश्वस्त महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और आजमाए हुए संगठन संयुक्त सचिव शिव प्रकाश महीनों से डेरा जमाए हैं। उत्तर बंगाल के एक होटल के बाहर भाजपा के कुछ नेता पत्रकारों को बाइट देने में जुटे हैं, ये दोनों नेता होटल के मीडिया से दूर बैठे हैं।
दरअसल, भाजपा हर रणनीति को साधने मे जुटी है। पश्चिम बंगाल मे लंबे समय से चेहरों की कमी और बंगाली भाषाभाषी बहुल जनसंख्या के बीच केवल हिंदी भाषियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने जानबूझकर केवल उन लोगों को मीडिया के सामने रखने का निर्णय लिया है जो बंग्लाभाषी है।
हाल के दिनों में मुकुल राय से लेकर विभिन्न दलों के दर्जनों स्थापित नेताओं के पार्टी मे आने से भाजपा को चेहरों की कमी नहीं रही है। मुकुल जाहिर तौर पर सबसे अहम साबित हुए जो कभी तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के सेनापति हुआ करते थे। लेकिन यह सबकुछ तत्काल नहीं हुआ।
पिछले कुछ वर्षो से आरएसएस आदिवासियों के बीच लगातार काम करता रहा है। वहीं कैलाश विजयवर्गीय के अनुसार बंगाल में कार्यकर्ताओं का नैतिक बल गिरा हुआ था। हमें उनके साथ खड़ा होना पड़ा, उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार होना पड़ा।
आज यह स्थिति है कि 78 हजार बूथों में से लगभग 65 हजार बूथ में हमारे कार्यकर्ता हैं। मंडल स्तर पर संगठन मजबूत किया गया। जो पहले 454 मंडल मे था अब वह बढ़कर 1100 हो गया है। इससे कार्यकर्ताओं को जोड़ने में मदद मिली। पिछले साल स्थानीय चुनावों में भाजपा ने जिस तरह प्रदर्शन किया उसकी वजह यही मेहनत थी और उसी के जरिए यह तृणमूल विरोधी दलों और उनके कार्यकर्ताओं में भी खुद के लिए आकर्षण बनाने में सफल रही। दरअसल, भाजपा इसे भी बड़ी जीत मानती है।
माकपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार- '2011 में हम इसलिए हारे क्योंकि ममता बनर्जी को विरोधी सभी दलों का साथ मिल गया था। लेकिन उसके बाद से हम सब अलग-अलग लड़ रहे हैं।' फिलहाल भाजपा के लिए यह भी बडी उपलब्धि है कि वह खुद को तृणमूल से लड़ाई में सबसे आगे खड़ी दिखाने में सफल हो रही है।
ध्यान रहे कि 2014 में पार्टी की कमान संभालने के बाद ही शाह ने केरल और पश्चिम बंगाल को लेकर खास रणनीति तय की थी। उन्होंने लगभग डेढ़ सौ ऐसी सीटों पर जीतने का लक्ष्य तय किया था जहां भाजपा कभी नही जीती। पांच -छह सीटों की समूह बनाकर शाह ने केंद्रीय मंत्रियों का इसका जिम्मा दिया था और निर्देश था कि वह लगातार वहां दौरा करे। केंद्रीय योजनाओं की सफलता का भी आकलन करें और संगठन की मजबूती पर भी ध्यान दें।