महाराष्ट्र: सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा में सियासत चमकाने में लगे हैं इन दिग्गजों के वारिस
मराठवाड़ा के लोग आठों सांसदों से एक ही चीज चाहते हैं वो है पानी। अगर इसका इंतजाम हो जाये तो इस क्षेत्र की सब समस्याएं अपने आप ही सुलझ जाएंगी।
लातूर, ओमप्रकाश तिवारी। करीब चार साल से भीषण सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में दिग्गजों के वारिस अपनी-अपनी सियासत चमकाने में लगे हैं। यह लोकसभा चुनाव उनके लिए अपना वर्चस्व सिद्ध करने का अवसर बन गया है। जबकि, मराठवाड़ा के लोग इस क्षेत्र के आठों सांसदों से एक ही चीज चाहते हैं-पानी। इसका इंतजाम हो गया, तो सब समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी।
कभी हैदराबाद के निजाम की रियासत का एक भाग रहा मराठवाड़ा 1960 में महाराष्ट्र बनने के समय इस सूबे का हिस्सा बना। नांदेड़ से शंकरराव चह्वाण इस क्षेत्र के बड़े नेता रहे। उनके बाद कांग्रेस से विलासराव देशमुख और भाजपा से गोपीनाथ मुंडे उभरकर आए। कुछ ही वर्षों के अंतराल में इन दोनों नेताओं के असामयिक अवसान ने मराठवाड़ा का जैसे नूर ही उड़ा दिया है।
विलासराव लातूर से थे, तो गोपीनाथ बीड से। अलग-अलग दलों में होने के बावजूद दोनों में गहरी मित्रता थी। मराठवाड़ा के हित के लिए मिलकर सोचते और काम करते थे। लातूर के एक होटल व्यवसायी बताते हैं कि देशमुख के निधन के बाद यहां के होटलों का व्यवसाय आधा हो गया है। क्योंकि उद्योग-धंधों को उनके द्वारा मिलने वाला संरक्षण बंद हुआ तो उद्योग बंद होने लगे। वैसे तो देशमुख और मुंडे के बाद की पीढ़ी के अशोक चह्वाण की सक्रियता बरकरार है। लेकिन शंकरराव चह्वाण के पुत्र और एक बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
होने के बावजूद वह अपना प्रभाव अपने जनपद नांदेड़ तक ही सीमित रख पा रहे हैं। उन्हें आदर्श घोटाले में नाम आने के बाद अपना मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उनके उभार में यह धब्बा भी एक बाधा बन चुका है। वर्चस्व की लड़ाई में मुंडे परिवार भी पीछे नहीं है।
गोपीनाथ मुंडे की ज्येष्ठ पुत्री पंकजा फड़नवीस सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं, तो उनकी छोटी बहन प्रीतम बीड लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार उम्मीदवार हैं। वह पहली बार अपने पिता के निधन से सीट खाली होने पर चुनाव जीतकर संसद में पहुंची थीं। उन्हें बड़ी बहन का तो पूरा सहारा मिल रहा है। लेकिन चचेरे भाई धनंजय मुंडे अकेले ही दोनों बहनों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। वह गोपीनाथ मुंडे परिवार से बगावत कर राकांपा नेता अजीत पवार की आंखों की पुतली बने हुए हैं। इसका लाभ उन्हें विधानपरिषद में नेता विरोधीदल का ओहदा पाकर मिल रहा है। पंकजा मुंडे के सामने दोहरी चुनौती है। एक तो चचेरे भाई की सियासी चालों से निपटना, तो दूसरे अपनी ही पार्टी में अपना रुतबा कायम रखना। लेकिन मराठवाड़ा के लोगों को इन सियासी वारिसों की सियासत से कोई मतलब नहीं है। उनकी सबसे बड़ी समस्या है जलसंकट। ज्यादातर शहरों में पीने का पानी सप्ताह में एक बार या 15 दिन में एक बार आता है। यहां किसी भी रास्ते पर निकल जाइए, छोटे-छोटे बच्चे साइकिलों से कई-कई किलोमीटर दूर से पानी ढोते दिखाई पड़ जाएंगे।
अगली पीढ़ी में वर्चस्व साबित करने की होड़
अशोक चह्वाण के अलावा अब देशमुख, मुंडे और राज्य के एक और मुख्यमंत्री रहे शिवाजीराव निलंगेकर की अगली पीढ़ी मराठवाड़ा की सियासत में अपना वर्चस्व साबित करने की होड़ में लगी है। विलासराव के विधायक पुत्र अमित देशमुख और जिला परिषद सदस्य धीरज देशमुख, गोपीनाथ मुंडे की दो पुत्रियां पंकजा मुंडे और प्रीतम मुंडे तथा भतीजे धनंजय मुंडे, शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर के पौत्र संभाजी पाटिल निलंगेकर पूरी ताकत से मोर्चा संभाल चुके हैं। अमित और धीरज कांग्रेस में रहते हुए अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी क्षेत्र के संभाजी पाटिल निलंगेकर करीब एक दशक पहले ही अपने दादा शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर की पार्टी कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं। उनका क्षेत्र लातूर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गया है।