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Lok sabha Elections 2019 : गोरखपुर में रमी है विश्‍वास, विकास और इतिहास की धूनी

गोरखपुर इन दिनों कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों की जुबां पर है। एक सवाल कच्छ के रण से लेकर थार के रेगिस्तान तक हर किसी के मन मे है क्या होगा गोरखपुर लोकसभा सीट का परिणाम।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 12:27 PM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 05:52 PM (IST)
Lok sabha Elections 2019 : गोरखपुर में रमी है विश्‍वास, विकास और इतिहास की धूनी
Lok sabha Elections 2019 : गोरखपुर में रमी है विश्‍वास, विकास और इतिहास की धूनी

गोरखपुर, क्षितिज पांडेय। इस समय मैं खड़ा हूँ, राप्ती-रोहिन के संगम पर। यह राप्ती वही अचिरा है, जहाँ कभी हर्षवर्धन की सेना टिकी थी, रोहिन भी वही है जिससे पानी लेने के दो गणराज्यों के झगड़े को बुद्ध ने सलटाया था। शाम का झुटपुटा है। उत्तर से सरकती आ रही, पतली धार वाली रोहिन,चौड़ी धार वाली राप्ती में ऐसे समा जा रही है। जैसे उसे कोई नीड़ मिल गया हो, जिसमें ढलते सूरज का दीप शिखा-सा मद्धिम प्रकाश हो।

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यह पंक्तियां कवि शेषनाथ श्रीवास्तव की लिखी हुई हैं और जिस राप्ती-रोहिन नदियों के संगम स्थल की वह बात करते हैं, वह गोरखपुर है।

सबकी जुबां पर गोरखपुर

गोरखपुर इन दिनों कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों की जुबां पर है। एक सवाल कच्छ के रण से लेकर थार के रेगिस्तान तक हर किसी के मन मे है,' क्या होगा गोरखपुर लोकसभा सीट का परिणाम'। हिंदुत्व के झंडाबरदारों के अग्रणी पंक्ति में शामिल नाथ पंथी गोरक्षपीठ के कब्जे में रही यह सीट उन चुनिंदा सीटों में शुमार रही है, जहां चुनावी परिणाम के बाद चर्चा प्रत्याशी की जीत की नही, वरन हार- जीत के अंतर को लेकर होती है। पर, पिछले साल के लोकसभा उपचुनाव के परिणाम ने हर किसी के आंकलन और विश्वास को डिगा कर रख दिया। 28 बरस तक गोरक्ष पीठ के कब्जे में रही इस लोकसभा सीट से कोई और भी संसद पहुंच सकता है, यह भी सामने आया। उस उपचुनाव ने कई मिथक तोड़े तो कई नए राजीनीतिक समीकरणों को जन्म भी दिया। कुछ में नए ऊर्जा-विश्वास का संचार हुआ तो कइयों ने नई संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी। उपचुनाव परिणाम की तपिश अब तलक महसूस की जा सकती है और शायद यही वजह है कि इस बार के चुनावी परिणाम को लेकर कोई भी आश्वस्त नहीं है।

योगी की खड़ाऊं लेकर आशीर्वाद मांग रहे रविकिशन

यहाँ भोजपुरी स्टार रवि किशन योगी आदित्यनाथ की खड़ाऊं लेकर लोगों का आशीर्वाद मांग रहे हैं तो परंपरागत वोट बैंक की पतवार लिए सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार राम भुआल निषाद है। कांग्रेस ने बड़े स्थानीय वकील मधुसूदन तिवारी पर दांव लगाया है। जीत की कोशिशें किसी भी ओर से कम नहीं हो रहीं। सपा और बसपा के लिए यह योगी आदित्यनाथ को उनके गढ़ में आईना दिखाने का मौका है तो कांग्रेस को अपने पुनर्जीवन की आस है। पर इन सब से अलग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह चुनाव कुछ और ही लहजे से खास है। देश भर में भाजपा के स्टार कैम्पेनर के रूप में हिंदुत्व की ध्वजा फहरा रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह महज एक लोकसभा सीट का चुनाव भर नही है। यह चुनाव है आशा और विश्वास की परख का और उससे भी बढ़कर प्रतिष्ठा और पहचान बनाये रखने का।

योगी की प्रतिष्‍ठा दांव पर

पेशे से शिक्षक, लेकिन राजनीति में खासी रुचि रखने वाले राजेश चंद्र गुप्त कहते हैं कि पिछले उपचुनाव में गोरखपुर से मिली हार के चलते पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट अब पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे अधिक फोकस वाली सीट बन गई है। यह सही भी है। दरअसल योगी जानते हैं कि यूपी जीतकर भी अगर गोरखपुर हार गए तो उनके लिए इस जीत के खास मायने नहीं रह जाएंगे। लिहाजा योगी ने अपने सभी राजनीतिक घोड़े खोल दिये हैं। आरएसएस और बीजेपी का संगठन तो काम कर ही रहा है, दो साल से निष्क्रिय उनकी हिन्दू युवा वाहिनी भी सक्रिय हो गयी है। योगी ने खुद भी गोरखपुर में ही डेरा डाल रखा है। हर एक जनसंपर्क, सभा, रैली की तैयारियों पर नज़र रख रहे हैं।

निषद समाज का प्रभाव ?

गोरखपुर सीट पर निषाद समाज का खासा प्रभाव है।अनुमान के मुताबिक यहां तीन लाख निषाद वोटर यहां है। माना जाता है कि इनका वोट एकमुश्त पड़ता है। 1998 के लोकसभा चुनाव हो या 2018 का उपचुनाव योगी को चुनौती मिली है तो इन्ही निषादों से। 1998 में जमुना निषाद से महज 6000 वोटों से जीते योगी को आखिरकार 2018 में प्रवीण निषाद से शिकस्त मिली। यह और बात है कि उपचुनाव में लड़ाई आमने-सामने की नही थी। फिलवक्त सपा-बसपा की ओर से निषाद समाज से रामभुआल ही चुनावी मैदान में हैं। एक तो महागठबंधन उस पर भी निषाद उम्मीदवार, भाजपा के लिए यह मुसीबत से कम नही। हालांकि जिस प्रवीण निषाद ने उपचुनाव में भाजपा को हराकर इतिहास रचा अब वह उसी बीजेपी के टिकट पर संतकबीरनगर से चुनावी दांव आजमा रहे हैं।

मिशन रविकिशन कितना आसान

भाजपा को उम्मीद है कि मोदी-योगी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों औेर अभिनेता रवि किशन की स्टार पावर की बदौलत वह पूर्वांचल की इस महत्वपूर्ण सीट पर आसानी से जीत दर्ज कर लेगी। रवि किशन की अपनी अलग छवि है। वह हिंदी-भोजपुरी और दक्षिण भारत सिने जगत के जाने-पहचाने चेहरे हैं। क्या उनके चेहरे से बीजेपी को कोई फायदा होगा! इस सवाल के जवाब में गोरखपुर विश्वविद्यालय के आचार्य कुमार हर्ष कहते हैं कि इस बार का चुनाव केंद्रीय नेतृत्व को ध्यान में रख कर लड़ा जा रहा है। पूरे देश मे बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रही है और फिर यह तो गोरखपुर है यहां कोई भी प्रत्याशी को नही योगी आदित्यनाथ के नाम और उनके प्रति विश्वास को वोट देता है।

'अश्वमेध का घोड़ा है, योगी जी ने छोड़ा है'

गोरखपुर की हालात भी कुछ ऐसी है जहां फिजाओं में विश्वास, विकास, इतिहास की कहानियां सुनी और सुनाई जा रही हैं। गोरक्षपीठ के प्रति विश्वास, मोदी-योगी के  किये तमाम विकास कार्यों तथा गोरक्षपीठ द्वारा स्वर्णिम और गौरवशाली इतिहास की बातें क्षेत्र में लोगो की बहस-मुबाहिसों का केंद्रीय बिषय है। बीजेपी की रैलियो में रवि किशन के लिए एक नारा खूब लग रहा है,  'अश्वमेध का घोड़ा है, योगी जी ने छोड़ा है' ..। इस नारे में मानो सार निहित है। अब 23 मई की तारीख बताएगी कि करीब 30 बरस के विश्वास, विकास और इतिहास की वेदी पर हो रहा यह यज्ञ चक्रवर्ती होने का तमगा दिलाता है या नही।

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