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मिशन 2019: नहीं सुलझ रहा पेंच, सीट बंटवारे पर महागठबंधन में महाझंझट

बिहार में महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीट शेयरिंग का पेंच नहीं सुलझ पा रहा है। घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे में बाधाएं हैं, जिससे गुत्थी उलझी हुई है। जानिए इस खबर में

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 11:59 AM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 02:11 PM (IST)
मिशन 2019: नहीं सुलझ रहा पेंच, सीट बंटवारे पर महागठबंधन में महाझंझट
मिशन 2019: नहीं सुलझ रहा पेंच, सीट बंटवारे पर महागठबंधन में महाझंझट

पटना [अरविंद शर्मा]। चुनाव के दिन करीब आते जा रहे। महासमर-2019 का माहौल बन गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों ने अपनी सीटें बांट ली हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गांधी मैदान में तीन मार्च को राजग की संयुक्त रैली में उसके सभी 40 प्रत्याशी मंच पर रहेंगे। किंतु महागठबंधन के घटक दलों में अभी तक यह भी साफ नहीं हो सका है कि किसके हिस्से में कितनी सीटें जाएंगी।

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नेता-कार्यकर्ता और टिकट के दावेदार अपने दल के खाते की सीटें जानने के लिए बेकरार हैं। लोग सवाल उठा रहे कि विपक्षी दल के रणनीतिकारों एवं घटक दलों के कर्णधारों को आखिर किस मुहूर्त का इंतजार है? जाहिर है, सीटों के बंटवारे में बाधाएं हैं, जिससे गुत्थी उलझी हुई है। 

अपनी और दूसरों के ताकत का आकलन चल रहा 
प्रत्यक्ष तौर पर जो दिख रहा है, उसके मुताबिक महागठबंधन में सबसे बड़ी गुत्थी सीटों की हिस्सेदारी को लेकर नजर आ रही है। भाजपा, जदयू और लोजपा की संयुक्त ताकत के खिलाफ बिहार में राजद-कांग्रेस ने कई छोटे दलों को जोड़कर महागठबंधन का कुनबा तैयार किया है।

घटक दलों की ओर से करीब पिछले साल के 21 दिसंबर को ही दावा किया गया था कि सीटों का बंटवारा हो चुका है। किसके हिस्से में कितनी सीटें हैं और कौन पार्टी कहां-कहां से लड़ेगी, खरमास बाद इसका एलान कर दिया जाएगा।

15 जनवरी को खरमास खत्म हो गया तो कांग्रेस की 29 साल बाद पटना के गांधी मैदान में आयोजित रैली का बहाना किया गया। अब उसे भी खत्म हुए हफ्तेभर बीत गया है। फिर भी दोनों बड़े दलों के रास्ते अलग-अलग दिख रहे हैं।

राजद नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी हटाओ-आरक्षण बढ़ाओ यात्रा पर बुधवार को ही दरभंगा, सुपौल और भागलपुर के लिए निकल चुके हैं। बिहार कांग्र्रेस के कर्णधार दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गए हैं, जहां नौ फरवरी को आलाकमान के साथ बैठक होनी है।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि महागठबंधन स्थिति कब साफ करेगा। महागठबंधन में कई दलों और वरिष्ठ-कनिष्ठ महत्वाकांक्षी नेताओं का जमावड़ा है। सबको हैसियत से अधिक की अपेक्षा है। असली संकट सीटों की हिस्सेदारी का है। सबने अपने हिसाब से प्रत्याशियों की सूची दे रखी है।

सबका दावा है कि सिर्फ उसका ही प्रत्याशी जीत सकता है। दूसरा नहीं। सूची में प्रतिदिन कोई नया नाम जुड़ रहा है और कोई कट जा रहा है। लिस्ट के साथ तकरार के हालात भी बन-बिगड़ रहे हैं। 

बेमेल सियासी कुंडलियां मिलाने में तो परेशानी होगी ही 
मेल कुंडली मिलाने की कोशिश भी चल रही। महागठबंधन में असली टकराव राजद-कांग्र्रेस के बीच ही है। वजह हैं, मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव और मुंगेर से कांग्रेस के दावेदार बाहुबली विधायक अनंत सिंह। प्रदेश में प्रभाव बढ़ाने के अभियान में जुटी कांग्रेस ने दोनों को अंगीकार कर लिया है। 

कांग्रेस का अडिय़ल रुख राजद को रास नहीं आ रहा है। पप्पू को गले लगाने के लिए तेजस्वी यादव तैयार नहीं हैं। उन्होंने अपनी मंशा से कांग्रेस नेतृत्व को अवगत करा दिया है। अब मामला लालू के दरबार में सुलझाया जाने वाला है। संभवत: शनिवार तक कोई न कोई रास्ता निकल आए। 

बराबर का अधिकार चाहिए बिहार कांग्रेस को 
29 साल बाद गांधी मैदान में ताकत दिखाने की कोशिश कर चुकी कांग्रेस का अगला प्रयास है कि उसे महागठबंधन में बराबर का अधिकार मिले। किंतु राजद को भी अपनी हैसियत में हिस्सेदारी गवारा नहीं है। वह 20 सीट से कम पर एकदम तैयार नहीं है। 

मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे कुशवाहा का काम भी छह सीट से कम पर नहीं चल सकता। ऐसे में मांझी की महत्वाकांक्षा का क्या होगा। शरद यादव के कुनबे को भी संतुष्ट करना है। फिर मुकेश सहनी और वामदलों के लिए क्या बचेगा? लालू की कृपा प्राप्त करने का दावा करने वाले अरुण कुमार कहां जाएंगे? जाहिर है यह मसला सबसे ज्यादा पेचीदा है।  

छोटे दलों की साख पर भी संकट 
महागठबंधन में छोटे दलों को जोड़ तो लिया गया है, लेकिन उनकी विश्वसनीयता पर भरोसा नहीं किया जा रहा है। बड़े दलों को आशंका है कि उनके वोट बैंक के सहारे दो-तीन सीटें जीतकर चुनाव बाद अगर राजग की जरूरतों के मुताबिक छोटे दलों ने पाला बदल लिया तो महागठबंधन क्या करेगा। उनपर कैसे अंकुश लगाएगा? 

इन्हीं आशंकाओं का जिक्र करते हुए राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने छोटे दलों को सीटों के लिए सौदेबाजी नहीं करने की हिदायत दी है। उन्होंने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, कॉमन प्लेटफॉर्म और कॉमन सिंबल पर चुनाव लडऩे की सलाह दी है ताकि बाद में वे पलट नहीं सकें।  

नाम और झंडों की संख्या बढ़ रही, दिक्कत भी 
राजद-कांग्र्रेस के कुनबे में दलों की संख्या की गिनती अभी ठीक-ठीक नहीं की जा सकती है। पांच दल जुड़ चुके हैं। कई अभी दरवाजे पर खड़े हैं। दस्तक दे रहे हैं। बिहार में इसके पहले सियासी मकसद के लिए किसी भी चुनाव में इतने सारे दल इकट्ठे नहीं हुए थे।

राजग के खिलाफ अभी राजद, कांग्र्रेस, रालोसपा एवं हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) की संयुक्त ताकत खड़ी दिख रही है। राजग और केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर रालोसपा ने कांग्र्रेस के जरिए महागठबंधन में प्रवेश पाया है, जबकि मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) की राजद के रास्ते इंट्री हुई है।

समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया से लालू प्रसाद की रिश्तेदारी है। इसलिए उसे भी राजद कोटे से ही एक सीट मिलनी तय है। तेजस्वी यादव के शिष्टाचार ने बसपा प्रमुख मायावती को प्रभावित कर रखा है। उन्हें भी एक सीट का न्योता दिया जा चुका है।

समाजवादी नेता शरद यादव का लोकतांत्रिक जनता दल भी महागठबंधन में दस्तक दे रहा है। बिहार के तीनों वामदल भी ताल ठोकने को तैयार हैं। भाकपा, माकपा और माले को उचित हिस्सेदारी मिलने का इंतजार है। निराशा मिली तो राह अलग हो सकती है।

रालोसपा तोड़कर और पिछले चुनाव के साथी उपेंद्र कुशवाहा को छोड़कर अलग दल बना चुके जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार को भी महागठबंधन से ही टिकट की दरकार है। नाव एक है, जिसमें कई दल और टिकट के दावेदार सवार हैं। कुछ को आश्वस्त कर दिया गया है। कुछ को अभी त्रिशंकु बनाकर रखा गया है। 


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