अतीत के आईने से: जिस सीट से पहली बार संसद पहुंचे वहीं से तीसरा आम चुनाव हारे थे वाजपेयी
तीसरे आम चुनाव से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें हैं। 1962 के लोकसभा चुनावों के नतीजों को पहली बार दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक डिस्प्ले बोर्ड पर प्रदर्शित किया गया था।
जागरण, स्पेशल। तीसरे आम चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) अपने तीसरे और अंतिम लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में एक और शानदार जीत हासिल की थी। दुर्भाग्य से चुनाव से ठीक दो साल बाद हृदयाघात से उनका देहांत हो गया। इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 44.7 फीसद वोट और 494 सीटों में से 361 सीटें मिलीं। पिछले दो चुनावों से उसका प्रदर्शन थोड़ा कमतर हुआ। हालांकि अभी भी लोकसभा में 70 फीसद सीटें कांग्रेस के पास ही थीं।
तीसरे लोक सभा चुनाव से जुड़ी कुछ रोचक बातें
19 फरवरी, 1962 से 25 फरवरी ,1962 के बीच तीसरे आम चुनाव संपन्न हुए थे। अन्य पार्टियों का प्रदर्शन इन चुनावों में भारतीय जनसंघ को 494 में से 14 सीटों पर जीत मिली। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ने कुल 29 सीटें जीतीं। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी 12 सीटों पर जीत दर्ज की। पहली बार हिस्सा ले रही सी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी ने करीब 8 फीसद वोट के साथ 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो कि भारतीय जनसंघ से बेहतर प्रदर्शन था।
मजबूती के साथ उभरी डीएमके
इस चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके एक मजबूत पार्टी बनकर उभरी। राज्य में कांग्रेस द्वारा 31 सीटें जीतने के बाद सात सीटें जीतकर डीएमके दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
कम और ज्यादा वोट फीसद
इस चुनाव में सबसे ज्यादा वोट फीसद केरल (70.55 फीसद) में और सबसे कम वोट फीसद ओडिशा (23.56 फीसद) में रिकॉर्ड किया गया था। 1962 के आम चुनावों में पूरे देश का औसत वोटर टर्नआउट 55.42 फीसद था।
इस्तेमाल में आई चुनाव की अमिट स्याही
पहली बार मैसूर में बनी इस स्याही का इस्तेमाल फर्जी वोटिंग रोकने के लिए इसी चुनाव में हुआ था।
बोर्ड पर प्रदर्शित किए गए नतीजे
1962 के लोकसभा चुनावों के नतीजों को पहली बार दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक डिस्प्ले बोर्ड पर प्रदर्शित किया गया था।
खत्म हुई पुरानी परंपरा
1951 और 1957 के आम चुनाव में एक ही सीट पर दो लोगों को चुना जाता था। इस परंपरा को 1962 के आम चुनावों में खत्म कर दिया गया। तबसे एक सीट पर एक से ज्यादा प्रत्याशी नहीं चुना गया।
जिस सीट से पहली बार संसद पहुंचे वहीं से हारे वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी को तीसरे लोकसभा चुनाव में यूपी के बलरामपुर सीट से कांग्रेस की सुभद्रा जोशी ने हराया था। 1957 में जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले वाजपेयी को इस सीट ने उभरता हुआ राजनेता बनाया था। संसद में उनके भाषणों से नेहरू इतने प्रभावित हुए कि कह डाला यह लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।
कुछ और रोचक तथ्य
- इस चुनाव में सिर्फ 485 सीटों के परिणाम घोषित हुए थे। नौ सीटों में से यूपी की दो सीटों पर फिर से काउंटिंग हुई और मणिपुर की दो सीटों पर बाद में चुनाव हुए थे। बर्फवारी से हिमाचल की चार और पंजाब की एक सीट के लिए अप्रैल में चुनाव हुए। ये पांचों कांग्रेस की झोली में गई।
- चुनाव के बाद ही अक्टूबर से नवंबर 1962 के बीच भारत और चीन का युद्ध हुआ था। तीसरे लोकसभा चुनाव की जीत के दो साल बाद 27 मई 1964 को नेहरू का देहांत हो गया था। उनकी जगह लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। 19 महीने के बाद 1966 में शास्त्री का भी देहांत हो गया। गुलजारी लाल नंदा अंतरिम प्रधानमंत्री बने। 1966 में इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।