राजनीतिक भाषणों पर नजर रखने वाला सेंसर बोर्ड नहीं हो : हेमंत
भाजपा नेता की राय है कि नेताओं को अपनी मन की बात कहने की अनुमति होनी चाहिए क्योंकि इससे मतदाताओं को उन्हें जानने में मदद मिलेगी।
गुवाहाटी, प्रेट्र । असम के मंत्री हेमंत बिश्व सरमा का मानना है कि चुनाव के दौरान राजनेता क्या बोलते हैं इसे लेकर हायतौबा नहीं मचाई जानी चाहिए, न ही उनके बयानों पर नजर रखने के लिए कोई 'सेंसर बोर्ड' होना चाहिए। इसका फैसला मतदाताओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए। निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में योगी आदित्यनाथ, मायावती, मेनका गांधी, नवजोत सिंह सिद्धू, आजम खान जैसे नेताओं के प्रचार पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाए जाने के बीच उनकी यह टिप्पणी आई है।
भाजपा नेता की राय है कि नेताओं को अपनी मन की बात कहने की अनुमति होनी चाहिए क्योंकि इससे मतदाताओं को उन्हें जानने में मदद मिलेगी। उन्होंने दलील दी कि भाषणों के दौरान बहुत ज्यादा नियंत्रण से भारतीय चुनाव अपना 'आकर्षण' खो देंगे।
सरमा ने कहा, 'लोगों (राजनेताओं) को बोलने की इजाजत मिलनी चाहिए ताकि जनता उन्हें परख सके। अगर आप यह फैसला करने लगेंगे कि इस व्यक्ति को यह कहना चाहिए तो हर भाषण से पहले उसे वकील से यह पूछना पड़ेगा कि उसे यह पंक्ति कहनी है या नहीं या इसपर कोई दंडात्मक प्रावधान तो लागू नहीं होगा।'
इन चुनावों में एक भी भड़काऊ बयान नहीं देने का दावा करते हुए पूर्व कांग्रेसी नेता ने कहा कि लोकतंत्र में सबसे अच्छी चीज किसी को अपने दिल की बात कहने की इजाजत देना है। राजग के क्षेत्रीय मंच पूर्वोत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) के संयोजक ने कहा, 'मुझे खुलकर लोगों से बात करनी चाहिए। मेरे दो चेहरे नहीं हो सकते। मान लीजिए किसी खास मुद्दे को लेकर मेरा नजरिया अतिवादी है। मुझे बोलने की अनुमति मिलनी चाहिए जिससे मतदाता मेरे बारे में फैसला कर सकते हैं।'
उन्होंने कहा, 'कुल मिलाकर मेरा पक्ष यह है कि क्या एक सेंसर बोर्ड यह देखने के लिए होना चाहिए कि कोई जननेता सार्वजनिक मंच से क्या बोलता है? अगर ऐसा होता है, तो हर कोई अभिनय करना शुरू कर देगा। तब लोग यह नहीं जान पाएंगे कि वह (नेता) वास्तव में कैसा है?'