छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण के चुनाव में गायब हो गए जमीनी मुद्दे
कई गांवों में भूमि अधिग्रहण के विरोध में महीनों तक आंदोलन चला लेकिन लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा नहीं बन पाया।
रायपुर [राज्य ब्यूरो]। छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण के चुनाव में जमीनी मुद्दे गायब हो गए हैं। पूरा चुनाव मोदी के समर्थन या विरोध पर आकर ठहर गया है। उत्तरी छत्तीसगढ़ में बिजली कंपनियों और कोल ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण का पूरे पांच साल तक व्यापक विरोध हुआ। कई गांवों में भूमि अधिग्रहण के विरोध में महीनों तक आंदोलन चला, लेकिन लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा नहीं बन पाया।
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं कि चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव मुद्दों पर आधारित थे, इसका फायदा भी कांग्रेस को मिला। लेकिन अब तो पुलवामा, पाकिस्तान यही सब चल रहा है। न वनाधिकार की बात हो रही है न पेसा कानून के उल्लंघन की।
स्थानीय मुद्दों को नेता नहीं देते तरजीह
शुक्ला कहते हैं कि यह इसलिए है क्योंकि केंद्रीय चुनाव में स्थानीय मुद्दों को नेता खुद तरजीह नहीं देते। भाजपा राष्ट्रवाद को उभार रही है तो कांग्रेस न्याय और अपनी अन्य घोषणाओं पर फोकस कर रही है। स्थानीय लोगों की समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं है।
गांव-गांव में चली जमीन बचाने की लड़ाई
रायगढ़, सरगुजा, जांजगीर चांपा, कोरबा आदि जिलों में जमीन बचाने की लड़ाई लगातार चलती रही। रायगढ़ के तमनार, घरघोड़ा विकासखंडों में जिंदल, बाल्को, मोनेट, सीएनआर एनर्जी के खिलाफ ग्रामीण लामबंद रहे लेकिन सरकार ने उनकी सुनवाई नहीं की। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया और इस इलाके में प्रचंड जीत दर्ज की।
कोल ब्लॉक का मुद्दा सुर्खियों में रहा
सरगुजा के उदयपुर में परसा केते कोल ब्लॉक का मुद्दा सुर्खियों में रहा। यहां अडानी के खिलाफ संघर्ष छिड़ा रहा। सूरजपुर के जगन्नाथपुर, प्रेमनगर, जांजगीर चांपा के साराडीह, बलौदा आदि विकासखंडों में गांव-गांव में आंदोलन चला। बिजली कंपनियों के लिए किए जा रहे जबरन भूमि अधिग्रहण ने लोगों को आंदोलित रखा। अब यह मुद्दा शांत है।
वनाधिकार पर नहीं हो रही बात
आदिवासी इलाकों में वनाधिकार और पेसा कानून को लेकर लोगों का विरोध हमेशा सुनाई देता है लेकिन अब चुनाव के दौरान इसकी भी चर्चा नहीं हो रही है। सरगुजा में कोयला खदानों के लिए वनाधिकार पट्टे निरस्त किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने जंगल से आदिवासियों की बेदखली का फरमान सुनाया तो ऐन चुनाव के पहले जमकर विरोध हुआ। बाद में कोर्ट ने अपने आदेश पर स्टे दे दिया और मामला ठंडा पड़ गया। चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हो रही है।
हाथियों का आतंक बनता था मुद्दा
पत्थलगड़ी आंदोलन और हाथी की समस्या गायब लोकसभा चुनाव में पत्थलगड़ी की भी चर्चा नदारद है जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान जशपुर के इलाके में यह बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था। सरगुजा, रायगढ़, जशपुर इलाके में हाथियों के आतंक का मुद्दा भी बनता रहा है पर इस बार इस पर भी खामोशी है। पत्थलगड़ी तो आदिवासियों को मिले संवैधानिक अधिकारों पर आधारित मुद्दा रहा। पेसा कानून, ग्राम सभाओं को मिले अधिकार पर कोई बात नहीं हो रही है तो पत्थलगड़ी का मुद्दा वैसे भी बेमानी हो गया है। जिन गांवों में पत्थलगड़ी से तनाव था वहां अब चुनाव की रौनक है।