Move to Jagran APP

'प्रियंका इसी तरह मेहनत करें तो 2024 के चुनाव में यूपी में दिखाई देगी कांग्रेस की उपस्थिति'

गाजीपुर से भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा - विपक्ष को राष्ट्रवाद से परहेज क्यों देश की सीमाएं सुरक्षित रहेंगी तभी विकास होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 09:21 AM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 02:34 PM (IST)
'प्रियंका इसी तरह मेहनत करें तो 2024 के चुनाव में यूपी में दिखाई देगी कांग्रेस की उपस्थिति'
'प्रियंका इसी तरह मेहनत करें तो 2024 के चुनाव में यूपी में दिखाई देगी कांग्रेस की उपस्थिति'

उत्तर प्रदेश [जागरण स्पेशल]। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चुनाव शुरू होकर अब पूर्वी उत्तर प्रदेश पहुंच गया है, जहां मौसम का मिजाज भी 40 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर पहुंच गया है। इसी तपती दुपहरी में माथे पर गमछा लपेटे आधे बांह वाला कुर्ता व खादी की धोती में गाजीपुर से भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा गांव-गांव जनसंवाद रैली कर रहे हैं। जखनियां ब्लॉक के परसपुर गांव स्थित लोकल बाजार में आयोजित जनसंवाद रैली में भाषण के दौरान बीच-बीच में लोगों की सुन भी रहे थे और अपनी सुना रहे थे। इसके बाद गोडिहरा, घटारो, हथियाराम और आखिर में रात साढ़े नौ बजे लक्ष्मणपुर की रैली खत्म कर गाजीपुर की ओर निकले। जनता से संवाद का मूलमंत्र है विकास। यह बताते वह थकते नहीं कि पूर्वांचल किस तरह बदला है। फिर रुककर पूछते भी हैं कि लोग क्या कहना चाहते हैं। इस लंबी दौड़ के बीच ही दैनिक जागरण के डिप्टी ब्यूरोचीफ सुरेंद्र प्रसाद सिंह से लंबी गुफ्तगू होती है। प्रस्तुत हैं इस साक्षात्कार के प्रमुख अंश:

loksabha election banner

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के चुनावी गठबंधन को आपकी पार्टी किस तरह की चुनौती मान रही है? पूर्वांचल पर इसका क्या असर पड़ रहा है?
-यह सही है कि पूर्वांचल की राजनीति भटकाव की शिकार रही है। विशेष रूप से कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि जातीय समीकरणों व गणित के आधार पर चुनाव के नतीजों को बदला जा सकता है। लेकिन पूर्वांचल और विशेष रूप से गाजीपुर को मैं टेस्ट केस मानता हूं। जो मैं महसूस कर रहा हूं कि बाहुबल को बाहर करने का संकल्प यहां के लोगों ने लिया है। भय और जाति की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की राजनीति को लोग आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। यही नहीं, लोग दलीय दीवारों को भी तोड़कर आगे आ रहे हैं। हर समाज और वर्ग के लोग आगे आ रहे हैं।

प्रदेश का सबसे पिछड़ा क्षेत्र होने के बावजूद पूर्वांचल के बजाय बुंदेलखंड के पिछड़ेपन की चर्चा ज्यादा होती है। ऐसा नहीं लगता कि पूर्वांचल की आवाज उठाने वाले कमजोर हैं?
-पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन की बात अनेक बार उठी है। 2014 में मोदी जी की सरकार बनने के बाद मैं मानता हूं कि पूर्वांचल भारत सरकार की उच्च प्राथमिकताओं में आ गया है। पहले की सरकारें पूर्वी उत्तर प्रदेश की उपेक्षा करती थीं। आज मैं कह सकता हूं कि गैस पाइप लाइन असम से पूर्वी उत्तर प्रदेश आ रही है। इसके कारण पूर्वांचल के औद्योगिक विकास की संभावनाओं को बल मिला है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बुनियादी ढांचे की बात करें तो रेलवे, हाईवे और यहां के हर जिलों में चार व छह लेन की सड़कें दिखाई दे रही हैं। यहां के सभी रेल खंडों पर दोहरीकरण का काम तेजी से चल रहा है। इधर के सभी रेलवे स्टेशनों को उन्नत बनाने के काम में तेजी लाई गई है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से पूर्वांचल बहुत पिछड़ा है। लोगों की गरीबी की क्या यह एक बड़ी वजह नहीं है।
-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सान संस्थान (एम्स) गोरखपुर समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों का उन्नत इलाज कर रहा है। पूर्वांचल के दूसरे छोर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय का चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और उसका अस्पताल दिल्ली जैसे एम्स में तब्दील हो रहा है। बनारस में कैंसर के दो-दो संस्थान बन गये हैं। राजेंद्र नेत्र चिकित्सालय की तर्ज पर बनारस में भी उसी स्तर का एक अस्पताल बन रहा है। गाजीपुर और मिर्जापुर में मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं। आधारभूत चिकित्सा संरचना के क्षेत्र में सरकार ने बड़ी पहल की है। इसे और आगे बढ़ाया जाएगा। मैं मानता हूं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश अपने दुर्भाग्य पर नहीं बल्कि होने वाले विकास पर अग्रसर है और उस पर खुशी जाहिर कर रहा है।

पूर्वांचल में रोजी रोजगार के सृजन की क्या संभावनाएं हैं?
-देखिए, पूर्वांचल में औद्योगिक विकास का खाका सरकार के पास है, जिस दिशा में वह बढ़ भी चुका है। इसके पहले मैंने बताया भी है कि यहां असम से लेकर पूर्वांचल तक गैस पाइप लाइन बिछाई जा रही है। इससे अपार उद्योग धंधों के विकास की संभावनाएं बढ़ेंगी। इससे रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए गाजीपुर में कंटेनर कारपोरेशन ने गाजीपुर घाट स्टेशन पर एक पेरेसिबल कार्गो सेंटर बनाया है। इसकी वजह से गाजीपुर की मिर्च और मटर दुबई जाकर बिक रही है। बनारस के राजा तालाब में भी इसी तरह का सेंटर बना है। भारतीय रेल के कई पीएसयू हैं, जिन्होंने निवेश किये हैं। जैसे डेमू व मेमू का वर्कशाप गाजीपुर में बना है।

गाजीपुर के विकास को लेकर आपकी कार्य योजना क्या है?
-यहां सरकारी निवेश आना शुरू हुआ है। बिजली आपूर्ति सुधर गई है। कानून व्यवस्था का राज चलने लगा है। इसके बाद तो फिर निजी क्षेत्र का भी निवेश आएगा। विकास का एक ट्वीन सिटी माडल है। जैसे दिल्ली नोएडा, मुंबई-ठाणे, हैदराबाद-सिकंदराबाद। मुझे लगता है कि इसी तर्ज पर मोदी जी की सरकार में बनारस-गाजीपुर का विकास होगा।

गाजीपुर में जातीय गठजोड़ के तिलिस्म को तोड़ने के लिए आपकी क्या रणनीति है?
-जातिवाद, संप्रदायवाद और परिवाद को विकास की राजनीति से ही तोड़ा जा सकता है। वही काम हम लोग कर रहे हैं। इस तिलिस्म को हम तोड़ेंगे। जातिवाद व संप्रदायवाद पर विकासवाद भारी पड़ेगा। जनसंवाद रैली के माध्यम से हम हर गांव तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। इस दौरान अपनी बात कहता हूं और उनकी बात सुनता हूं। पांच साल के कामकाज के आधार पर लोगों के बीच जा रहा हूं, जिसमें लोगों की रुचि भी है।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को उतारा है, पूर्वी यूपी की प्रभारी भी हैं। लोकसभा चुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
-दिल्ली व मीडिया के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा कुछ हो सकती हैं। पूर्वांचल की जनता उनको ज्यादा महत्व नहीं दे रही है। हां, मैं कहूंगा कि इसी तरह मेहनत करती रहीं तो 2024 के चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की उपस्थिति दिखाई पड़ेगी।

लोकसभा के चुनावी शोर में राष्ट्रवाद और मोदी के आगे स्थानीय मुद्दे गौण नहीं रहे हैं?
-राष्ट्रवाद हमारी प्रतिबद्धता का प्रश्न रहा है। विकास के मुद्दे को हम ज्यादा तरजीह देते हैं। विकास तो तब होगा न, जब हम सुरक्षित महसूस करेंगे। देश की सीमाएं सुरक्षित होंगी तभी कुछ संभव है। विपक्ष को इस राष्ट्रवाद से परहेज आखिर क्यों है?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.