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अतीत के आईने से: चौथा लोकसभा चुनाव दरार और विभाजन

1962 की तुलना में कांग्रेस को 70 सीटें कम मिलीं और पहली बार वह 300 के भीतर सिमट गई। कांग्रेस के दो बड़े नेता नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 10:04 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 10:04 AM (IST)
अतीत के आईने से: चौथा लोकसभा चुनाव दरार और विभाजन
अतीत के आईने से: चौथा लोकसभा चुनाव दरार और विभाजन

नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। चौथी लोकसभा के चुनाव में आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस के ग्राफ में तेज गिरावट दर्ज की गई। 1962 की तुलना में कांग्रेस को 70 सीटें कम मिलीं और पहली बार वह 300 के भीतर सिमट गई। कांग्रेस के दो बड़े नेता नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई थी। कांग्रेस के भीतर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उपप्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के बीच वर्चस्व को लेकर संघर्ष चल रहा था। एक साल पहले नेतृत्व के लिए हुए संघर्ष में सत्ता की बागडोर इंदिरा गांधी को मिली थी। इन सबका नतीजा चुनाव के बाद पार्टी के विभाजन के रूप में देखने को मिला। पेश है लोकसभा चुनाव की चौथी किस्त:

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चुनाव की तारीख

17 फरवरी, 1967 से 21 फरवरी, 1967 के बीच संपन्न हुए चुनाव।

ग्राफ में गिरावट

कांग्रेस की लोकप्रियता घटने लगी थी। पहले के तीन आम चुनावों में मिले प्रचंड बहुमत के मुकाबले इस चुनाव में पार्टी को 40.78 फीसद मत के साथ 283 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को तीसरे लोकसभा चुनाव के मुकाबले 78 सीटें कम मिली थीं। सिर्फ इतना नहीं उस साल छह राज्यों में हुए चुनावों में भी पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। यह पहली बार था जब कांग्रेस को 300 से कम सीटें मिलीं।

बंटवारा

इस चुनाव में कांग्रेस को मिले साधारण बहुमत से इंदिरा गांधी परेशान हो गईं। उन्होंने हठधर्मिता का परिचय देते हुए पार्टी की भावना के विपरीत कई फैसले लिए। इसमें कांग्रेस के भीतर चल रहा आंतरिक घमासान सतह पर आ गया। नवंबर, 1969 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया गया। इसके चलते कांग्रेस में विभाजन हो गया। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस (ओ) और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस (आर) पार्टियों का गठन हुआ। इंदिरा कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग से अल्पमत सरकार चलाती रहीं और 1971 में समय से एक साल पहले ही नए चुनावों की घोषणा हो गई।

अन्य पार्टियों का प्रदर्शन

सी राजगोपलाचारी की स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ का प्रदर्शन बेहतर रहा। उन्होंने क्रमश: 44 और 35 सीटें जीतीं। स्वतंत्र पार्टी एक मात्र सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। वामपंथियों और समाजवादियों ने 83 सीटें जीतीं। क्षेत्रीय दलों द्रमुक और अकाली दल ने 28 सीटों पर कब्जा जमाया। सोशलिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद बनीं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को 23 सीटें मिलीं।

इंदिरा की टूटी नाक

चौथे लोकसभा के लिए इंदिरा धुआंधार प्रचार कर रही थीं। भुवनेश्वर की एक रैली में भीड़ की तरफ से मारे गए पत्थर से इंदिरा की नाक की हड्डी टूट गई थी।

पहली बार कई दिग्गज पहुंचे लोकसभा

  • 1967 चुनाव जीतकर कई दिग्गज नेता पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। इंदिरा गांधी, जॉर्ज फर्नांडीस, रवि राय, नीलम संजीव रेड्डी, युवा तुर्क रामधन आदि इसी श्रेणी में शामिल थे। इंदिरा गांधी रायबरेली से जीतीं। जहां से पहले उनके पति फिरोज गांधी जीतते थे। 
  • प्रखर समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया 1963 में फर्रुखाबाद से उपचुनाव जीते थे। लेकिन 1967 में ही पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंचे। जनसंघ के बलराज मधोक दक्षिण दिल्ली से चुनाव जीते।

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