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Lok Sabha Elections 2019 : फूलपुर में पहला आम चुनाव था विकास बनाम राष्ट्रवाद का

पुरानी चुनाव गाथा पर नजर डाला जाए तो गुलामी के बाद 1952 का पहला आम चुनाव विकास बनाम राष्‍ट्रवाद का था। एक ओर पंडित जवाहरलाल नेहरू थे तो दूसरी ओर संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी मैदान में थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 06:39 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 10:48 AM (IST)
Lok Sabha Elections 2019 : फूलपुर में पहला आम चुनाव था विकास बनाम राष्ट्रवाद का
Lok Sabha Elections 2019 : फूलपुर में पहला आम चुनाव था विकास बनाम राष्ट्रवाद का

शरद द्विवेदी, प्रयागराज : अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से मुक्त होने पर 1952 में हुए प्रथम लोकसभा चुनाव की लड़ाई काफी दिलचस्प थी। यह चुनाव विकास बनाम राष्ट्रवाद पर आधारित था। इसमें एक ओर जवाहरलाल नेहरू तो दूसरी ओर संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी मैदान में थे।

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...तब फूलपुर व इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र एक ही था

तब फूलपुर व इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र एक था, उसमें एक सामान्य तथा दूसरे अनुसूचित जाति के नेता एक साथ चुनाव लड़ते थे। कांग्रेस ने यहां से जवाहर लाल नेहरू व मसुरियादीन को प्रत्याशी बनाया था। जबकि दूसरी ओर प्रभुदत्त ब्रह्मचारी निर्दलीय प्रत्याशी थे, जिन्हें विपक्ष का समर्थन हासिल था। नेहरू विकास के नाम पर जनता से वोट मांग रहे थे, जबकि प्रभुदत्त गंगा की निर्मलता, गोहत्या बंद कराने, धर्मांतरण रोकने एवं संस्कृत, वेद-पुराणों के संरक्षण एवं किसानों से लगान न वसूलने के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे थे।

एकतरफा माना जा रहा था चुनाव

देश को आजादी दिलाने में जवाहरलाल नेहरू की भूमिका अहम होने से चुनाव एकतरफा माना जा रहा था। यही कारण है कि नेहरू अपने संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने कम ही आए। उनकी जगह सरदार वल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री जैसे कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रचार का जिम्मा संभाला था। वह लोगों को रोजगार, बिजली, पानी व सड़क की सुविधा देने के नाम पर वोट मांग रहे थे। जबकि विपक्ष प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के प्रचार का जिम्मा संभाले था। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के आचार्य जीबी कृपलानी, अशोक मेहता, शालिग्राम जायसवाल, भारतीय जनसंघ के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय सरीखे नेता उनका झंडा उठाए थे।

'गाय-गंगा है देश का आधार-उन्हें बचाना हमारा अधिकार' का था नारा

प्रभुदत्त की तरफ से नारा लगता था 'गाय-गंगा है देश का आधार-उन्हें बचाना हमारा अधिकार।' जनता के बीच यह नारा काफी लोकप्रिय हुआ था। लोकतंत्र सेनानी नरेंद्रदेव पांडेय बताते हैं कि देश को आजादी मिलने के बाद कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा माहौल था। फिर भी प्रभुदत्त ने उन्हें टक्कर देने में कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे, उसका जनता पर व्यापक असर पड़ा था। वह चुनाव तो नहीं जीते लेकिन जनता में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ी थी।

तांगा व बैलगाड़ी से हुआ प्रचार

प्रथम लोकसभा चुनाव में संसाधन का अभाव था। जवाहरलाल नेहरू को छोड़कर किसी के पास चार पहिया वाहन नहीं था। अधिकतर नेता तांगा व बैलगाड़ी में बैठकर प्रचार करने एक से दूसरे क्षेत्र जाते थे। समर्थक पैदल प्रचार करते थे। दरअसल तब साइकिल भी चुनिंदा लोगों के पास होती थी।

दो बैलों की जोड़ी था कांग्रेस का चिह्न, नाव था प्रभुदत्त का

प्रथम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी था। जवाहरलाल नेहरू व मसुरियादीन इसी चुनाव निशान पर लोगों से वोट मांग रहे थे, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का चुनाव चिह्न नाव था।


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