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Loksabha Election 2019 : आजमगढ़ : किसके सिर सजेगी पूर्वांचल की पगड़ी

अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सीट पर चुनाव लड़ रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर इस बार यह पगड़ी संभालने की जिम्मेदारी है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 05:59 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 01:57 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : आजमगढ़ : किसके सिर सजेगी पूर्वांचल की पगड़ी
Loksabha Election 2019 : आजमगढ़ : किसके सिर सजेगी पूर्वांचल की पगड़ी

आजमगढ़ [हरिशंकर मिश्र]। कविवर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' और शब्दों के चितेरे राहुल सांकृत्यायन की धरती आजमगढ़ पर आज जातियों की पुकार है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह सीट पूर्वांचल में यादवों की पगड़ी मानी जाती है। अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सीट पर चुनाव लड़ रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर इस बार यह पगड़ी संभालने की जिम्मेदारी है, जिन्हें भाजपा प्रत्याशी और भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' अपने स्टारडम और राष्ट्रवाद के अस्त्र से घेरने की कोशिशों में जुटे हुए हैैं।

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रैलियां न हों तो शायद आजमगढ़ में चुनावी सन्नाटा भी न टूटे। महज तीन रैलियों ने यहां राजनीति की गरमी बढ़ी दी है। अखिलेश और मायावती की संयुक्त रैली ने जातीय गठजोड़ की कड़ियां मजबूत की है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ मुहिम के जरिये राष्ट्रवाद का परचम लहराया है। फिर भी यादवों के इस किले की दरारें खोज पाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। बस अड्डे के समीप एक होटल के कर्मचारी नंदलाल गुप्त दावा करते हैैं कि इस बार निरहुआ चमत्कार करेगा। लेकिन, उनकी बात को उन्हीं के साथी सोनू यादव काट देते हैैं-'बस यह देखिएगा कि भैया की जीत का अंतर कितना होगा।' भैया माने अखिलेश यादव।

यादवों के गढ़ में चुनावी समीकरण बिल्कुल भी उलझे नहीं दिखते। हर व्यक्ति साफ बातें करता है और अपने तर्कों के साथ। सदर विधानसभा क्षेत्र के मुख्य बाजार आसिफगंज में एक प्याऊ पर बैठे भाजपा समर्थक तरुण कुमार वर्मा कहते हैैं कि मोदी का जोर तो है, लेकिन...। इस 'लेकिन' के मायने कपड़ा व्यवसायी परितोष रूंगटा बताते हैैं-'यादवों का वोट तो अखिलेश को जाएगा ही, दलितों के वोट भी ट्रांसफर हो रहे हैैं। भले ही पूरे न हों, लेकिन होंगे जरूर। मुस्लिम किधर जाएगा, यह तय ही है। हां, भाजपा किसी स्थानीय नेता को मौका देती तो बेहतर रहता।' हालांकि मिठाई व्यवसायी चंद्र प्रकाश शर्मा कहते हैैं-'निरहुआ को कौन देख रहा है? चुनाव तो मोदी के नाम पर है।' सर्राफा व्यवसायी अशोक कुमार अग्रवाल और उनके बेटे आशीष भी इस बात का समर्थन करते हैैं।

आजमगढ़ में लहरों का असर नहीं होता। यही वजह है कि पिछली बार 2014 की मोदी लहर में भी यहां मुलायम सिंह यादव 63 हजार मतों से जीत गए थे। इस बार भी भाजपा के लिए राह आसान नहीं दिखती। संसदीय क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ और मेहनगर में तीन पर सपा काबिज है और दो पर बसपा। सठियांव चौराहे पर पेड़ के नीचे बैठे राम प्रवेश यादव चुनाव की चर्चा छेड़ते ही सपा के झंडेवाला गमझा आगे कर देते हैैं-'आप समझ जाइए।' वहीं खड़े दो भाई अजय और विजय तर्क देते हैैं-'सिर्फ मुसलमान और यादव ही जीत के लिए पर्याप्त हैैं। फिर अबकी बार तो दलितों का साथ भी है।' 

आजमगढ़ के चुनावी इतिहास में यादवों की जीत की लंबी श्रृंखला है। या तो वे जीते नहीं तो कोई मुस्लिम प्रत्याशी को जीत मिली। चौधरी चरण सिंह इस क्षेत्र को अपना दूसरा घर बताते थे। उनके बेटे अजित तो यह घर नहीं संजो सके, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने इसे अपना घर जरूर बना लिया। भाजपा यहां अब तक सिर्फ एक बार 2009 में जीत सकी है और इस विजय का सेहरा भी प्रत्याशी रमाकांत यादव के ही सिर पर बंधा था। बसपा ने अलबत्ता चार बार सपा के इस घर में सेंध मारी। क्षेत्र में मुस्लिम मत निर्णायक साबित होते रहे हैैं, लेकिन यह वर्ग पिछड़ेपन से उबर नहीं सका।

शिक्षा का एक बड़ा केंद्र रहे शिबली एकेडमी में प्राचार्य गयास अहमद हसन अफसोस के साथ कहते हैैं-'यहां तक कि मुस्लिमों ने भी यहां के लिए कुछ नहीं किया। बाहर जाकर बहुत पैसे कमाए तो कोई मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोल दी या फिर मदरसे बना दिए।' वहीं पर एस माजिद कहते हैैं-'शिबली को विश्वविद्यालय बनाने के वादे किए गए थे। आज यह वादा चुनावी फिजां में नहीं है।'

पिछले दो दशकों में आतंकवाद की नर्सरी के रूप में पहचान बनाने वाले आजमगढ़ में भाजपा इसी को मुद्दा बना रही है लेकिन मुस्लिम बहुल मुबारकपुर में इसका कोई असर नहीं दिखता। यहां लोगों के साथ सत्तू की लस्सी पी रहे इश्तियाक दावा करते हैैं-'सिर्फ इसी विधानसभा क्षेत्र के डेढ़ लाख वोटर फैसला कर देंगे।' मुबारकपुर किसी शहर जैसा ही है और आलीशान भवनों के मामले में आजमगढ़ को भी पीछे छोड़ता दिखता है। यहां बड़े क्षेत्रफल में स्थापित अल जमायतुल अशरफिया विश्वविद्यालय में देश-विदेश के हजारों छात्र पढ़ने आते हैैं। लेकिन, चुनाव यहां भी मजहबी आधार पर ही होना है। तीन तलाक का मुद्दा असर नहीं करेगा, जवाब में युवा इसरार 'हुंह' जैसा कोई शब्द निकालते हैैं। इस क्षेत्र में अबू सलेम का प्रभाव भी माना जाता है। फलों का एक व्यापारी बताता है कि सलेम का भाई अबु जैश तो यहां प्रचार भी कर रहा है।

सगड़ी विधानसभा क्षेत्र में बेरमा गांव में दलितों का एक समूह केंद्रीय योजनाओं का जिक्र छिड़ने पर मोदी का गुणगान शुरू कर देता है। इस गांव के 75 फीसद घरों में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन पहुंचे हैैं। फिर भी राम प्यारे और लफंदर साफ कहते हैैं-'हम लोग तो गठबंधन को वोट करने जा रहे हैैं।' चुनाव ने इस गांव के सामाजिक समीकरणों को फिलहाल बदल दिया है। दलितों के साथ ही यादवों के घर भी बराबर की संख्या में हैैं और दोनों ही हाथ मिलाकर मतदान के लिए तैयार हैैं।

जिले की सबसे बड़ी ग्राम सभा कही जाने वाली अमिलो अब नगर पंचायत क्षेत्र में शामिल है। यहां अपनी पकौड़ी-चाय की दुकान पर बैठे पारसनाथ गुप्ता यह तो कहते हैैं वह भाजपा को वोट देंगे लेकिन यह भी मानते हैैं कि सात मौजों के इस गांव में गठबंधन हावी है। जाहिर है कि सपा-बसपा ने यहां दोस्ती की मजबूत जाजिम बिछाई है। भाजपा के लिए इसे खींचना आसान नहीं। लेकिन निरहुआ के गाने गुनगुनाते विकास कहते हैैं-'मोदी का नाम कुछ भी कर सकता है।'

संसदीय क्षेत्र के अब तक के सांसद

1952 सीताराम अस्थाना (कांग्रेस)

1957 कालिका सिंह (कांग्रेस)

1962 राम हरख यादव (पीएसपी)

1967 चंद्रजीत यादव (कांग्रेस)

1971 चंद्रजीत यादव (कांग्रेस)

1977 रामनरेश यादव (जनता पार्टी)

1978 मोहसिना किदवई (कांग्रेस-उपचुनाव)

1980 चंद्रजीत यादव (जेएनपी एस)

1984 संतोष सिंह (कांग्रेस)

1989 रामकृष्ण यादव (बसपा)

1991 चंद्रजीत यादव (जनता दल)

1996 रमाकांत यादव (सपा)

1998 अकबर अहमद डंपी (बसपा)

1999 रमाकांत यादव (सपा)

2004 रमाकांत यादव (बसपा)

2008 अकबर अहमद डंपी (बसपा-उपचुनाव)

2009 रमाकांत यादव (भाजपा)

2014 मुलायम सिंह यादव (सपा)

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