अतीत के आईने से: 15वां लोकसभा चुनाव और मनमोहन सिंह की दूसरी सियासी पारी
15वें लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में लालकृष्ण अडवाणी प्रधानमंत्री पद का चेहरा थे। चुनाव परिणाम बाद अडवाणी पीएम इन वेटिंग रह गए। मनमोहन सिंह ने दूसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ली।
नई दिल्ली, जेएनएन। यूपीए-एक सरकार के पांच साल पूरे करने के बाद 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव के लिए चुनाव आहूत हुए। 71 करोड़ से अधिक मतदाताओं के साथ यह उस समय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था। मतदाताओं की कुल संख्या यूरोपीय संघ और अमेरिकी मतदाताओं की संयुक्त संख्या से अधिक थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए-दो को विजयश्री हासिल हुई। 1962 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद मनमोहन सिंह देश के दूसरे पीएम बने जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से देश की कमान संभाली।
पांच चरणों में चुनाव
चरण सीटें तिथि
पहला 124 16 अप्रैल
दूसरा 141 22-23 अप्रैल
तीसरा 107 30 अप्रैल
चौथा 85 7 मई
पांचवां 86 13 मई
71.7 करोड़ मतदाता , 59.7%वोट पड़े
8070 कुल उम्मीदवार, 84.6% जमानत जब्त
14.86 प्रति लोकसभा क्षेत्र उम्मीदवारों का औसत
किसको कितनी सीटें
पार्टी सीटें मत %
कांग्रेस 206 27
भाजपा 116 22
सपा 23 4
बसपा 21 5
जदयू 20 2
तृणमूल 19 3
सीपीएम 16 6
अन्य 122 31
परिसीमन बाद चुनाव:
2001 की जनगणना के मुताबिक हुई लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव था। 543 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में से 499 सीटों का नया परिसीमन हुआ।
गठबंधन:
चुनाव पूर्व तीन गठबंधन सामने आए। यूपीए और एनडीए ने चुनावी अभियान के दौरान अपने-अपने प्रधानमंत्रियों का नाम सामने किया जबकि तीसरा मोर्चा लगातार यही कहता रहा कि चुनाव नतीजों के बाद वह अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करेगा।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए):
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मनमोहन सिंह थे। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद उन दलों ने कांग्रेस को समर्थन दिया जो या तो विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे या फिर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को समर्थन देना चाह रहे थे।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए):
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। 1998 के आम चुनावों के बाद इस गठबंधन की नींव पड़ी थी। हालांकि वाजपेयी सरकार बनने के कुछ महीनों बाद ही गिर गई थी। 1999 के चुनाव में फिर लोगों ने इस गठबंधन को सत्ता सौंपी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार ने 1999-2004 तक पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया।
तीसरा मोर्चा:
ऐसी सभी क्षेत्रीय पार्टियां जो न तो राजग का हिस्सा थीं और न ही संप्रग का, इस मोर्चे में शामिल हुई थीं। माकपा इस धड़े का नेतृत्व कर रही थी।
चौथा मोर्चा:
कांग्रेस के साथ सीट समझौता विफल रहने के चलते सपा, राजद और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक नये मोर्चे के गठन की बात कही। चुनाव बाद इस धड़े की उम्मीद किंगमेकर बनने की थी। हालांकि इस मोर्चे की घोषणा के बावजूद इसमें शामिल दलों ने संप्रग को अपना समर्थन जारी रखा।