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चुनावी चौपाल: मर्ज का हो इलाज, किसानों को नहीं चाहिए खैरात

हरिद्वार जिले के रुड़की क्षेत्र के बेलड़ा गांव में आयोजित चुनावी चौपाल के दौरान किसानों ने अपनी समस्याओं को एक-एक कर गिनाना शुरू किया। किसानों ने साफ कहा कि उनको भीख नहीं चाहिए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 04:00 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2019 04:00 PM (IST)
चुनावी चौपाल: मर्ज का हो इलाज, किसानों को नहीं चाहिए खैरात
चुनावी चौपाल: मर्ज का हो इलाज, किसानों को नहीं चाहिए खैरात

रुड़की, जेएनएन। दैनिक जागरण की ओर से आयोजित चुनावी चौपाल के दौरान किसानों का दर्द छलक आया। किसानों ने साफ कहा कि उनको भीख नहीं चाहिए। सरकार छह हजार देने के बजाए 12 हजार रुपये सालाना किसानों से ले लें, लेकिन उनके गन्ने का भुगतान समय से करें और फसलों का सही दाम दिया जाए। 70 साल से इस देश में किसान के नाम पर राजनीति हुए है। खूब वोट बटोरी जा रही है, लेकिन कोई भी सरकार किसानों को लेकर गंभीर नहीं है। देश का किसान तो केवल वोट बैंक बनकर ही रह गया है। 

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शनिवार को हरिद्वार जिले के रुड़की क्षेत्र के बेलड़ा गांव में आयोजित चौपाल के दौरान किसानों ने अपनी समस्याओं को एक-एक कर गिनाना शुरू किया। किसान गुलशन रोड ने कहा कि देश का किसान जिस चीज की मांग कर रहा है वह सरकार नहीं दे रही है। देश के किसान की दो ही मांग हैं। एक तो किसान को फसल का सही दाम मिले और दूसरे समय से फसल का दाम दिया जाए, लेकिन सरकार यह नहीं कर रही है। आय दोगुनी होना तो दूर किसान की लागत तक नहीं निकल रही है। किसान को मुर्ख बनाने के लिए अब छह हजार रुपये का लॉलीपाप थमाया जा रहा है। इससे किसान का कोई भला होने वाला नहीं है।

किसान प्रमोद कुमार ने कहा कि 1952 के चुनाव से ही किसान के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं, लेकिन किसान की हालत जस की तस बनी हुई है। कर्ज लेना किसान का शौक नहीं मजबूरी है। यदि सही दाम मिले और सही समय पर मिले तो सरकार को किसान के बारे में कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है, उल्टे किसान सरकार को ज्यादा कर देंगे, लेकिन सरकार किसी भी समस्या का सीधे समाधान नहीं कर रही है। दो-दो साल से किसान के गन्ने का भुगतान तक नहीं किया गया है। 

चौपाल में किसानों की यह समस्या निकलकर आई सामने 

  • किसान को मिले अपनी फसल का दाम तय करने का हक।
  • बाजार के अन्य उत्पादों की भांति हो किसानों की फसल का भुगतान। 
  • बिचौलिया प्रथा का किया जाए अंत, सीधे उपभोक्ता तक पहुंचे कृषि उत्पाद। 
  • मिलावटी खाद, बीज और कीटनाशक पर तत्काल लगाया जाए अंकुश ।
  • जंगली जानवरों पर लगाया जाए अंकुश ।
  • किसानों को समय से उपलब्ध कराए जाने उन्नत किस्म के बीज ।
  • बुजुर्ग किसानों को सरकार की ओर से दी जाए पांच हजार रुपये प्रति माह की पेंशन ।
  • किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त में मिले बिजली और नहर का पानी ।
  • खेती से पलायन रोकने को सरकार की ओर से उठाए जाए ठोस कदम ।

बोलेे कि‍सान  

  • राजबल सिंह का कहना है कि आज किसान पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन सरकार के लिए किसानों की बात सुनने का समय नहीं है। सरकार केवल उद्योगपतियों की ही बात करती है।
  • साधुराम का कहना है कि खेती अब घाटे का सौदा होती जा रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी किसान खेती का काम करते आ रहे हैं लेकिन अब किसान का बच्चा खेती करना नहीं चाहता है। हालात यह है यदि बच्चा नौकरी पर नहीं है तो उसकी शादी तक नहीं हो पा रही है। 
  • महक सिंह का कहना है कि जिस तरह के हालात है उससे तो सरकार को खेती की जमीन का अधिग्रहण कर लेना चाहिए। किसानों को सरकारी नौकरी दे और खेती कराए, कम से कम किसान आत्महत्या तो नहीं करेगा।
  • अशोक कुमार का कहना है कि कभी धान का मंदा तो गेहूं, कभी गन्ने का पैसा नहीं तो कभी सूखा तो कभी बाढ़ किसान पर तो हर साल आफत हैं लेकिन सरकार किसान की सुध लेने को तैयार नहीं है। 70 साल से किसान को ठगने का काम सरकारों ने किया है। 
  • श्यामलाल का कहना है कि सरकार यदि समय से किसान की फसल का सही दाम और समय पर भुगतान दिलवा दे तो ना तो कोई किसान कर्जा लेगा और ना ही किसी किसान को खैरात देने की जरूरत है। उल्टे किसान ही सरकार को 12 हजार रुपये सालाना दे देंगे ।
  • अरविंद का कहना है कि 1968 के दशक में जो लोग नौकरी करते थे वह छुट्टी लेकर गांव में आते थे और अप्रैल, मई के माह में गेहूं की कटाई करवाते थे। बीएचइएल जैसे संस्थानों की बात थी लेकिन आज हालत दूसरे हैं, किसान को कोई बैठाना भी पंसद नहीं कर रहा है। किसान केवल वोट बैंक बनकर रह गया है।  
  • जितेंद्र का कहना है कि एक समय खेती को उत्तम बाना जाता था लेकिन आत खेती करने वाले को हेय दृष्टि से देखा जा रहा है। कोई भी युवा खेती करना नहीं जाता हैं लेकिन बेरोजगारी इतनी है कि करें को क्या।
  • बनारसी दास का कहना है कि सरकारों की गलत नीतियों से किसान सड़कों पर आ चुका है। गांव का विकास पूरी तरह से अवरुध है, गांव के जो लोग नौकरी या दूसरा व्यवसाय कर रहे हैं, केवल विकास उनका ही हुआ है। 

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