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Lok Sabha Election 2019: शांति के साथ सफल चुनाव कराने में सभी निभाएं अपनी भूमिका

जब तक चुनावी प्रक्रिया में शामिल सभी लोग अपनी भूमिका का निर्वहन जिम्मेदारी पूर्वक नहीं करेंगे हमारे लोकतंत्र को इस तरीके की दीमकें चाटती रहेंगी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 28 Apr 2019 12:39 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2019 12:39 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: शांति के साथ सफल चुनाव कराने में सभी निभाएं अपनी भूमिका
Lok Sabha Election 2019: शांति के साथ सफल चुनाव कराने में सभी निभाएं अपनी भूमिका

देवेंद्र पई। पिछली सदी के आखिरी दशक में विशेष रूप से बिहार के पिछड़े इलाकों में बूथ कैप्चरिंग एक आम घटना होती थी। आपातकाल के बाद भारतीय राजनीति में संभवत: यह सबसे खराब दशक था, जब देश बूथ कैप्र्चंरग के अलावा अस्थिर सरकारों, आया राम गया राम, राजनीति पिछली सदी के अपराधीकरण के दौर से गुजर रहा था। इस कठिन दौर में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने दंतविहीन संस्था को धार दिया जिसे आज चुनाव आयोग के नाम से जाना जाता है।

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उस दिन के बाद से चुनाव आयोग चुनावी फ़ुटबॉल के खेल में वास्तविक रेफरी के रूप में नजर आने लगा। आखिरकार देश की चुनावी प्रक्रिया ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और बाद में वीवीपैट के विचार को स्वीकार किया और आदर्श आचार संहिता और एक सक्रिय चुनाव आयोग के बारे में बेहतर जागरूकता के साथ आधुनिक चुनावी संसाधनों के बीच बूथ कैप्र्चंरग को बीते जमाने की बात समझ ली गई।

2014 में बूथ कैप्चरिंग और राजनीतिक हिंसा के मामले फिर से सामने आए। अंतर सिर्फ इतना था कि इस बार इन खबरों के केंद्र में बिहार नहीं, बल्कि देश का सबसे बुद्धिजीवी माना जाने वाला राज्य पश्चिम बंगाल था। तब से हर गुजरते दिन के साथ बंगाल की स्थिति बिगड़ती जा रही है। पिछले दो वर्षों में जैसे-जैसे भाजपा राज्य में गति पकड़ रही है, वैसे-वैसे सत्तारूढ़ और भाजपा के बीच संघर्ष तेज हो गया है।

इस संघर्ष ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक अपराधों और हत्याओं की एक शृंखला को जन्म दिया है। भाजपा धीरे-धीरे टीएमसी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी कम्युनिस्ट पार्टी की जगह ले रही है। तो बड़ा सवाल यह नहीं है कि यह कब खत्म होगा बल्कि यह कि यह कैसे खत्म होगा? मुझे लगता है कि इसके लिए प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है।

चुनाव आयोग की भूमिका

बिहार और उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल ही ऐसा प्रदेश है जहां इस बार सात चरणों में चुनाव कराए जा रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है जिससे हर चुनाव क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा चुनावी मशीनरी झोंक कर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का मकसद हासिल किया जा सके।

  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की भारी तैनाती की गई है। चुनाव के पहले चरण में पश्चिम बंगाल में 80 फीसद बूथों पर सीएपीएफ का पहरा था। वहीं तीसरे चरण में कुल तैनात बलों के लगभग 92 फीसद सीएपीएफ के जवान तैनात थे। चौथे चरण के मतदान में संख्या 98 फीसद तक जाने की उम्मीद है। 
  • पश्चिम बंगाल में शीर्ष पुलिस अधिकारियों का स्थानांतरण किया गया है। मार्च में अपने पर्यवेक्षकों से प्रतिक्रिया मिलने के बाद चुनाव आयोग ने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए त्वरित और साहसिक कदम उठाये, जो टीएमसी के प्रति पूर्वाग्रही पाए गए थे।

केंद्र सरकार की भूमिका

यदि राज्य सरकार संविधान के अंतर्गत कार्य करने की क्षमता खो देती है तो केंद्र सरकार के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की संवैधानिक शक्ति होती है। राष्ट्रपति शासन के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल के माध्यम से राज्य मशीनरी पर नियंत्रण रखती है। यदि पश्चिम बंगाल में ऐसा होता है तो यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशासन टीएमसी के राजनीतिक प्रभाव से बाहर हो। 2005 में, बिहार के मामले में, राष्ट्रपति शासन राजनीतिक हिंसा और बूथ कैप्चरिंग को रोकने में एक वरदान साबित हुआ, जिसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए।

राजनीतिक दलों की भूमिका

यदि कोई पार्टी राज्य मशीनरी का दुरुपयोग करके अपने राजनीतिक विरोधियों को धमका रही है तो यह सभी राजनीतिक दलों के लिए एक संदेश है कि वह ऐसी फासीवादी सरकार को हराने के लिए एक हो जाएं।

मतदाताओं की भूमिका

मतदाता की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। मतदाता को सक्रिय होना चाहिए। यदि मतदाता मतदाता सूची में स्वयं को पंजीकृत करने में सक्रिय है, नामों को हटाने के लिए जांच करता है, मृत सदस्यों के नामों को हटा रहा है, स्वस्थ राजनीतिक दलों को प्रोत्साहित कर रहा है, अनियमितताओं की शिकायत कर रहा है, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से वोट देने जा रहा है तो वह लोकतंत्र को मजबूत करने का काम कर रहा है।

ऐसे समय में अंतिम विकल्प सिर्फ यही है कि कड़ी मेहनत की जाए और अलोकतांत्रिक ताकतों को पीछे धकेला जाए। राष्ट्रपति शासन के बारे में हमें तब तक इंतजार करना होगा जब तक कि लोकसभा चुनाव खत्म न हो जाए और एक नई सरकार अपना कार्यभार न संभाल ले। जो भी पार्टी कार्यभार संभाले, अन्य दलों को इस फैसले के समर्थन में आना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में अलोकतांत्रिक और फासीवादी ताकतों को हराया जाए। 

  (कोर्स डायरेक्टर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप)


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