Election 2019: राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा के टिकट तय होने के साथ सियासी सरगर्मी हुई तेज
कांग्रेस और भाजपा के टिकट तय होने के साथ ही राजस्थान में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। कांग्रेस और भाजपा मिशन-5 में जुट गई है।जालौर के कांग्रेसियों में गुटबाजी चरम पर है।
जयपुर , जागरण संवाददाता। कांग्रेस और भाजपा के टिकट तय होने के साथ ही राजस्थान में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। कांग्रेस और भाजपा मिशन-5 में जुट गई है। राज्य की जालौर सीट शुरू से कांग्रेस का गढ़ रही है। लेकिन 2009 के परिसीमन में इस सीट के सामान्य होने के बाद से लगातार 2 बार भाजपा के देवीजी पटेल यहां से सांसद बने है।
इस बार फिर भाजपा ने देवजी पटेल को मैदान में उतारा है,हालांकि जिले के नेताओं ने उनको टिकट नहीं दिए जाने की मांग पार्टी के राष्ट्रीय एवं प्रदेश नेतृत्व से की थी। उधर कांग्रेस ने रतन देवासी को प्रत्याशी बनाया है। देवासी करीब तीन माह पूर्व विधानसभा चुनाव हार गए थे। पटेल और देवासी सोमवार को नामांकन पत्र दाखिल करेंगे।
राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास
जालौर लोकसभा सीट शुरू से ही एससी के लिए आरक्षित सीट थी। लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गई। यहां हुए कुल 16 लोकसभा चुनाव में 8 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा, 1 बार स्वतंत्र पार्टी, 1 बार भारतीय लोक दल और 1 बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। देवीजी पटेल इस सीट से लगातार दो बार भाजपा के टिकट पर संसद में पहुंचे,पार्टी ने उन्हे एक बार फिर मैदान में उतारा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह ने पंजाब से आकर जालौर का 4 बार प्रतिनिधित्व किया। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को दलित चेहरे के तौर पर बूटा सिंह के सामने मैदान में उतारा। लेकिन बंगारू लक्ष्मण यह चुनाव हार गए । इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में बंगारू लक्ष्मण की पत्नी सुशीला बंगारू ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर बूटा सिंह को मात दी थी। इस क्षेत्र में पटेल,चौधरी,दलित और रैबारी जाति का खासा प्रभाव है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक जालौर की जनसंख्या 28,65,076 है। इनमें से 19.51 फीसदी दलित और 16.45 एसटी है।
वर्तमान हालात में जालौर संसदीय क्षेत्र में भाजपा कांग्रेस के मुकाबले आगे नजर आती है। मतदाताओं में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति आकर्षण साफ नजर आता है। जालौर के कांग्रेसियों में गुटबाजी चरम पर है,वहीं भाजपाई टिकट तय होने के बाद एकजुट हो गए। टिकट तय होने से पहले तो क्षेत्र के नेता और कार्यकर्ता देवजी पटेल का विरोध कर रहे थे। लेकिन अब केन्द्रीय और प्रदेश नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद नाराज नेता और कार्यकर्ता सक्रिय हो गए।