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Election 2019: पश्चिम मेदिनीपुर व जंगलमहल में चैन लेने नहीं दे रहा माओवाद का भूत

जंगलमहल के राजनीतिक हलकों में माओवाद का भूत दावेदारों को चैन लेने नहीं दे रहा।माओ वादियों को पैकेज और हिंसा पीड़ित परिवारों की बदहाली इस चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बन सकते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 09:32 AM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 12:21 PM (IST)
Election 2019: पश्चिम मेदिनीपुर व जंगलमहल में चैन लेने नहीं दे रहा माओवाद का भूत
Election 2019: पश्चिम मेदिनीपुर व जंगलमहल में चैन लेने नहीं दे रहा माओवाद का भूत

खड़गपुर, तारकेश कुमार ओझा। पश्चिम मेदिनीपुर व झाड़ग्राम जिलांतर्गत जंगलमहल के राजनीतिक हलकों में नेपथ्य में जाने के बावजूद माओवाद का भूत दावेदारों को चैन लेने नहीं दे रहा है। माओवादियों को पैकेज और हिंसा पीड़ित परिवारों की बदहाली इस चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बन सकते हैं। पश्चिम मेदिनीपुर और झाड़ग्राम में ही ऐसे परिवारों की संख्या 100 से अधिक बताई जा रही है।

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झाड़ग्राम जिलांतर्गत बेलपहाड़ी प्रखंड के बांसपहाड़ी पंचायत क्षेत्र की निवासी नियति महतो सुबह फिर अनेक कार्यों से घर से निकलने वाली है, लेकिन वह समझ नहीं पा रही है कि निकलते समय वह अपनी मांग में सिंदूर लगाए या नहीं, क्योंकि माओवाद की त्रासदी के चलते उसकी पहचान खो चुकी है। उसे खुद भी नहीं पता कि वह विधवा है या सुहागिन।

पिछले सात साल से उसके लापता पति की न तो लाश मिली है और न वह घर लौटे हैं। उसके ठेकेदार पति का बैंक खाता है, लेकिन वह उससे रुपये नहीं निकाल सकती। पंचायत के लिए किए गए कार्य की एवज में उसके पति के नाम जारी चेक भी शासकीय दफ्तर में पड़ा है लेकिन उसपर वह दावा नहीं ठोक सकती क्योंकि उसके पति लापता हैं। जंगलमहल में यह दर्द केवल नियति की नहीं, बल्कि दर्जनों महिलाओं की है। जिनके पति या परिवार का कोई सदस्य 2008 से 2011 तक व्याप्त माओवादी आतंक के दौरान लापता हो गए लेकिन आज तक उनका पता नहीं लग पाया।

इस मुद्दे पर शासन व राजनीति भी खामोश है। 2011 के नवंबर में माओवादियों के सफाए के बाद जंगलमहल में काफी कुछ बदला। अच्छा-खासा सरकारी पैकेज पाने के बाद माओवादी मुख्यधारा में शामिल हो गए। उन्हें पुलिस सुरक्षा मिलने लगी। मुआवजा और नौकरी भी मिल गई, लेकिन ऐसे पीड़ित परिवारों की दशा नहीं बदली। झाड़ग्राम के साथ ही पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया में ऐसे परिवारों की संख्या काफी अधिक है। ऐसे परिवारों को मौजूदा सूरत-एहाल टीस देती है।

बनेगा चुनावी हथियार

जंगलमहल के ऐसे पीड़ित परिवारों ने शहीद व लापता परिवार संग्राम कमेटी नाम से संस्था गठित कर संघर्ष शुरू किया है। अपने बैनर तले पीड़ित परिवारों के सदस्यों ने कई बार शासकीय दफ्तरों के सामने विरोध-प्रदर्शन के साथ ही सड़क जाम जैसा आंदोलन भी किया है। माना जा रहा है कि इस चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है, जो जंगलमहल की पांच सीटों पर कारगर साबित होगा। पीड़ित परिवार के सदस्यों की माली हालत को खास तौर से विरोधी जोर-शोर से उठाने की तैयारी में हैं। अभी तक कोई भी राजनीतिक दल प्रत्यक्ष रूप से इनके साथ नहीं आया है लेकिन माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान किसी न किसी बहाने यह मसला हावी जरूर होगा।

चुनाव में पीड़ित परिवारों की समस्याओं पर रहेगा फोकस

पश्चिम बंगाल विधानसभा उपाध्यक्ष सुकुमार हांसदा ने कहा- जंगलमहल में किसी की उपेक्षा नहीं की जा रही। नियमों के तहत हर किसी का ख्याल रखने की कोशिश की जा रही है। चुनावी लाभ के लिए विरोधी यदि उकसाने वाली कार्रवाई करें तो इसमें भला क्या किया जा सकता है।

झाड़ग्राम कांग्रेस कमेटी जिलाध्यक्ष सुब्रत भट्टाचार्य ने कहा- जंगलमहल के लापता व हिंसा पीड़ित परिवारों की समस्या वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। अपनी सीमित शक्ति के तहत हम जरूर इस मुद्दे को प्रचार की रोशनी में लाने का प्रयास करेंगे।


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