Lok sabha Election 2024: वीपी सिंह से अटलजी के समय तक, साल-दो साल से ज्यादा नहीं टिकती थीं सरकारें, पढ़िए कैसा था गठबंधन की राजनीति का दौर?
Lok sabha Election 2024 1989 में जब चुनाव हुए तो किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। नब्बे के दशक में चुनाव होते रहे और बहुमत न मिल पाने के कारण गठबंधन की सरकारों का दौर चलता रहा। वीपी सिंह से लेकर अटलजी तक कई प्रधानमंत्रियों ने सरकारें बनाईं लेकिन ये सरकारें साल-दो साल से ज्यादा नहीं टिकती थीं पढ़िए कैसा था गठबंधन की राजनीति का दौर?
Lok sabha Election 2024: चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। देश में सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं। एक ओर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए, तो दूसरी ओर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों वाली इंडी गठबंधन चुनाव लड़ रही है। बीजेपी पिछले दो कार्यकाल से स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार चला रही है। लेकिन नब्बे के दशक का एक दौर ऐसा भी था, जब किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता था। हैंग पार्लियामेंट हुआ करती थी। बहुमत न मिल पाने के कारण गठबंधन की सरकारें बना करती थीं। जानिए देश में पहली बार कब ऐसा मौका आया, जब सरकार चलाने के लिए गठबंधन बनाना पड़ा था। यह भी जानिए कि कौन, कौन-से गठबंधन ने कब- कब सरकारें बनाईं। कितने गठबंधन बने, उनके क्या नाम थे और किस गठबंधन सरकार में कौन, कौन- से प्रधानमंत्रियों ने शपथ ली।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें मिली थी। चुनाव बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और राजीव गांधी की सरकार के पांच साल पूरा होने के बाद 1989 को आम चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। तब तक यूपी और बिहार में कई क्षेत्रीय नेता राष्ट्रीय फलक पर अपना दमखम दिखाने लगे थे।
जानिए कब बनता है गठबंधन, क्यों पड़ी इसकी जरूरत?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। इसलिए चुनाव होने पर कई बार किसी संपूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता है। खंडित जनादेश की स्थिति में 'गठबंधन' से सरकार बनाना होता है। तब विभिन्न पार्टियां समान विचारधाराओं वाले दलों के साथ मिलकर गठबंधन कर लेती है।
1989 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार, वीपी सिंह बने पीएम
कांग्रेस की हार के बाद जनता दल और दूसरे क्षेत्रीय दलों ने मिलकर राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनाई और प्रधानमंत्री बनाया गया विश्वनाथ प्रताप सिंह को। देवीलाल और चंद्रशेखर जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ बढ़ते मतभेद के कारण सरकार की स्थिति कमजोर होते ही वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू करने की घोषणा कर दी। ठीक इसी समय भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ मंदिर से 25 सितंबर 1990 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर अपनी रथ यात्रा की शुरुआत कर दी। भाजपा ने नारा दिया था- सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे। एक तरफ मंडल और दूसरी तरफ कमंडल की राजनीति ने देश में भूचाल ला दिया था। उस समय 22 अक्टूबर 1990 को लालू प्रसाद यादव ने बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोक दिया और उनको गिरफ्तार कर लिया।आडवाणी को गिरफ्तार करने के साथ ही भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और 23 अक्टूबर 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
1990 में बनी चंद्रशेखर की गठबंधन सरकार
साल 1990 में चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी जनता दल और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई। 10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। कांग्रेस ने इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रखा था, लेकिन ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली। महज तीन महीने बीते थे कि कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस का आरोप था कि सरकार उनके नेता राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है। अल्पमत में आने के बाद चंद्रशेखर को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद नए सिरे से चुनाव हुए। जून 1991 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई। चुनाव के बाद पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राव के शपथ ग्रहण के पहले 21 जून 1991 तक चंद्रशेखर कार्यवाहक पीएम के रूप में काम करते रहे।
1996 में बना संयुक्त मोर्चा
फिर आया साल 1996, 11वीं लोकसभा चुनाव हुआ तो किसी दल को एक बार फिर बहुमत नहीं मिला। मिलीजुली सरकार बनाना इस बार भी चुनौती था। संयुक्त मोर्चा बनाया गया और 16 मई 1996 को अटलजी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनकी उनका सरकार महज 13 दिन ही चल पाई। बहुमत पूरा न कर पाने के कारण अटलजी ने राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप दिया।
1996-98: इस अवधि में तीन प्रधानमंत्री बदल गए
अटलजी के बाद कर्नाटक के किसान नेता एचडी देवेगौड़ा का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए फाइनल हुआ। देवेगौड़ा किसान नेता थे। हालांकि, एक साल के अंदर में ही उनकी सरकार गिर गई। फिर प्रधानमंत्री बने इंद्रकुमार गुजराल। उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंधों को लेकर नई रणनीति बनाई। इसे 'गुजराल डॉक्ट्रिन' कहा गया। गुजराल के इस सिद्धांत को विश्व में सराहना मिली। लेकिन देश में उनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा था। आखिरकार 19 मार्च 1998 को उनकी सरकार गिर गई।
कब अस्तित्व में आया एनडीए
1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुआ। इस समय तक सीताराम केसरी जैसे दिग्गज नेताओं का दौर कांग्रेस से जा चुका था। सोनिया गांधी कांग्रेस के संगठन में सक्रिय हो गई थीं। वहीं, दूसरी ओर अटलजी की 13 दिन की सरकार के बाद देश में अटलजी के 'फेवर' में अलग ही माहौल था। इसे भुनाने के लिए , लेकिन बीजेपी के नेतृत्व में इस बार तब 1998 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाया गया।यह मोर्चा 13 दलों से मिलकर बना। इस चुनाव में एक बार फिर बीजेपी बड़े दल के रूप में आई। अटलजी ने पीएम पद की शपथ ली। यह सरकार इस बार 13 महीने चली और गिर गई। फिर 1999 में चुनाव हुए और इस बार अटलजी की सरकार पूरे पांच साल चली।
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यूपीए का गठन कब हुआ?
जब एनडीए बना तो कांग्रेस के साथ लालू, मुलायम सहित कांग्रेस समर्थित पार्टियों ने मिलकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी UPA का गठन किया। 2004 के चुनाव में यूपीए की जीत हुई और डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस चुनाव में यूपीए ने 222 सीटें पाईं। आगे चलकर अमेरिका से परमाणु समझौता के विरोध में 2008 में कम्युनिस्ट पार्टियों ने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया था। तब मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने यूपीए को बाहर से समर्थन देकर मनमोहन की सरकार गिरने से बचाई थी। 2009 में फिर लोकसभा चुनाव हुए और यूपीए की सरकार बनी। इसचुनाव में यूपीए को कुल सीटों में से 262 सीटें हासिल हुई थीं।
1977 में पहली बार बनी गठबंधन सरकार
- वैसे तो नब्बे के दशक को गठबंधन का दौर कहा जाता है। लेकिन सबसे पहले 1977 में पहली बार गठबंधन की सरकार अस्तित्व में आई थी।
- जब इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी से आम जनता का मोहभंग हुआ तो कांग्रेस की करारी हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी।
- प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे। इस जनता पार्टी में 13 पार्टियों का समावेश था।
- आजादी के बाद यह देश की पहली गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकार थी।