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Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस का गढ़ अमेठी और रायबरेली, विकास के दौड़ में सबसे पीछे

उत्तर प्रदेश की अति चर्चित सीट अमेठी और रायबरेली मंगलवार को मतदान हो रहा है। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली दोनों सीटें विकास की दौड़ में सबसे पीछे हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 07:42 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 07:42 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस का गढ़ अमेठी और रायबरेली, विकास के दौड़ में सबसे पीछे
Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस का गढ़ अमेठी और रायबरेली, विकास के दौड़ में सबसे पीछे

अमेठी-रायबरेली, सद्गुरुशरण। अमेठी और रायबरेली! एक ही परिवार में ब्याही सगी बहनों जैसी दो हाई-प्रोफाइल संसदीय सीटें। एक-दूसरे से खूब मुहब्बत और दिल के किसी कोने में कुढ़न भी। दोनों अपनी सियासी हैसियत को लेकर दशकों से आत्ममुग्ध। आखिर उनका रिश्ता देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित गांधी-नेहरू परिवार से जो है। दोनों ने देश को प्रधानमंत्री दिए। उस वक्तखूब नाम-काम हुआ। बड़े कारखाने लगे, संस्थान खुले। अपनी किस्मत पर इतराती थीं दोनों, पर वक्त ने कब करवट बदल ली, आहट तक नहीं हुई।

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इंदिरा-राजीव गए तो रायबरेली-अमेठी का नूर चला गया। किसी जमाने में इनके भाग्य से लखनऊ, वाराणसी और इलाहाबाद जैसे महानगर ईष्र्या करते थे। अब इंदिरा और राजीव की यादें ही नजर उठाने का बहाना बची हैं। बंद फैक्ट्रियां, जर्जर सड़कें, अद्र्धविकसित बाजार और किसानों-युवाओं की बदहाली देखकर लगता है, जैसे वक्तने अमेठी-रायबरेली की मांग का सिंदूर उड़ा दिया। लखनऊ या वाराणसी से रायबरेली और अमेठी में प्रवेश करिए तो अहसास होता है, जैसे किसी छोटे कस्बे में आ गए। विकास की दौड़ में पिछड़ जाने की मायूसी यहां के लोगों, खासकर युवा पीढ़ी की आंखों- बातों में झलकती है। इसका असर चुनाव नतीजों पर पड़ना लाजिमी है।

पहले बात अमेठी की। 1999 में अपने पति स्व.राजीव गांधी की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए सोनिया गांधी ने अमेठी सीट चुनी जो 1998 की अटल लहर में भाजपा ने जीत ली थी। सोनिया गांधी को सामने देखकर अमेठी फिर भावुक हो उठी और सोनिया अपना पहला चुनाव 1999 की जबर्दस्त अटल लहर के बावजूद शानदार ढंग से जीतीं। बहरहाल, 2004 में सोनिया ने यह सीट बेटे राहुल गांधी के लिए छोड़ दी और खुद अपनी सास इंदिरा गांधी की विरासत संभालने रायबरेली आ गईं। तब से रायबरेली और अमेठी पर मां-बेटे का कब्जा है। इस बार भी यही दोनों प्रत्याशी हैं, पर स्मृति ईरानी के सामने होने की वजह से अमेठी में राहुल गांधी को भाजपा लगातार दूसरे चुनाव में कड़ी चुनौती दे रही है।

2004 से 2019 का कालखंड :

अमेठी-रायबरेली को विकास में पीछे ले गया। पिछले पांच साल राजग का शासन था। संभव है, राजनीतिक कारणों से उपेक्षा हुई हो, पर यूपीए के 10 साल के शासनकाल में अमेठी-रायबरेली नेतृत्व की नजर से ओझल क्यों रहे, किसी के पास जवाब नहीं है। फुरसतगंज में रेडीमेड गारमेंट्स की दुकान के स्वामी पप्पू चौरसिया तमतमाकर कहते हैं, राहुल ने कुछ काम नहीं किया। सब फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। उन्हें भी इसका अहसास है, इसीलिए दूसरी जगह (केरल की वायनाड सीट) चुनाव लड़ने चले गए।

इसके विपरीत, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी पेट्रोलियम संस्थान के सामने जायका रेस्टोरेंट के काउंटर पर बैठे बबलू (मुस्लिम युवक) कहते हैं कि अमेठी में जो कुछ है, उसी परिवार की देन है। एक भी मुसलमान कांग्रेस के खिलाफ नहीं जाएगा। वह सवाल करते हैं, मोदी ने गांवों में जो सुविधाएं दीं, वे अहसान हैं क्या? क्या उसके लिए पैसा नहीं लिया गया? फुरसतगंज बाजार में चाय की दुकान पर बैठे लालपुरवा भदैया मौजा के रामकिशोर कहते हैं, कुछव कोई करै, ई कांग्रेस का गढ़ होय। हवा भलै कौनो चलय, सब बेकार हय। उनके बगल में चाय की चुस्कियां ले रहे सत्येंद्र जायसवाल बात स्पष्ट करते हैं, पीढ़ियों का रिश्ता एक-दो चुनाव में खत्म नहीं हो जाता।

इसी मंडली में शामिल किसान श्रीराम अपेक्षाकृत संतुलित राय रखते हैं, कहते हैं- ई दफा कड़ी टक्कर मान लेव। स्मृति गायब नाही भईं। बराबर आवत रहीं। गौरीगंज में अधिवक्ता शशिकांत तिवारी मानते हैं कि 1992 के बाद मंदिर आंदोलन की छाया में जन्मी-युवा हुई पीढ़ी किसी परिवार को लेकर भावुक नहीं है यद्यपि अमेठी के लिए गांधी-नेहरू परिवार, खासकर राजीव गांधी के योगदान को बिसराया नहीं जा सकता। 87 वर्षीय शिक्षाविद् जगदंबा प्रसाद मनीषी कहते हैं कि अमेठी में इस बार लड़ाई कठिन है। बेशक तमाम लोग राहुल के नाते गर्व महसूस करते हैं, पर ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनका कसौटी सिर्फ विकास है। और अब सोनिया गांधी की सीट रायबरेली की ओर, जिसका प्रतिनिधित्व कभी दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला एवं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी करती थीं। सोनिया की नुमाइंदगी से रायबरेली के लोग उस दौर की यादों में डूबे रहते हैं, पर एक के बाद एक फैक्ट्रियों की तालाबंदी और नई परियोजनाओं के अभाव में रायबरेली उजड़ी-उजड़ी दिखती है।

सोनिया गांधी 2004 से लगातार यहां की सांसद हैं। राही बाजार में प्रेम राजपुर गांव के विजय बहादुर सिंह से मुलाकात होती है। कहते हैं, सोनिया जी पांच साल यहां आई ही नहीं। उनका कोई काम नहीं दिखता। इंदिरा जी के बाद रायबरेली को कुछ नहीं मिला। उनकी लगाईं सारी फैक्0िट्रयां बंद होने के कगार पर हैं। मोदी जी की योजनाओं से गांव में शौचालय, आवास और गैस सिलिंडर पहुंचे हैं। वह साफ कहते हैं कि हमें भाजपा प्रत्याशी से मतलब नहीं। हमारा वोट तो मोदी जी के लिए पड़ेगा।

वह सवाल के साथ बात खत्म करते हैं, मोदी कै विकल्प बताव...। छरहरा गांव निवासी बुजुर्ग माताबदल कहते हैं, ई उमर तक कांग्रेस का ही मानेन-जानेन हैं... हम कौनौ नेता तौ हन नाईं जो दल बदली। जे रायबरेली का चमकाइश है, उनही का वोट जाए। चकपचखरा गांव के बुजुर्ग मोहम्मद गुलाम बताते हैं कि पहले रायबरेली में अनाज नहीं पैदा होता था। लोग गूलर और चने का साग खाकर पेट भरते थे। इंदिरा आईं तो बाहर से बीज लाईं और सिंचाई के लिए नहरें निकालीं। कारखाने खुले, लोगों को रोजगार मिला। इंदिरा ने रायबरेली की तकदीर और तस्वीर, दोनों बदलीं। राही कस्बे के मुस्लिम युवा जावेद इस चुनाव को मुल्क के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। वह साफगोई से कहते हैं, मोदी तो ठीक हैं, पर उनकी पार्टी बेकार है। सेवानिवृत्त प्रोफेसर आरबी वर्मा मानते हैं कि रायबरेली का विकास बाद में इंदिरा के दौर जैसा नहीं हुआ, इसके बावजूद यहां जो कुछ है, उसी परिवार की देन है। रायबरेली में फिलहाल सोनिया का विकल्प नहीं।

रायबरेली में बंद पड़ी फैक्ट्रियां:

यूपी स्टेट स्पिनिंग मिल, मित्तल फर्टिलाइजर्स, नेशनल स्विचगियर लिमिटेड, अपकॉम केबल, कंसेप्टा केबल, मोदी कारपेट, रायबरेली टेक्सटाइल मिल, नंदगंज सिहोरी चीनी मिल।

अमेठी में बंद पड़ी फैक्ट्रियां: 

मालविका स्टील जगदीशपुर, सम्राट साइकिल फैक्ट्री गौरीगंज कौहार, ऊषा इलेक्ट्रिफायर गौरीगंज बाबूगंज, वेस्पा स्कूटर सलोन, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया फैक्ट्री जगदीशपुर, आरिफ सीमेंट फैक्ट्री जगदीशपुर, कंबल कारखाना अमेठी गुंगवाछ, सूर्या फैक्ट्री जगदीशपुर।


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