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Jharkhand Lok Sabha Election 2019: मोदी फैक्टर से मुकाबला आसान नहीं

Jharkhand Lok Sabha Election 2019. झारखंड में अगले दो चरणों में सात सीटों पर चुनाव निर्धारित है। अभी तक की जो स्थिति है उसके अनुसार मोदी फैक्टर काम करता दिख रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 09 May 2019 11:06 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 05:13 PM (IST)
Jharkhand Lok Sabha Election 2019: मोदी फैक्टर से मुकाबला आसान नहीं
Jharkhand Lok Sabha Election 2019: मोदी फैक्टर से मुकाबला आसान नहीं

रांची, [प्रदीप सिंह]। Jharkhand Lok Sabha Election 2019 - झारखंड में सात सीटों पर चुनाव हो चुका है और अगले दो चरणों में सात सीटों पर चुनाव निर्धारित है। अभी तक की जो स्थिति है, उसके अनुसार झारखंड में मोदी फैक्टर काम करता दिख रहा है। अगली सात सीटों पर मोदी फैक्टर बना रहा तो कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा और राजद के महागठबंधन के लिए मुकाबले में बना रहना आसान नहीं होगा।

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खासकर तब, जब इन सात सीटों पर महागठबंधन अपनी स्थिति को मजबूत आंक रहा है। राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से जो दो सीटें वर्तमान में महागठबंधन के खाते में हैं, उन पर चुनाव अंतिम चरण में होना है। अगले दो चरणों में झारखंड में धनबाद, गिरिडीह, सिंहभूम, जमशेदपुर, गोड्डा, दुमका और राजमहल में चुनाव होना है। वर्तमान में इनमें से दुमका और राजमहल झामुमो के पास है।

बाकी सभी सीटें भाजपा के खाते में हैं। महागठबंधन इन सीटों पर सेंधमारी करने की कोशिशों में है। खासकर गोड्डा, गिरिडीह और सिंहभूम पर महागठबंधन की नजर है और पूरी ताकत से यहां चुनाव लड़ा जा रहा है। भाजपा ने गिरिडीह से अपना उम्मीदवार बदलकर यह सीट सहयोगी पार्टी आजसू को दे दी है और इस सधी चाल का असर दिखने लगा है।

यहां वर्तमान सांसद रवींद्र पांडेय से नाराज लोग भी अब आजसू उम्मीदवार चंद्रप्रकाश चौधरी के साथ देखे जा रहे हैं। ऐसे में उम्मीदवार बदलने का लाभ विपक्ष को कम मिलता दिख रहा है। बगल की सीट धनबाद भी भाजपा की परंपरागत सीट रही है और यहां एक-दो मौकों को छोड़कर कभी कांग्रेस नहीं जीत सकी है। इस बार महागठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस के कीर्ति आजाद यहां से किस्मत आजमा रहे हैं।

उनके आ जाने से लड़ाई मजेदार हो गई है। जमशेदपुर और सिंहभूम में भाजपा ने अपने उम्मीदवार नहीं बदले हैं। हां, उनके खिलाफ चार पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार सामने होने से लड़ाई जरूर मुश्किल हो गई है। भाजपा की ओर से एक संदेश स्पष्ट है और वह यह कि पार्टी मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ेगी। इसी कारण प्रचार अभियान में कोई उम्मीदवार अपना नाम नहीं लेता।

मोदी के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं और इसका फायदा भी मिलता दिख रहा है। अब विपक्ष के सामने चुनौती है कि मोदी फैक्टर को कैसे कंट्रोल करे। अभी कोई ऐसा मुद्दा विपक्ष के पास नहीं दिखता जिसकी बदौलत मोदी फैक्टर को कम करके आंका जा सके। ऐसा ही रहा तो झामुमो की परंपरागत सीटों पर भी कठिन लड़ाई होगी।

दुमका और राजमहल में भी लोग मोदी फैक्टर से बचे नहीं रह सकते। ऐसा नहीं है कि विपक्ष ने अन्य मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश नहीं की, लेकिन फंसाने में वे सफल नहीं हुए। विकास और काम इस क्षेत्र में मुद्दा बनता तो दिखा लेकिन अब मोदी बड़ा मुद्दा बन गए हैं।

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