Lok Sabha Election 2019: 'अर्जुन' के रण में चर्च भी कूदा, फतवा-फरमान का दौर; हाल-ए-खूंटी
Lok Sabha Election 2019. मुंडाओं की रणभूमि खूंटी में चर्च का खासा प्रभाव है। यहां तीन मिशनरियां सक्रिय हैं। धर्मांतरित आदिवासियों का बड़ा तबका इनसे सहानुभूति रखता है।
रांची, [प्रदीप सिंह]। Lok Sabha Election 2019 - झारखंड में चर्च भी चुनाव में कूद पड़े हैं। वैसे तो यह हर चुनाव में होता रहा है लेकिन इस बार श्रीलंका में हाल में हुए विस्फोटों से जोड़कर ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। गांव-गांव संदेश भेजे जा रहे हैं और एक पार्टी के विरोध का फरमान दिया जा रहा है। झारखंड में आदिवासी बहुल गांवों में इसकी सुगबुगाहट महसूस की जा सकती है। खूंटी संसदीय क्षेत्र में तो अब यह चर्चा आम हो गई है। पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा धर्मांतरित ईसाई यहीं हैं। कहीं यह बड़ा मुद्दा न बन जाए, इसलिए अब चर्च भी सतर्क हो गए हैं और बाकायदा इसका खंडन तक कर रहे हैं।
खूंटी संसदीय क्षेत्र में प्रभावी धर्मांतरित ईसाई तबका एक खास दल के समर्थन में लाबिंग में जुटा है। इसमें बड़ी संख्या में इलाके में मौजूद धर्म प्रचारकों की भूमिका है जो क्षेत्र में घूमकर मतदाताओं को एक खास पार्टी के खिलाफ वोट करने का फरमान जारी कर रहे हैं। पूरी कवायद गुप्त तरीके से हो रही है और इसमें खास लोगों को शामिल किया जा रहा है। दुहाई श्रीलंका में हाल ही में चर्चों में हुए सीरियल बम धमाके की भी दी जा रही है। इसमें एक खास राजनीतिक दल को जिम्मेदार ठहरा कर ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है।
पहले के चुनावों में देखा गया है कि सुदूर इलाके में रह रहे लोगों पर चर्च के फरमान का असर रहता है। इस दफा भी संदेश इस स्तर पर पहुंचाया गया है कि फरमान के मुताबिक ही वोट करना है। इसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं जिसमें राज्य सरकार द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ कड़े कानून लागू करना, पत्थलगड़ी के आंदोलन को पुलिस के बल पर कुचलना और इससे जुड़े अग्रणी कतार के नेताओं को सलाखों के पीछे डालना है।
खूंटी संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं। इसके तहत छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें खरसावां, तमाड़, तोरपा, खूंटी, सिमडेगा और कोलेबिरा शामिल हैं। खूंटी में ईसाई और मुंडा आदिवासियों की तादाद मिलाकर अस्सी फीसद है। 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में धर्मांतरित ईसाईयों की आबादी 14,18,608 है जो आदिवासी आबादी का 4.31 प्रतिशत है। जबकि सिमडेगा जिले में ईसाई आबादी 51.14 प्रतिशत और खूंटी में 25.65 प्रतिशत है। यह रोमन कैथोलिक और जर्मन लूथेरन का प्रभाव है। इसके अलावा मिशनरी आफ चैरिटी भी सक्रिय है। इन संगठनों के सैकड़ों धर्म प्रचारक यहां कार्यरत हैं।
खंडन कर रही है मिशनरी
खूंटी संसदीय क्षेत्र समेत पूरे राज्य में चर्च के फरमान पर पैदा हुई सुगबुगाहट का असर भी दिख रहा है। मिशनरियों ने इसे बेबुनियाद करार दिया है। रिजनल विशप कौंसिल (झारखंड एवं अंडमान) ने इसपर सफाई देते हुए कहा है कि कैथोलिक कलीसिया की कोई अपनी राजनीतिक पार्टी नहीं है। इसमें ईसाईयों से आग्रह किया गया है कि किसी प्रकार की अफवाह या झूठे प्रचार से झांसे में न आएं। रिजनल विशप कौंसिल का क्षेत्र में व्यापक प्रभाव है। पत्र रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो ने जारी की है। इस संस्था के सचिव तेलेस्फोर बिलुंग और उप सचिव जिल्सन है।
अर्जुन मुंडा और कालीचरण मुंडा के बीच मुकाबला
खूंटी में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा पर दांव लगाया है। इस सीट की पहचान कडिय़ा मुंडा से थी जिन्हें इस बार ज्यादा उम्र होने के कारण टिकट नहीं मिल पाया। अर्जुन मुंडा इस क्षेत्र से वाकिफ हैं। वहीं उनके मुकाबले कांग्रेस के कालीचरण मुंडा हैं। कालीचरण मुंडा राज्य सरकार के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के सगे भाई हैं। यह दिलचस्प है कि एक भाई भाजपा के कद्दावर नेता हैं तो दूसरे कांग्रेस से जुड़े हैं। खूंटी की राजनीति में इस परिवार की अरसे से पैठ रही है। जातीय समूहों की गोलबंदी में यह सीट वही निकाल पाएगा जो ज्यादा से ज्यादा समूहों को अपनी ओर आकर्षित करेगा।